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Global Boiling

 Global Boiling                               साभार यूनाइटेड नेशन्स /इंस्टाग्राम  हाल ही मे यूनाइटेड नेशन्स के चीफ ने कहा है की अब हम लोग ग्लोबल बॉइलिंग के दौर से गुजर रहे है । यह ग्लोबल वार्मिंग के बाद का दौर है । आखिर वह क्या वजह से जिसकी वजह से यूनाइटेड नेशन्स के चीफ को यह कहना पड़ रहा है ? यह धारणा इसलिए बलवती हो रही है क्योंकि वैज्ञानिकों का यह मानना है की जुलाई 2023 का महीना ज्ञात मानव इतिहास का सबसे गर्म महीना है । विश्व के तीन महाद्वीपों उत्तरी अमेरिका ,यूरोप तथा एशिया हिट वेव का सामना कर रह है । हाल ही मे दैनिक भास्कर मे एक खबर प्रकाशित हुयी थी की इटली मे कुछ लोग सड़क मे बैठने से घायल हो गए है ।  इसी तरह से अमेरिका के फीनिक्स मे जुलाई के महीने मे तापमान 54 डिग्री पहुँच गया है । यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस और डबल्यूएमओ ने एक रिपोर्ट मे ये दावा किया है की जुलाई के शुरुआती तीन हफ्तों मे गर्मी के कई रिकार्ड टूटे है । इस महीने इतनी गर्मी है जितनी गर्मी पिछले 1 लाख 20 हजार साल मे नहीं पड़ी ।  अगर अभी भी दुनिया के देशों के द्वारा पृथ्वी के बढ़ते तापमान को नियंत्रित क

प्राकृतिक आपदा का बढ़ता प्रकोप

 प्राकृतिक आपदा का बढ़ता प्रकोप  पिछले कुछ हफ्तों से भारत के विभिन्न हिस्सों से प्राकृतिक आपदा की तस्वीरे सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक देखने को मिल रही है । इस वर्ष प्राकृतिक आपदा की सबसे अधिक मार हिमालय की गोद मे स्थित उतराखंड तथा हिमाचल प्रदेश मे देखने को मिल रही है ।  हिमाचल प्रदेश मे तो अभी तक करोड़ों की सरकारी संपत्ति नष्ट हो गई है तथा कई लोगों की जान इस आपदा मे जा चुकी है । इसी तरह उतराखंड तो बारिश के पहले ही कई प्रकार के प्राकृतिक आपदा से गुजर रहा था । इस वर्ष की बारिश ने उन दिक्कतों को और बढ़ा दिया है ।                            साभार - इंडिया टुडे  इन आपदाओ का क्या कारण है ? अगर हम हिमाचल प्रदेश की बात करे तो यहाँ हो रही भारी बारिश का कारण दक्षिण पश्चिम मानसून तथा वेस्टर्न डिस्टर्बन्स के आपस मे टकराना है । इस टकराहट के कारण यहाँ कई स्थलों पर बादल फटने की घटना हो रही है ।  the hindu मे प्रकाशित खबर के अनुसार यहाँ पर बड़े पैमाने मे स्थापित पन बिजली परियोजना की वजह से नदियों को प्राकृतिक रूप से बहने नहीं दिया जा रहा है तथा बड़े पैमाने मे गाद नदियों के तलहटी मे जमा हो जा रहा है जिसक

भारत के द्वारा चावल निर्यात पर रोक का दुनिया पर असर

भारत के द्वारा चावल निर्यात पर रोक का दुनिया पर असर हाल ही मे भारत सरकार के द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दिया गया । गैर बासमती चावल निर्यात पर रोक लगाने के निम्न कारण है - source the hindu भारत के चावल उत्पादक राज्यों मे वर्षा एवं सूखे के कारण चावल उत्पादन कम होने की आशंका है ।  पिछले कुछ महीनों मे चावल के मूल्य मे वृद्धि की प्रवृति बनी हुयी है । According to  food ministry  data, the retail price of the grain climbed about 15%  in Delhi this year while the average nationwide price gained more than 8%.(the mint ) उल्लेखनीय है की दुनिया मे होने वाले कुल चावल निर्यात का 40 प्रतिशत भारत अकेले ही करता है । भारत के अलावा दुनिया के अन्य प्रमुख निर्यातक देश क्रमश: थाईलेंड ,वियतनाम ,पाकिस्तान तथा अमेरिका है । इसी तरह से दुनिया के 140 देश भारत से गैर बासमती चावल का आयात करते है ।  भारत के गैर बासमती चावल का निर्यात पर रोक लगाने का विश्व पर प्रभाव  निर्यात पर रोक लगाने से विश्वस्तर पर अनाजों के मूल्य मे वृद्धि हो जाएगी ।  अफ्रीका के देशों को अनाजों की किल्लत का सामना करना पड़ सकता

सभी देश क्यों पहुंचना चाहते है चन्द्रमा पर ?

 सभी देश क्यों पहुंचना चाहते है चन्द्रमा पर ? दुनिया के सभी देश इस जुगाड़ में है की कैसे चन्द्रमा तक पहुँचा जाए। इस चाह के कारण हाल ही में भारत के इसरो ने अपनी तीसरी चंद्रयान को छोड़ा है। यह चंद्रयान चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा तथा रोवर के द्वारा चन्द्रमा के सतह का विश्लेषण करेगा।  अब प्रश्न उठता है की चन्द्रमा में ऐसा क्या है जो हर देश वहाँ पहुँचना चाहता है ? चन्द्रमा में हीलियम की बहुत ज्यादा मात्रा मौजूद है। हीलियम नाभिकीय संलयन के द्वारा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा करने की क्षमता रखती है। सूर्य की ऊर्जा का यही मुख्य कारण है। अगर चन्द्रमा में पाए जाने वाले हीलियम को पृथ्वी पर लाया जा सके तो यहाँ ऊर्जा संकट समाप्त हो सकता है।  चन्द्रमा के आंतरिक सतहों के अध्ययन के द्वारा किसी भी ग्रह के आंतरिक  संरचना को जाना जा सकता है क्योकि चन्द्रमा में अन्य ग्रहों के तरह कोई टेकटोनिक प्रक्रिया घटित नहीं होती।  चन्द्रमा के अध्ययन के द्वारा मानवों के अन्य ग्रहो में अध्ययन का रास्ता काफी आसान हो सकता है क्योकि चन्द्रमा में वायुमंडल नहीं है जिससे यह जाना जा सकता है की कॉस्मिक रेज़ का क्या असर क

भारत फ़्रांस संबंध

 भारत फ़्रांस संबंध भारत तथा फ्रांस के रणनीतिक समझौते को २५ वर्ष का समय बीत चूका है।इन वर्षो में दोनों देशों के सम्बन्ध प्रगाढ़ हो चुके है।  इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में फ्रांस की यात्रा की। इस ऎतिहासिक यात्रा पर हमारे देश के प्रधानमंत्री को फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया। यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री है। फ्रांस तथा भारत का सम्बन्ध सदैव ही सौहार्द तथा मजबूत रहा है। सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य होने के नाते उन्होंने कई विवादित मुद्दे जो भारत से जुड़े हुए थे उस पर सयुंक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में वीटो किया है। इसी तरह फ्रांस यह चाहता है की भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनाया जाये।  फ्रांस वह पहला देश था जिसने १२३ समझौता होने के पश्चात परमाणु ऊर्जा को लेकर भारत के साथ सहयोग करना प्रारंभ किया था। इसके अलावा हमारा रक्षा सहयोग भी फ्रांस के साथ लगातार मजबूत हो रहा है। पिछले कुछ वर्षो में भारत की वायुसेना की ताकत बढ़ाने वाला राफेल विमान भी फ्रांस से प्राप्त हुआ था। वही भारतीय नौ सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला स्कॉ

Chandrayaan-3

  Chandrayaan-3 सोर्स इंडियन एक्सप्रेस  आखिरकार भारत के इसरो द्वारा निर्मित चंद्रयान ३ चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंच गया। चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला यह पहला यान है। यह निम्न चरणों में चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव में पहुँचा - एक बार फिर से भारत का इसरो चन्द्रमा तक पहुंचने एवं वहां पहुँचकर अपनी तकनीकी क्षमता के प्रदर्शन के लिए तैयार है। हाल ही में इसरो ने यह घोषणा की है की वह 14 जुलाई को चंद्रयान 3 को  LVM3 के द्वारा श्रीहरिकोटा से छोड़ा जायेगा।  चंद्रयान 3 के साथ  Lander and Rover  को चन्द्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। इससे पहले इसरो के द्वारा(22 जुलाई 2019 ) चंद्रयान 2 को प्रक्षेपित किया गया था। परन्तु इसके साथ भेजे गए लैंडर विक्रम चन्द्रमा की सतह पर लैंड नहीं कर पाया था।  साभार दैनिक भास्कर  चंद्रयान की कहानी  चंद्रयान मिशन की पहली बार   घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपयी के द्वारा वर्ष 2003 में की गयी थी।  इस घोषणा के तहत २२ अक्टूबर २००८ को इसरो के द्वारा सतीश धवन स्पेस सेण्टर से चंद्रयान १ को लांच किया गया।  8 नवम्बर 2008 को ये स्पेसक्राफ्ट चाँद के ऑर्बिट म

टाइटन सबमरीन

  टाइटन सबमरीन  हाल ही में अंटालटिक महासागर में टाइटन सबमरीन में  विस्फोट हो गया तथा यह महासागर में समा गया। उल्लेखनीय है की इस सबमरीन में पर्यटक के रूप में 5 लोग गहरे समुद्र के भीतर प्रसिद्ध यात्री जहाज  RMS  टाइटैनिक के अवशेषों को देखने गए थे।     RMS  टाइटैनिक   दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था। वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ। चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक हिमशिला से टकरा कर डूब गया जिसमें 1,517 लोगों की मृत्यु हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है।  टाइटन सबमरीन एक निजी कंपनी के द्वारा संचालित सबमरीन था। इसकी निम्न विशेषताएं थी - साभार दैनिक भास्कर  इसके संचालन कर्ता कंपनी का नाम ओसन गेट था।  यह 22 फ़ीट लम्बी और 9.2 फ़ीट चौड़ी थी।  इसका निर्माण कार्बन फाइबर से हुआ था। यह स्टील से हल्का एवं अत्यधिक मजबूत होता है।  यह पनडुब्बी गहरे समुद्र में दुबे हुए टाइटैनिक जहाज को दिखाने का कार्य करता है। इसके लिए यह प्रति यात्री 2 करोड़ का फीस लेते है।       इसके दुर्घटना ग्रस्त होने का सबसे प