Skip to main content

माझिनगढ़ जात्रा में लगती हैं देवी देवताओं की अदालत

कोंडागांव जिले के माझिनगढ़ में गढ़मावली माता के दरबार में हर साल भादो मास में होने वाली पारंपरिक एक जात्रा खल्लारी और गढ़ स्तिथ गढ़मावली माता का दरबार लगता हैं.इस दौरान गांव के सभी लोग शामिल होते हैंl  इसे देवी देवताओं की अदालत कहा जाता है जिसमें उन देवी देवताओं का मूल्यांकन होता है जो दोषीपाए जाते हैं, उन्हें सजा दी जाती ह इसके बाद यहां के देवी देवताओं को बलिंग पंडुम पर नई फसल चढ़ाई जाती है यह जात्रा माझिनगढ़क्षेत्र के आस-पास के गांव में भी सहभागिता की ओर आकर्षित करती है इसमें देसी देश विदेश पर्यटक, साहित्यकार , पत्रकार भी शामिल होते हैंl
अपने गांव को और गांव वालों को दैविक आपदा विपदा से बचाए रखने और सुख, शांति -समृद्धि की कामना को संजोए रखने के लिए होने वाले जात्रा का स्थानीय लोगों के लिए बहुत विशिष्ट महत्व होता हैl बस्तर की सभ्यता संस्कृति परंपरा व पूजा पाठ के प्रति अभिरुचि रखने वालों के लिए बहुत आकर्षक का केंद्र होता हैl जिसके चलते ही यात्रा को देखने और जात्रा पर निर्वाह की जाने वाली परंपरा व पूजा पाठ रीति रिवाज को देखने समझने दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं l

विश्रामपुर के निकट स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल माझिनगढ में गढ़मावली के दर पर हर वर्ष जात्रा भादो मास के शनिवार को एक ही दिन होता हैl केशकाल में  भंगाराम और मांझ़ीमगढ़ में गढ़मवाली दोनों जगह जात्रा ही दिन होता है और पूजा पाठ की परंपरा भी लगभग एक ही, फिर भी दोनों जगह के जात्रा कि अपनी-अपनी विशिष्टता और महत्वता हैl देश दुनिया के सभ्य शिक्षित समाज के लोग भी जब यहां पहुंचते हैं, तो यहां के लोगों की अलग ही आस्था और देवी देवताओं के जीवंत स्वरूप एवं खास मान्यता को देखते ही रह जाते हैंl

मांझींनगढ़ और गढ़मावली माता के यात्रा के कुछ खास बातें
वरिष्ठ पत्रकार द्वारा मांझ़ीमगढ़ का पत्थर सैकड़ो एकड़ में फैला है lयहां पर हरियाली ही हरियाली और प्रकृति का विहंगम मनोरम दृश्य दिखाई देता हैl मांझ़ीनगढ़ में चट्टानों के बीच गुफा है जहां हजारों वर्ष पुराना शैल चित्र हैl मांझीनगढ़ को आदिमानव की स्थली माना जाता है स्थानीय बड़े बुजुर्गों द्वारा एलियन जैसे रोचक रोमांचकारी किवदंती कहानी बताई जाती हैl
कुंवारों को जाने पर है बंदिश
मांझीनगढ में इस अभिशप्त अवांछित स्थल पर कुंवारों को जाने नहीं दिया जाता वहां पर कुंवारों लड़कों के जाने से अनिष्ट होने की आशंका जाहिर की जाती हैl सभी के सुख शांति खुशहाली की मनोकामना संजोकर साल में एक बार किए जाने वाले जात्रा के प्रति लोगों की आघात आस्था हैl जिसे देखने का अपना अलग आकर्षण हैl

Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद