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Showing posts with the label SCIENCE AND TECHNOLOGY

CLIMATE-SMART AGRICULTURE (CSA)

 CLIMATE-SMART AGRICULTURE (CSA) Poor adoption of climate-smart agriculture (CSA) in south asia: nature climate change journal CSA is a set of agricultural practices and technologies which aims to  boosts productivity (E.g. precision farming, smart crops etc.) enhances resilence (E.g. zero budget natural farming , agroforestry etc.) and reduces greenhouse gases (GHG) emissions (E.g. zero tillage , permaculture , organic farming etc.) Reasons for low adoption:  Weak organisational capacities : lack of access to extension services, limited integration to rural markets etc. inadequate targeted incentives : less incentives is given to CSA techniques in comparison to chemical fertilisers, pesticides etc. limited post- adoption follow-up -: less priority is given to evaluation and monitoring of the CSA  technique. inequities in information dissemination: farmers with more wealth and greater social networks are often prioritised for CSA demonstrations and provisioning. Ways to promote CSA

Cameroon in Africa became the first country in the world to launch the RTS, S malaria vaccine for children..

Cameroon in Africa became the  first country in the world to launch the RTS, S malaria vaccine for  children. source the Hindu On January 22, Cameroon in Africa became the  first country in the world to launch the RTS, S malaria vaccine for children  into its routine national immunization services. According to the World Health Organization (WHO), the rollout follows a malaria vaccine pilot programme in Ghana, Kenya and Malawi, as efforts gather pace to scale up vaccination against the disease in high-risk areas. Malaria is one of the biggest killers of children under five across the world and according to WHO data, more than 30 countries have areas with moderate to high malaria  transmission.

ADITYAYA L1

ADITYAYA L1                                                    साभार CIVIL DAILY चंद्रयान 3 की सफलता के पश्चात भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन सूर्य की बाहरी सतह की अध्ययन के लिए 2 सितम्बर 2023 को श्री हरिकोटा से आदित्य-एल 1 को प्रक्षेपित करने जा रहा है।  उल्लेखनीय है की एल 1 सूर्य और पृथ्वी के बीच वह स्थान है जहाँ पर स्पेस क्राफ्ट पर कोई गुरत्वाकर्षण बल कार्य नहीं करता। जिसकी वजह से ईंधन की खपत कम होती है तथा स्पेसक्राफ्ट आसानी से लम्बे समय तक कार्य कर सकता है।  सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी के हिसाब से यह दूरी लगभग 1.5 करोड़ किलोमीटर है। आदित्य-एल 1 को यहाँ तक पहुंचने में लगभग 120 दिन लगेंगे। इस स्पेसक्राफ्ट में सात पेलोड है जो सूर्य की निम्न सतह का अध्ययन करेंगे - फोटोस्फेयर (सूर्य की दृश्यमान सतह ) क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दृश्यमान सतह की ठीक ऊपर ) कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी सतह) यह स्पेसक्राफ्ट सूर्य की सतह पर उठने वाले तूफ़ान का भी अध्ययन करेगा। उल्लेखनीय है की सूर्य पृथ्वी के समीप स्तिथ सबसे बड़ा तारा है। इसकी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत हीलियम है जो नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के द्वार

सभी देश क्यों पहुंचना चाहते है चन्द्रमा पर ?

 सभी देश क्यों पहुंचना चाहते है चन्द्रमा पर ? दुनिया के सभी देश इस जुगाड़ में है की कैसे चन्द्रमा तक पहुँचा जाए। इस चाह के कारण हाल ही में भारत के इसरो ने अपनी तीसरी चंद्रयान को छोड़ा है। यह चंद्रयान चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा तथा रोवर के द्वारा चन्द्रमा के सतह का विश्लेषण करेगा।  अब प्रश्न उठता है की चन्द्रमा में ऐसा क्या है जो हर देश वहाँ पहुँचना चाहता है ? चन्द्रमा में हीलियम की बहुत ज्यादा मात्रा मौजूद है। हीलियम नाभिकीय संलयन के द्वारा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा करने की क्षमता रखती है। सूर्य की ऊर्जा का यही मुख्य कारण है। अगर चन्द्रमा में पाए जाने वाले हीलियम को पृथ्वी पर लाया जा सके तो यहाँ ऊर्जा संकट समाप्त हो सकता है।  चन्द्रमा के आंतरिक सतहों के अध्ययन के द्वारा किसी भी ग्रह के आंतरिक  संरचना को जाना जा सकता है क्योकि चन्द्रमा में अन्य ग्रहों के तरह कोई टेकटोनिक प्रक्रिया घटित नहीं होती।  चन्द्रमा के अध्ययन के द्वारा मानवों के अन्य ग्रहो में अध्ययन का रास्ता काफी आसान हो सकता है क्योकि चन्द्रमा में वायुमंडल नहीं है जिससे यह जाना जा सकता है की कॉस्मिक रेज़ का क्या असर क

