Skip to main content

हड़प्पा सभ्यता : एक अद्भुत सभ्यता

 हड़प्पा सभ्यता  (2300-1750 ईसा पूर्व )





यह सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी । इस सभ्यता का अध्ययन आद्य इतिहास के अंतर्गत किया जाता है क्योंकि इस सभ्यता मे प्रचलित लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है तथा इस सभ्यता के इतिहास को जानने का स्रोत यहाँ के विभिन्न स्थलों से प्राप्त अवशेष है । 

इस सभ्यता को पहली बार प्रकाश मे लाने का श्रेय चार्ल्स मेसन को जाता है । उन्होंने इस सभ्यता से संबंधित लेख का प्रकाशन 1842 मे करवाया था । यद्यपि इसके उत्खनन का श्रेय जॉन मार्शल तथा राय बहादुर दयाराम साहनी को जाता है । 

इस सभ्यता के अवशेष पहली बार हड़प्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे इसलिए प्रारंभ मे इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता था परंतु बाद मे सिंधु नदी के किनारे अनेक अवशेष प्राप्त हुए जो इस सभ्यता से मिलते जुलते थे इसकी वजह से इसे सिंधु सभ्यता भी कहा जाने लगा । 

विस्तार  

 इस सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार था । इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1299600 वर्ग किलोमीटर था । इसका पूर्व से पश्चिम तक विस्तार 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तार 1100 किलो मीटर है । 

इसका पूर्वी विस्तार मेरठ के समीप स्थित आलमगीर तथा पश्चिमी विस्तार सूतकागेंडोर (पाकिस्तान ) एवं उत्तरी विस्तार जम्मू-कश्मीर मे स्थित मांडा और दक्षिण विस्तार दैमाबाद था । 

उद्भव 

इसके उद्भव को लेकर विभिन्न इतिहासकारों मे मतभेद है । कुछ इतिहासकार इस सभ्यता के उदय मे विदेशी तत्वों का हाथ बताते है । वही कुछ इतिहासकार इसे पूर्ण रूपेण भारतीय उपमहाद्वीप मे पल्लवित तथा विकसित मानते है । 

स्वदेशी उद्भव

फेयर सर्विस ,अमलानन्द घोष ,एस.आर. राव आदि का मानना है की इस सभ्यता का उद्भव भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति से ही हुआ था ।  

इसके लिए वे निम्न तर्क देते है-

Wikipedia

1 क्वेटा घाटी मे कीली गुल मुहम्मद और दंब सादात नामक स्थल से 4000 ईसा पूर्व से पहले की ग्रामीण जीवन के साक्ष्य मिलते है । 

2 इसी तरह कुल्ली तथा नाल संस्कृतियों से प्राप्त अवशेष भी हड़प्पा पूर्व ग्रामीण अवस्था को प्रदर्शित करते है । 

विदेशी उद्भव के सिद्धांत पर विश्वास करने वाले इतिहासकार  

मार्शल ,व्हीलर ,गार्डन चाइल्ड ,क्रेमर तथा डी.डी.कौशांबी आदि इतिहासकार का मानना है की इस सभ्यता के उदय मे विदेशी तत्वों का प्रभाव है । इनका मानना है की हड़प्पा सभ्यता मे सुमेर सभ्यता का प्रभाव है । इसके लिए वे निम्न तर्क देते है -

1 दोनों नगरीय सभ्यता थी । 

2  दोनों सभ्यता मे पत्थर के साथ साथ कांसे का प्रयोग होता था । 

3 दोनों के सभ्यताओ के लोग चाक का प्रयोग कर बर्तन बनाते थे । 

4 दोनों को लिपि का ज्ञान था । 

परंतु ,इनमे निम्न विभिन्नताएं थी जिसकी वजह से विदेशी प्रभाव वाला तर्क विभिन्न इतिहासकार खारिज करते है -

1 हड़प्पा सभ्यता अपने समकालीन सभ्यता के मुकाबले कही ज्यादा व्यवस्थित था तथा ग्रिड पद्धति पर आधारित था । 

2 हड़प्पा सभ्यता मे जल निकासी प्रणाली उन्नत स्थिति मे थी । 

3 हड़प्पा सभ्यता मे चित्रों पर आधारित लिपि का प्रचलन था जबकि मेसोपोटामिया मे कीलाकर लिपि का प्रचलन था । 

4 हड़प्पा सभ्यता मे मंदिरों के साक्ष्य नहीं मिलते जबकि इसके समकालीन सभ्यता मे मंदिरों के साक्ष्य मिलते है । 

विस्तार  

इस सभ्यता का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के तीन देशों यथा -भारत ,पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान मे था । 

अफगानिस्तान मे निम्न स्थलों पर इस सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए है -

1 मुंडिगाक 

2 शुर्तगुई 

पाकिस्तान मे निम्न स्थल पर इस सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए है -

1 बलूचिस्तान -सुतकागेन्ड़ोर ,सोतकाकोह ,डाबरकोट ,बालाकोट । 

2 सिंध प्रांत - मोहनजोदड़ों ,चंहूदड़ों ,आमरी ,कोटदाजी,अलीमुराद । 

3 पंजाब प्रांत - हड़प्पा ,डेराइस्माइलखान ,जलीलपुर ,रहमान ढेरी ,गुमला । 

भारत मे स्थित स्थल   

1 जम्मू तथा कश्मीर - मांडा । 

2 पंजाब - रोपड़ ,संघोल ,कोटलनिहंग खान ,डेरमजरा । 

3 हरियाणा - बनवाली ,मिताथल ,राखीगढ़ी ,बालू । 

4 राजस्थान - कालीबंगा । 

5 उत्तर प्रदेश - आलमगीरपुर ,बड़ागाँव ,हुलास । 

6 गुजरात - देशलपुर ,सुरकोटड़ा ,धौलावीरा (कच्छ की खाड़ी )

           लोथल,रंगपुर ,रोजड़ी ,प्रभास ,भगतराव ,नागेश्वर (खंभात की 

            खाड़ी )। 

7 महाराष्ट्र  - दैमाबाद । 

 


Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद