Skip to main content

प्राकृतिक आपदा का बढ़ता प्रकोप

 प्राकृतिक आपदा का बढ़ता प्रकोप 

पिछले कुछ हफ्तों से भारत के विभिन्न हिस्सों से प्राकृतिक आपदा की तस्वीरे सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक देखने को मिल रही है । इस वर्ष प्राकृतिक आपदा की सबसे अधिक मार हिमालय की गोद मे स्थित उतराखंड तथा हिमाचल प्रदेश मे देखने को मिल रही है । 

हिमाचल प्रदेश मे तो अभी तक करोड़ों की सरकारी संपत्ति नष्ट हो गई है तथा कई लोगों की जान इस आपदा मे जा चुकी है । इसी तरह उतराखंड तो बारिश के पहले ही कई प्रकार के प्राकृतिक आपदा से गुजर रहा था । इस वर्ष की बारिश ने उन दिक्कतों को और बढ़ा दिया है ।


                           साभार - इंडिया टुडे 

इन आपदाओ का क्या कारण है ?

  1. अगर हम हिमाचल प्रदेश की बात करे तो यहाँ हो रही भारी बारिश का कारण दक्षिण पश्चिम मानसून तथा वेस्टर्न डिस्टर्बन्स के आपस मे टकराना है । इस टकराहट के कारण यहाँ कई स्थलों पर बादल फटने की घटना हो रही है । 
  2. the hindu मे प्रकाशित खबर के अनुसार यहाँ पर बड़े पैमाने मे स्थापित पन बिजली परियोजना की वजह से नदियों को प्राकृतिक रूप से बहने नहीं दिया जा रहा है तथा बड़े पैमाने मे गाद नदियों के तलहटी मे जमा हो जा रहा है जिसकी वजह से नदियों मे बाढ़ की घटनाएं बढ़ गई है । 
  3. अनियमित निर्माण की वजह से भी कई सारी समस्या उत्पन्न हो रही है । 
  4. सिमेन्ट उद्योगों के कारण यहाँ के जमीन के उपयोग मे भारी परिवर्तन आया है । 
  5. बिना किसी पर्यावरणीय प्रभाव के जाँचे रोड का चौड़ीकरण किया जा रहा है जिसकी वजह से land slide की घटनाएं बढ़ गई है । 
  6. इसी तरह उतराखंड मे ऑल वेदर रोड की वजह से land slide की घटनाएं बढ़ गई है । पन बिजली परियोजना के कारण भी यहाँ के landscape के प्रयोग मे काफी अमूलचुल परिवर्तन आया है । 



Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न