Skip to main content

भारतीय राज्यों मे राज्यपाल का शासन मे बढ़ता हस्तक्षेप

 भारतीय राज्यों मे राज्यपाल का शासन मे बढ़ता हस्तक्षेप


सोर्स THE HINDU

पिछले कुछ वर्षों मे भारतीय राज्यों खासकर विपक्ष के शासन वाले राज्यों मे राज्यपाल का शासन के कार्यों मे हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है । इसकी वजह से राज्यों की चुनी हुयी सरकारे सही तरह से कार्य नहीं कर पा रही है। परिणामतः  उन संबंधित राज्यों की जनता सत्ताधारी दलों से नाराज हो रही है । इसका हालिया उदाहरण छतीसगढ़ मे देखने को मिल रहा है । यहाँ विधानसभा से पारित आरक्षण संशोधन बिल को राज्यपाल के द्वारा पास नहीं किए जाने की वजह से सरकारी भर्तियाँ तथा कॉलेजों मे प्रवेश संबंधी प्रक्रिया पूरी तरह से ढप्प हो गई है । इन प्रक्रियों के पूरी तरह से रुक जाने की वजह से छत्तीसगढ़ के युवाओं मे सरकार से नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है । 
इसी तरह से तेलंगाना विधानसभा से पारित 11 विधेयक ,तमिलनाडु की नयी सरकार के सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयक उनकी मंजूरी के लिए लंबित हैं। इसी तरह से दिल्ली के उप राज्यपाल के द्वारा अक्सर चुनी हुयी सरकार की उपेक्षा करके संविधान विरुद्ध कार्य किया जाता रहा है । 
राज्यपाल के इस तरह के कार्य करने से संविधान की भावना आहत होती जा रही है । भारत का संविधान केंद्र तथा राज्यों को अपने क्षेत्र विशेष मे कार्य करने के लिए पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करता है । इनकी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए संघ सूची तथा राज्य सूची का प्रावधान किया गया है । चूंकि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है अतः यह जरूरी है की यहाँ की जनता की अपेक्षाओं को पुरा करने के लिए उनके द्वारा चुनी गई सरकार को बिना किसी व्यवधान के कार्य करने दिया जाय । 
संविधान राज्यपाल को एक तरह से चेक एवं बैलेंस बनाने रखने की अनुमति तथा शक्ति प्रदान करता है । यही भावना सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों के माध्यम से नजर आता है । इनमे से कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्न है -
  1. एस.आर. बोम्मई बनाम भारत सरकार
  2. रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत सरकार
  3. नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष
इन निर्णयों मे एक बात बिल्कुल कॉमन है वो ये है की राज्यपाल राज्य के केवल संवैधानिक प्रमुख है तथा वह चुनी हुयी राज्य सरकार के सलाह पर ही काम कर सकता है । अतः देश के सुचारु संचालन के लिए यह आवश्यक है की राज्यपाल तथा चुनी हुयी सरकार दोनों ही संविधान की भावना के अनुसार काम करें । 
24 APRIL 2023 को अपने एक निर्णय मे सुप्रीम कोर्ट मे कहाँ है की राज्यपालों को किसी भी विधेयक को अनिश्चित काल तक नहीं रोकना चाहिए । अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने कहा की इस अनुच्छेद मे उल्लेखित यथा संभव शब्द का मतलब है की राज्यपाल अनिश्चित समय तक विधेयक को अपने पास सहमति के लिए नहीं रख सकते । 
संदर्भ 
https://hindi.newsclick.in/The-conflict-between-non-BJP-governments-and-governors-is-not-stopping-across-the-country
https://frontline.thehindu.com/politics/how-conflicts-between-governors-and-state-governments-are-playing-out/article66188258.ece 


Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद