विश्व के देशो में घटती जन्म दर
एक तरफ भारत ने हाल ही में जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ कर विश्व में पहला स्थान प्राप्त कर लिया वही दूसरी तरफ प्रतिष्ठित पत्रिका THE ECONOMIST के एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खासकर विकसित देशों में आबादी लगातार घट रही है।
आबादी में यह गिरावट किसी महामारी या आपदा के कारण नहीं अपितु जन्म दर में गिरावट की वजह से हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 में प्रति महिला प्रजनन दर 2.7 थी। वही आज घट कर यह 2.3 हो गया है। प्रति महिला प्रजनन दर में गिरावट के कारण दुनिया की आबादी अब घटने की ओर बढ़ चुकी है।
आबादी घटने का परिणाम यह हो रहा है की दुनिया में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। बुजुर्गो की आबादी में वृद्धि में पहले जापान तथा इटली का नाम आगे था पर इस लिस्ट में अब ब्राजील ,मेक्सिको तथा थाईलैंड का नाम भी शामिल हो गया है।
वर्ष 2030 तक पूर्व तथा दक्षिण पूर्वी एशिया की आधी आबादी 40 साल से अधिक होगी। अफ्रीका को छोड़कर दुनिया की आबादी 2050 के दशक में अपने सर्वोच्च स्तर पर होगी उसके पश्चात आबादी में गिरावट में बहुत तेजी से कमी होगी।
वर्ष 2010 में 98 देशो में प्रजनन दर 2.1 से नीचे था। 2021 में यह संख्या बढ़कर 124 हो गयी है। वर्ष 2030 इसके 136 होने की आशंका है। विकसित देशों के साथ साथ चीन ,भारत ,ब्राजील ,मेक्सिको सहित 15 बड़ी अर्थव्यस्था में जन्म दर 2.1 से नीचे है।
इसका दुष्प्रभाव
- बुजर्गो की आबादी बढ़ेगी। इसकी वजह से उपरोक्त देशों की उत्पादकता में कमी आएगी। चिकित्सा खर्चो में वृद्धि होगी।
- एक रिसर्च में यह पाया गया है की 30 से 40 के आयु वर्ग के लोग अधिक शोध करते है। जन्मदर घटने की वजह से शोधो की संख्या में भी गिरावट आने की आशंका है।
- दुनिया में नए निर्माण से सम्बंधित विचारो तथा गतिविधियों में कमी आ जाएगी क्योकि ऐसा माना जाता है की युवाओ के पास अधिक नए निर्माण से सम्बंधित विचार होते है।
- राजनीति में भी ठहराव आ जाएगा क्योकि बुजर्ग उतने परिवर्तनकारी विचार नहीं रखते जितने युवा पीढ़ी रखती है ।
- सेविंग्स तथा इंवेस्टमेंट्स कम हो जायेंगे।
- बुजुर्गो के देखभाल के लिए सरकारे आम जनता पर करो का बोझ बढ़ा देंगे।
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