Chandrayaan-3

  Chandrayaan-3 सोर्स इंडियन एक्सप्रेस  आखिरकार भारत के इसरो द्वारा निर्मित चंद्रयान ३ चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंच गया। चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला यह पहला यान है। यह निम्न चरणों में चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव में पहुँचा - एक बार फिर से भारत का इसरो चन्द्रमा तक पहुंचने एवं वहां पहुँचकर अपनी तकनीकी क्षमता के प्रदर्शन के लिए तैयार है। हाल ही में इसरो ने यह घोषणा की है की वह 14 जुलाई को चंद्रयान 3 को  LVM3 के द्वारा श्रीहरिकोटा से छोड़ा जायेगा।  चंद्रयान 3 के साथ  Lander and Rover  को चन्द्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। इससे पहले इसरो के द्वारा(22 जुलाई 2019 ) चंद्रयान 2 को प्रक्षेपित किया गया था। परन्तु इसके साथ भेजे गए लैंडर विक्रम चन्द्रमा की सतह पर लैंड नहीं कर पाया था।  साभार दैनिक भास्कर  चंद्रयान की कहानी  चंद्रयान मिशन की पहली बार   घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपयी के द्वारा वर्ष 2003 में की गयी थी।  इस घोषणा के तहत २२ अक्टूबर २००८ को इसरो के द्वारा सतीश धवन स्पेस सेण्टर से चंद्रयान १ को लांच किया गया।  8 नवम्बर 2008 को ये स्पेसक्राफ्ट चाँद के ऑर्बिट म

टाइटन सबमरीन

  टाइटन सबमरीन  हाल ही में अंटालटिक महासागर में टाइटन सबमरीन में  विस्फोट हो गया तथा यह महासागर में समा गया। उल्लेखनीय है की इस सबमरीन में पर्यटक के रूप में 5 लोग गहरे समुद्र के भीतर प्रसिद्ध यात्री जहाज  RMS  टाइटैनिक के अवशेषों को देखने गए थे।     RMS  टाइटैनिक   दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था। वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ। चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक हिमशिला से टकरा कर डूब गया जिसमें 1,517 लोगों की मृत्यु हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है।  टाइटन सबमरीन एक निजी कंपनी के द्वारा संचालित सबमरीन था। इसकी निम्न विशेषताएं थी - साभार दैनिक भास्कर  इसके संचालन कर्ता कंपनी का नाम ओसन गेट था।  यह 22 फ़ीट लम्बी और 9.2 फ़ीट चौड़ी थी।  इसका निर्माण कार्बन फाइबर से हुआ था। यह स्टील से हल्का एवं अत्यधिक मजबूत होता है।  यह पनडुब्बी गहरे समुद्र में दुबे हुए टाइटैनिक जहाज को दिखाने का कार्य करता है। इसके लिए यह प्रति यात्री 2 करोड़ का फीस लेते है।       इसके दुर्घटना ग्रस्त होने का सबसे प

स्टारशिप : भविष्य का यान

स्टारशिप हाल ही मे स्पेस एक्स द्वारा निर्मित स्टारशिप खबरों मे रहा है । यह खबरों मे इसलिए रहा है क्योंकि यह यान मानवों को मंगल तथा चंद्रमा मे ले जाने के लिए बनाया गया है । पर अपने छोड़े जाने के 4 मिनट के भीतर यह ब्लास्ट हो गया। आईए जानते है इसकी खूबियों के बारे मे - यह पूरी तरह से स्टेनलेस  स्टील से निर्मित है ।  इसे बनाने का श्रेय दुनिया के दूसरे आमिर व्यक्ति एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स को जाता है ।  इसका प्रमुख उद्देश्य मानवों को मंगल तथा चांद तक ले जाना है ।  इसे कई बार प्रयोग किया जा सकता है ।  इसके अलावा यह यान मानव को दुनिया के किसी भी कोने मे 1 घंटे मे ले जा सकता है ।  इसमे एडवांस्ड रेपटर इंजन लगा हुआ है ।  इसमे ऐसे सिस्टम का प्रयोग हुआ है जो मंगल पर मौजूद पानी और कार्बन डाइ आक्साइड के प्रयोग से ऊर्जा प्राप्त कर सकता है । 

James Webb Space Telescope

  James Webb Space Telescope     James Webb Space Telescope टेलिस्कोप हबल स्पेस टेलिस्कोप से भी 100 गुणा अधिक शक्तिशाली है ।   पिछले वर्ष ही इसे नासा के द्वारा स्पेस मे भेज गया है ।  यह अंतरिक्ष की सुदूर गहराइयों मे झांक कर अभी तक हम लोग से छुपी हुए तथ्यों को प्रदर्शित करेगा ।  इसके अलावा ये उन अकाशगंगाओं के बारे में पता लगाएगा, जिनका फॉर्मेंशन बिग बैंग के बाद हुआ था। आप इस टेलीस्कोप की काबिलियत का पता इस बात से लगा सकते हैं कि अगर इसको चांद पर रख दिया जाए, तो ये पृथ्वी पर उड़ रही एक मक्खी को भी आसानी से डिटेक्ट कर सकेगा। इसे बनाने में करीब 9.7 बिलियंस डॉलर का खर्चा आया है।  James Webb Space Telescope टेलिस्कोप पर सोने का भी प्रयोग किया गया है । सोने की वजह से इसके आप्टिक्स खराब नहीं होंगे क्योंकि यह किरणों को रिफ्लेक्ट कर देगा ।  यह बिंग बेंग के बाद पैदा हुए आकाशगंगा के विषय मे और अधिक जानकारी भी जमा करेगा ।   James Webb Space Telescope   डार्क एनर्जी, गैलेक्सी फॉर्मेशन, तारों का जीवन चक्र आदि कई जटिल विषयों के बारे में बारीक जानकारी इकट्ठा करेगा।   James Webb Space Telescope ब

HUBBLE SPACE TELESCOPE

 HUBBLE SPACE TELESCOPE   यह दुनिया की पहली प्रमुख ऑप्टिकल टेलीस्कोप है जिसे अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था । इसे वर्ष 1990 में लो अर्थ आर्बिट में स्थापित किया गया था। इसे अंतरिक्ष में स्थापित करने का श्रेय नासा को जाता है। यह नासा के ग्रेट ऑब्जर्वेट्रीज प्रोग्राम का हिस्सा है। इस प्रोग्राम के तहत 4 अंतरिक्ष आधारित वेधशालाओं को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया है जो अलग अलग प्रकाश में ब्रह्मांड पर नजर रख सकती है। उल्लेखनीय है कि इस टेलिस्कोप का नाम नासा के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री एडविन हबल के नाम पर रखा गया है। इस टेलिस्कोप की खासियत यह है कि इसके द्वारा संग्रहित अंतरिक्ष से संबंधित किसी भी डाटा को आम आदमी भी प्राप्त कर सकता है तथा अंतरिक्ष से संबंधित ज्ञान एवं आंकड़े प्राप्त कर सकता है। इस टेलिस्कोप से यह बात साबित हो पाया कि ब्रह्मांड का लगातार विस्तार हो रहा है तथा कॉसमॉस का निर्माण डार्क एनर्जी से हुआ है। नासा(NASA) यह संयुक्त राज्य अमेरिका आधारित अंतरिक्ष से संबंधित रिसर्च तथा खोज से जुड़ी हुई एक संस्थान है । इसका गठन नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस अधिनियम के अंतर्गत 19 जुलाई 1948 मे

GREEN ENERGY

MONOCLONAL ANTIBODIES

अब कोविड-19 टेबलेट बनाएगा अमेरिका

भारत का गहरा समुद्री मिशन

 

VIVATECH 2021

बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल

CYBER SECURITY

डेल्टा प्लस : कोरोना का नया वैरियंट

 सोर्स दैनिक भास्कर 

जीन,जीनोम तथा जीनोम सिक्वेंसिंग

  जीन,जीनोम तथा जीनोम सिक्वेंसिंग  जीन डीएनए नामक विशाल अणु का एक छोटा-सा हिस्सा होता है जो प्रोटीन के निर्माण का संचालन करता है।। किसी भी जीव में उपस्थित डीएनए को उस जीव का जीनोम भी कहते हैं। डीएनए हरेक कोशिका में गुणसूत्रों के रूप में पाया जाता है (यह बात एकदम सही नहीं है क्योंकि केन्द्रक विहीन कोशिकाओं में डीएनए गुण-सूत्रों के रूप में नहीं पाया जाता) और सामान्य कोशिका विभाजन (माइटोसिस) के दौरान इनकी प्रतिलिपि बनकर दोनों कोशिकाओं को मिलती है। अर्धसूत्री विभाजन (मियोसिस) के समय दोनों कोशिकाओं को पूरा डीएनए नहीं मिलता। डीएनए की बनावट कई वर्षों के शोध। के बाद पता चल पाया था कि सजीवों में आनु-वांशिकता की इकाई न्यूक्लिक एसिड है - डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड यानी संक्षेप में डीएनए। डीएनए का अणु राइबोस शर्करा की एक  श्रृंखला से बना होता है। ये डीऑक्सीराइबोस इकाइयाँ आपस में फॉस्फेट समूहों के ज़रिए जुड़ी होती हैं। प्रत्येक डीऑक्सी-राइबोस शर्करा पर निम्नलिखित चार में से किसी एक क्षार का अणु जुड़ा होता है: एडीनीन, थायमीन, सायटो-सीन, गुआनीन। इस पूरी इकाई - एक डीऑक्सीराइबोस शर्करा, एक फॉस्फेट समूह और

हर्ड इम्युनिटी

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