Skip to main content

दिल्ली में निर्वाचित सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

 दिल्ली में निर्वाचित सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय  



भारत के संविधान में इस बात को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया है की भारत राज्यों का संघ है (अनुच्छेद 2 ) तथा अनुच्छेद 245 एवं सातवीं अनुसूची के अनुसार देश के सुचारु सञ्चालन के लिए तीन सूचियों का निर्माण किया गया है - संघ सूचि ,राज्य तथा समवर्ती सूचि।
संघ सूचि पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को तथा राज्य सूचि पर कानून बनाने का अधिकार राज्य को एवं समवर्ती सूचि पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास है। इस तरह इन सूचियों के द्वारा इस बात को सुनिश्चित किया गया है की देश का सञ्चालन सुचारु रूप से हो। 
सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय इस बात को सुनिश्चित करता है की राज्य को अपने सूचि के विषय पर कानून बनाने तथा अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण है ,हालांकि दिल्ली संघ शासित प्रदेश है। अतः पुलिस,कानून तथा व्यवस्था एवम  जमीन से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। (अनुच्छेद 239 AA & 239 AB)
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को भी साफ़ किया कि राज्यपाल को चुनी हुई सरकार के सलाह के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। यह निर्णय इस बात को सुनिश्चित करता है की कोई भी सरकार लोकतंत्र के भावना के अनुसार कार्य करे। 
लोकतंत्र का अर्थ ही होता है की जनता के द्वारा चुने हुए व्यक्ति ही सरकार का सञ्चालन करे। पर पिछले कुछ वर्षो से यह देखा गया है की विभिन्न विपक्षी राज्यों के राज्यपाल शासन पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रहे है तथा लम्बे समय तक उन विधेयकों को अनुमति नहीं देते जो राज्य की चुनी हुई सरकारों के द्वारा विधानसभा से पारित होते है।  ऐसा करके राज्यपाल राज्य की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों को जनता के इच्छा के अनुरूप शासन का सञ्चालन नहीं करने देते।इन प्रक्रियों के द्वारा वे संविधान की मूल भावना का ही अनादर करते है। 
इस तरह सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय लोकतंत्र की मूल भावना को स्थापित करने वाला निर्णय है। 
साभार द हिन्दू 

Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद