यह स्थान अम्बिकापुर - बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसा माना जाता है कि इसका नाम वनवास काल में श्री लक्ष्मण जी के ठहरने के कारण पडा। य़ह स्थान रामगढ के निकट ही स्थित है। यहां के दर्शनीय स्थल शिवलिंग (लगभग 2 फिट), कमल पुष्प, गजराज सेवित लक्ष्मी जी, प्रस्तर खंड शिलापाट पर कृष्ण जन्म और प्रस्तर खंडो पर उत्कीर्ण अनेक कलाकृतिय़ां है।
यहां पुरातात्विक महत्व का एक विशाल प्राचीन मंदिर है। अनेक पर्वो पर यहां मेले का आयोजन होता रहता है। यहां के दर्शनीय स्थल - अष्ट्धातु की श्री राम की मूर्ति, भगवान शिव की मूर्ति, श्री गणेश की मूर्ति, श्री जगन्नथ जी की काष्ठ मूर्ति और देवी दुर्गा की पीतल की कलात्मक मूर्ति और प्राकृतिक सौंदर्य है।
अर्जुंनगढ स्थान शंकरगढ विकासखंड के जोकापाट के बीहड जंगल में स्थित है। यहां प्राचीन कीले का भग्नावेष दिखाई पड्ता है l एक स्थान के नीचे गहरी खाई है, जहां से एक झरना बहता है। किवदंती है कि यहां पहले एक सिद्धपुरूष का निवास स्थान था। इस पहाडी क्षेत्र में एक गुफा है जिसे धिरिया लता गुफा के नाम से जाना जाता है। अर्जुनगढ में प्राचीन पुरातात्विक पुरातात्विक महत्व के अवशेष आज भी देखनें को मिलते हैं।
सुरजपुर तहसील के ग्राम महुली के पास एक पहाडी पर शैल चित्रों के साथ ही साथ अस्पष्ट शंख लिपि की भी जानकारी मिली है। ग्रामीण जनता इस प्राचीनतम लिपि को "सीता लेखनी" कहती है।
डिपाडीह कनहर, सूर्या तथा गलफुला नदियों के संगम के किनारे बसा हुआ है। यह चारों ओर पहाडियों से घिरा मनोरम स्थान है। मान्यता के अनुसार यहां पर आठ्वी शताब्दी में स्थापित कई मूर्तियां है उसमें प्रमुख रूप से भगवान शिव एवं देवी की मूर्तियां मिली है। ऐसा भी माना जाता है कि यह नौवीं शताब्दी में शैव सम्प्रदाय का साधना स्थल रहा होगा l
महेश्पुर, उदयपुर से उत्तरी दिशा में 08 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके दर्शनीय स्थल प्राचीन शिव मंदिर (दसवीं शताब्दी), छेरिका देउर के विष्णु मंदिर (10वीं शताब्दी), तीर्थकर वृषभ नाथ प्रतीमा (8वीं शताब्दी), सिंहासन पर विराजमन तपस्वी, भगवान विष्णु-लक्ष्मी मूर्ति, नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप को चीरना, मुंड टीला (प्रहलाद को गोद में लिए), स्कंधमाता, गंगा-जमुना की मूर्तिया, दर्पण देखती नायिका और 18 वाक्यो का शिलालेख हैं।
अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग 10 कि॰मी० की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है, यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर भग्नावशेष है। एक मान्यता के अनुसार यहां पर प्राचिन काल में सात विशाल शिव मंदिर थे, जबकि जनजातियों के अनुसार इस स्थान पर प्राचीन काल में किसी राजा का सप्त प्रांगण महल था। यहां पर दर्शनीय स्थल शिव मंदिर, षटभुजाकार कुंआ और सूर्य प्रतिमा है।
यह सरगुजा के एतिहासिक स्थलो में सबसे प्राचीन है। यह अम्बिकापुर- बिलासपुर मार्ग में स्थित है। इसे रामगिरि भी कहा जाता है। रामगढ़ मैं कई प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां पर सीता बेंगरा एंव विश्व का सबसे प्राचीनतम नाट्य शाला हैं। वनवास के समय श्री राम जी भी अपने भाई और पत्नी के साथ यहां कुछ समय बिताये थे, जिनके निशान आज भी यहां देखने को मिलते हैं। भारतीय साहित्य की अनुपम कृति कालीदास द्वारा रचित “मेघदूतम” की रचना भी इसी स्थान पर हुई है। इसका उल्लेख स्वयं महाकवि कालिदास ने मेघदूतम में किया है।
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