बालासोर रेल दुर्घटना तथा भारत में रेल दुर्घटना का इतिहास :कारण एवं समाधान
हाल ही में ओडिशा के बालासोर में भयानक रेल दुर्घटना हुयी। इस दुर्घटना में कई सौ लोगो की मृत्यु हो गयी तथा कई हजार लोग घायल हो गए। यह स्वंत्रत भारत में पिछले 20 वर्षो में हुयी सबसे भयानक रेल दुर्घटना में से एक है। अभी तक यह माना जा रहा है की इस दुर्घटना के पीछे सिग्नल प्रणाली से जुडी हुयी समस्या है। इस दुर्घटना की विस्तृत जाँच का दायित्व सीबीआई को सौपा गया है। पर यह भी उल्लेखनीय है की कैग के रिपोर्ट के अनुसार 63 परसेंट जाँच रिपोर्ट सही टाइम से कम्पीटेंट अथॉरिटी को सौपा नहीं जाता।
इस दुर्घटना ने भारतीय रेलवे से जुड़े कई सवालो को एक बार फिर से आम जनता के समक्ष खड़े कर दिया है।
- कब हमारा रेल्वे पूरी तरह सुरक्षित हो पायेगा ?
- हमारे रेल्वे से जुड़ा बुनियादी ढाँचा कब विश्वस्तरीय बनेगा ?
- कब आम जनता के परिवहन का प्रमुख साधन रेल्वे लेट लतीफी से छुटकारा पा सकेगा ?
- अगर हमारे रेल्वे से जुड़े बुनियादी ढाँचे ही पर्याप्त नहीं है तो बुलेट ट्रेन चलाना कितना व्यावहारिक है ?
बिजनेस स्टैण्डर्ड में प्रकाशित(05 June 2023) एक रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु निम्न है -
- बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाने तथा सुरक्षा को लेकर रिकॉर्ड आबंटन के बावजूद वर्ष 2022 -23 में रेल दुर्घटनाओं में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है।
- सिग्नल पास्ट एट डेंजर की 35 घटनाएँ हुयी।
- पिछले वित्त वर्ष में नॉन कंसीक़्वेशियल ट्रेन दुर्घटनाओ के 162 मामले थे।
- इसका प्रमुख कारण रोलिंग स्टॉक के ख़राब तरीके से किए गए रखरखाव ,रेललाइन चेंज करने वालो की कमी , कई जोनो में लोको पॉयलेट से अतिरिक्त घंटे काम लेना।
- 55 प्रतिशत कंसीक़्वेशियल दुर्घटनाओ ( अर्थात जिसमे जनहानि ,रेलवे संपत्ति को नुकसान ,रेल सेवा का बाधित होना शामिल होता है ) के मूल में रेलवे स्टाफ की भूमिका होती है।
- 28 प्रतिशत दुर्घटना के मूल में रेलवे स्टाफ के अतिरिक्त अन्य लोग जिम्मेदार होते है।
- 6 प्रतिशत दुर्घटना का कारण इक्विपमेंट में खराबी है।
- वर्ष 2023 -24 के संघीय बजट में रेलवे को लगभग 2.40 लाख करोड़ की राशि प्रदान की गयी है लेकिन ट्रैक के नवीनीकरण (पूर्व वर्ष की तुलना में 7.2 % की कमी )तथा सिग्नल प्रणाली में सुधार के लिए (पूर्व वर्ष की तरह कुल आबंटित राशि का 1.7 %)बहुत काम राशि का प्रावधान किया गया है।
- 2017 में रेल सुरक्षा के बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष की स्थापना की गयी थी तथा इस कोष हेतु 1 लाख करोड़ की राशि प्रदान किया जाना था। परन्तु ,संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 वर्षो में सरकार इस कोष में 1 लाख करोड़ की राशि प्रदान नहीं कर पाई है।
- रेल मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वाइट पेपर के अनुसार प्रति वर्ष 4500 किलोमीटर रेल ट्रैक का नवनीकरण किया जाना है परन्तु पिछले सात वर्षों में एक वर्ष को छोड़कर मंत्रालय इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है।
SOURCE THE HINDU
हाल ही में hindustan times में एक खबर प्रकाशित हुयी है जिसके अनुसार रेल्वे में सुरक्षा से जुड़े हुए लगभग 310000 पोस्ट खाली है।
इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण है की पिछले कुछ दशकों में रेलवे के आधुनिकरण की दिशा में वह प्रयास नहीं हुए जो विश्व के अन्य विकसित तथा विकासशील देशो में हुए है। इस तथ्य पर प्रकाश डालती इंडियन एक्सप्रेस में REPAIRING LIFELINE के शीर्षक से एक सम्पादकीय प्रकाशित हुयी है -
