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ELECTORAL BOND AND DECISION OF SUPREME COURT

 ELECTORAL BOND AND DECISION OF SUPREME COURT In a momentous ruling, the Supreme Court unanimously declared the electoral bonds scheme unconstitutional. The five-judge panel, headed by Chief Justice of India DY Chandrachud, concluded that the scheme's allowance of anonymous funding to political parties violated both Article 19(1)(a) of the Constitution and citizens' right to information. As part of its decision, the court issued three directives: all political parties must return any electoral bonds within their 15-day validity period; donations made through electoral bonds must be made public within one week of receipt by the Election Commission of India (ECI); and finally, State Bank of India (SBI) should immediately cease issuing electoral bonds and provide all relevant details to ECI by March 6th.  WHAT IS THIS SCHEME? The electoral bond scheme was initially proposed during former finance minister Arun Jaitley's announcement in the 2017 Budget Session. Later in January

जम्मू - कश्मीर तथा अनुच्छेद 370 : -सुप्रीम कोर्ट का फैसला

  जम्मू - कश्मीर तथा अनुच्छेद 370 : - सुप्रीम कोर्ट का  फैसला  source dainik bhaskr  जम्मू - कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का केंद्र सरकार का फैसला बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को कहा -आर्टिकल 370  अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारतीय संविधान के सभी प्रावधान वहां लागू हो सकते हैं।  केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू -कश्मीर से 370 हटा दिया था। इसके 4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आए फैसले में कोर्ट ने कहा, 'हम आर्टिकल 370 को निरस्त करने के लिए जारी राष्ट्रपति के आदेश को वैध मानते हैं। हम लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखते हैं।' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में 30 सितम्बर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के आदेश दिए।  केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को 370 हटाया, इसके खिलाफ 23 याचिकाएं  मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 ख़त्म क्र दिया था। साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू - कश्मीर और लद्दाख में बाँट दिया था। इसके खिल

महिला आरक्षण विधयेक 2023

 महिला आरक्षण विधयेक 2023    हाल ही में हमारे देश की संसद ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के द्वारा अब महिलाओं को लोकसभा,राज्य विधानसभा तथा दिल्ली विधानसभा  में 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त होगा। हालांकि, इस अधिनियम के प्रावधान जनगणना के पश्चात होने वाले परिसीमन के बाद लागू होगा।  वर्तमान में भारत के संसद के लोकसभा में 82 (15.2 %) तथा राज्यसभा में 31 (13 %) महिलाएँ है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद हमारे देश के संसद के लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ जाएगा। उल्लेखनीय है की अभी हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश के संसद में 21 % तथा पाकिस्तान के संसद में २० प्रतिशत महिला संसद है। इसी तरह दुनिया के सबसे ज्यादा महिला सांसद वाला देश रवांडा (61% ),क्यूबा (53 %) तथा निकारगुआ (51 %) हुआ।   महिला आरक्षण को लागू करने के लिए संविधान में 128 वा संशोधन किया गया है। इस संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 330 अ जोड़ा जाएगा।  विधेयक में प्रावधान किया गया कि महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती ह

दिल्ली में निर्वाचित सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

 दिल्ली में निर्वाचित सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय   भारत के संविधान में इस बात को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया है की भारत राज्यों का संघ है (अनुच्छेद 2 ) तथा अनुच्छेद 245 एवं सातवीं अनुसूची के अनुसार देश के सुचारु सञ्चालन के लिए तीन सूचियों का निर्माण किया गया है - संघ सूचि ,राज्य तथा समवर्ती सूचि। संघ सूचि पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को तथा राज्य सूचि पर कानून बनाने का अधिकार राज्य को एवं समवर्ती सूचि पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास है। इस तरह इन सूचियों के द्वारा इस बात को सुनिश्चित किया गया है की देश का सञ्चालन सुचारु रूप से हो।  सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय इस बात को सुनिश्चित करता है की राज्य को अपने सूचि के विषय पर कानून बनाने तथा अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण है ,हालांकि दिल्ली संघ शासित प्रदेश है। अतः पुलिस,कानून तथा व्यवस्था एवम  जमीन से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। (अनुच्छेद 239 AA & 239 AB) इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को भी साफ़ किया कि राज्यपाल को चुनी हुई सरकार के सलाह के आधार पर निर्णय ल

भारतीय राज्यों मे राज्यपाल का शासन मे बढ़ता हस्तक्षेप

 भारतीय राज्यों मे राज्यपाल का शासन मे बढ़ता हस्तक्षेप सोर्स THE HINDU पिछले कुछ वर्षों मे भारतीय राज्यों खासकर विपक्ष के शासन वाले राज्यों मे राज्यपाल का शासन के कार्यों मे हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है । इसकी वजह से राज्यों की चुनी हुयी सरकारे सही तरह से कार्य नहीं कर पा रही है। परिणामतः  उन संबंधित राज्यों की जनता सत्ताधारी दलों से नाराज हो रही है । इसका हालिया उदाहरण छतीसगढ़ मे देखने को मिल रहा है । यहाँ विधानसभा से पारित आरक्षण संशोधन बिल को राज्यपाल के द्वारा पास नहीं किए जाने की वजह से सरकारी भर्तियाँ तथा कॉलेजों मे प्रवेश संबंधी प्रक्रिया पूरी तरह से ढप्प हो गई है । इन प्रक्रियों के पूरी तरह से रुक जाने की वजह से छत्तीसगढ़ के युवाओं मे सरकार से नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है ।  इसी तरह से तेलंगाना विधानसभा से पारित 11 विधेयक ,तमिलनाडु की नयी सरकार के  सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयक उनकी मंजूरी के लिए लंबित हैं। इसी तरह से दिल्ली के उप राज्यपाल के द्वारा अक्सर चुनी हुयी सरकार की उपेक्षा करके संविधान विरुद्ध कार्य

क्या राज्यपाल किसी निर्वाचित सरकार का फैसला ठुकरा सकते हैं?

स्रोत पत्रिका   राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र इसके खिलाफ हैं। इससे सवाल यह उठता है कि क्या कोई केंद्र सरकार की सिफारिश पर नियुक्त होने वाला राज्यपाल किसी राज्य की निर्वाचित सरकार के फैसले को पलट सकता है? तमाम सीनियर एडवोकेट और संविधान एक्सपर्ट कह रहे हैं कि राज्यपाल को संविधान में इतनी शक्ति नहीं है कि वह किसी भी निर्वाचित सरकार के फैसले को खारिज करें। सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले भी यही इशारा कर रहे हैं कि राज्यपाल को देर-सबेर विधानसभा सत्र बुलाना ही होगा। गहलोत सरकार ने भी इसी वजह से दूसरा कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है। विधानसभा सत्र बुलाने, उसका अवसान करने और सदन को भंग करने के राज्यपाल के अधिकारों का जिक्र संविधान के दो प्रावधानों में है। आर्टिकल 174 के तहत राज्यपाल निर्धारित वक्त और स्थान पर विधानसभा सत्र बुला सकता है। आर्टिकल 174 (2) (ए) कहता है कि सरकार समय-समय पर सदन का अवसान कर सकते हैं। वहीं, आर्टिकल 174 (2) (बी) राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार देता है। दूसरी ओर, आर्टिकल 163 कहता है कि राज्यपाल मंत

मूल अधिकार

          मूल अधिकार Purnima verma भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है, कि यहां प्रत्येक व्यक्ति को विस्तृत रूप से मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं। मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से  नैसर्गिक रूप से प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों के अभाव में संविधान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्योंकि ऐसे अधिकार व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होते हैं जोकि मृत्यु तक बने रहते हैं अतः मूल अधिकार को भारतीय संविधान में 6 प्रकार की मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है। मूल अधिकारों का जितना विस्तृत वर्णन भारतीय संविधान में किया गया है। उतना विश्व के किसी अन्य देश की संविधान में नहीं किया गया है।  यह लक्षण भारतीय संविधान में मूल अधिकार के महत्व को परिलक्षित करती है।                                                    इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे- मूल अधिकार का उद्भव एवं विकास मूल अधिकार की परिभाषा  मूल अधिकार प्रदान किए जाने का उद्देश्य  मूल अधिकार की विशेषताएं  मूल अधिकार का निर्वचन  भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए मूल अधिकार  निष्कर्ष मूल अधिकार का उद

भारत में राज्यों का पुनर्गठन

भारत में राज्यों का पुनर्गठन  भारत को राज्यों का संघ कहाँ जाता है। भारत के राज्यों में विभिन्न सांस्कृतिक विभिन्नता दिखाई देती है। वर्तमान में राज्यों का जैसा स्वरूप दिखाई देता है, वह एक लंबे कालक्रम में प्राप्त हुआ है। वर्तमान में स्थापित राज्य स्वतंत्रता पूर्व प्रांतों में विभाजित था, भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रसार के लिए इन प्रांतों का अनेक दमनकारी नीतियों के द्वारा अधिग्रहण कर अपने नियंत्रण में कर ब्रिटिश प्रांत में परिवर्तित कर लिया गया तथा कुछ राज्य स्वतंत्रता प्राप्ति तक देशी रियासतों के रूप में ही बनी रही। इस प्रकार स्वतंत्रता के पश्चात संविधान द्वारा राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति संसद को प्रदान की गई है।                          इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे - 1. राज्य की परिभाषा 2. राज्यों के पुनर्गठन संबंधी संसद की शक्तियां 3. राज्य पुनर्गठन संबंधी निर्मित समितियां 4.राज्यों के गठन से संबंधित संविधान संशोधन 5 निष्कर्ष    राज्य की परिभाषा - संविधान में भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है। विभाजन के पश्चात भारत में एक सुदृढ़ केंद्