- 1950 के दशक में चीन में 21800 किलोमीटर रेल लाइन था जो की वर्तमान में बढ़कर 155000 किलोमीटर हो गया है। जबकि आजादी के समय भारत में रेल लाइन का विस्तार लगभग 53596 किलोमीटर था जो वर्तमान में 68100 किलोमीटर तक ही पहुँच पाया है। यह आंकड़ा प्रदर्शित करता है की अतीत में हम रेल नेटवर्क के मामले में चीन से आगे होने के बावजूद वर्तमान में चीन से बहुत अधिक पिछड़ चुके है।
- चीन के रेलगाड़ियाँ 250 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा के रफ़्तार से चलती है जबकि भारत की सबसे तेज़ चलने वाली ट्रेन वन्दे भारत की अधिकतम स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा है लेकिन वो भी वर्तमान में 80 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत गति से ही चल रही है। हमारे यहाँ न ऐसी पटरियाँ है और न ही ऐसा कोई बंदोबस्त है जो हाई स्पीड ट्रेन के परिचालन को सुगम बनाए।
- चीन की योजना है की 2030 तक वह अपने रेल नेटवर्क का विस्तार 175000 किलोमीटर तक करे तथा उसमे से 55000 किलोमीटर रेल नेटवर्क को वह हाई स्पीड रेल नेटवर्क में परिवर्तित करे।
- रेल नेटवर्क में विस्तार तथा औसत गति में वृद्धि न होने की वजह से पिछले 20 वर्षों में भारतीय रेल्वे का हिस्सा सड़क तथा वायु मार्ग की तुलना में लगातार कम हो रहा है।
समाधान
- रेल्वे के खाली पदों को शीघ्र भरा जाना चाहिए।
- मालग़ाडियो के लिए निर्मित ट्रेको को अतिशीघ्र पूरा किया जाना चाहिए। इन ट्रेको के शीघ्र निर्मित होने से सवारी गाड़ियों की रफ़्तार में वृद्धि होगी तथा इनके देर होने की घटना में कमी आएगी। वर्तमान में दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे जोन की 60 प्रतिशत यात्री ट्रेने देरी से चल रही है। इसके मूल में प्रमुख कारण कोयले का परिवहन है।
- बुलेट ट्रेन के निर्माण में प्रति किलोमीटर 350 करोड़ की लागत आ रही है। वही यदि हम 160 किलोमीटर की रफ़्तार से चलने देने वाले ट्रेक का निर्माण करे तो लागत बुलेट ट्रेन की तुलना में घट कर 10 गुना कम हो सकती है। ऐसे में बुलेट ट्रेन की परिचालन पर विचार करना चाहिए। बूलेट ट्रेन में मुख्यतः अधिक आय वाले ही सफर करेंगे। ऐसे लोगो के लिए हवाई यात्रा का विकल्प मौजूद है। यह देखा गया है की वन्दे भारत ट्रेन के टिकट की दर अधिक होने के कारण यात्री इस ट्रेन में यात्रा नहीं कर रहे है जिसकी वजह से इनमे बोगियों की संख्या को कम करना पड़ गया है। कही यही हाल बुलेट ट्रेन का भी न हो जाए?(Times of India 20 feb 2023)
- समय के साथ रेल नेटवर्क का विस्तार करना चाहिए तथा नए ट्रेनों को प्रारम्भ किया जाना चाहिए। एक सुचना के अधिकार के तहत यह पता चला है की लगभग 2,70 करोड़ यात्री टिकट खरीदने के बावजूद यात्रा नहीं कर पाए क्योकि उनका वेटिंग लिस्ट क्लियर नहीं हो पाया।
- रेल सरंक्षा कोष में निर्धारित राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। ताकि इस कोष से रेल्वे को पर्याप्त राशि मिल सके।
- इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए की रेल कर्मचारियों को पर्याप्त आराम मिल सके ताकि वे पूरी मुस्तैदी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सके।
- रेल्वे के विकास से सम्बंधित किसी भी नीति के निर्माण में आम लोगो को ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योकि इनके पास सस्ते तथा किफायती परिवहन का रेल्वे ही एक मात्र जरिया है। महामारी की वजह से इनकी आय पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
- गाड़ियों को आमने सामने की टक्कर से बचाने के लिए कवच प्रणाली को अतिशीघ्र सभी इंजन में लगाया जाना चाहिए।
आज भी भारतीय रेल्वे भारत के परिवहन ढांचे का महत्वपूर्ण अंग है। करोडो लोग इसके माध्यम से अपनी यात्रा को पूरा करते है। यह अपने स्थापना के प्रारम्भिक वर्षो से ही भारतीय भाईचारे तथा राष्ट्रवाद को बढ़ाने का एक प्रमुख जरिया रहा है। अतः भारतीय रेल्वे के विकास को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करना चाहिए।
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