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भारत मे ताम्र पाषाण काल (The Chalcolithic or Copper Age)

 भारत मे ताम्र पाषाण काल (The Chalcolithic or Copper Age)

इस समय तक मानव पाषण के साथ साथ तांबे का भी प्रयोग करने लगा था । तांबा ही वह धातु था जिसका प्रयोग मानव ने सबसे पहले किया था । 

इस समय अनेक संस्कृतियों का उद्भव हुआ जिसमे कुछ चीज़े एक जैसे थी तथा कुछ अलग थी । इन चीजों के आधार पर निम्न संस्कृतियाँ थी -

1 अहाड़ संस्कृतियाँ (2100 -1500 ईसा पूर्व ) -


 

यह संस्कृति राजस्थान मे प्रवाहित अहाड़ नदी के तट पर फला-फूला ।  इस संस्कृति के प्रमुख स्थल - अहाड़ ,गणेश्वर ,बलाथल, आदि थे । इस संस्कृति के लोग तांबे से बने धातु के उपकरणों का प्रयोग करते थे । इनके घर पत्थरों से बने होते थे ।

इस स्थल के उत्खनन का श्रेय श्री रत्न चंद्र अग्रवाल को जाता है । यहाँ के लोग सफेद बर्तनों पर चित्रण करते थे ।  

कायथा संस्कृति (2000 -1800 ईसा पूर्व )

मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले मे चम्बल नदी की सहायक काली नदी के दायें तट पर यह स्थल स्थित है । इसकी खोज वी . एस . वाकनकर ने की थी । इस संस्कृति का प्रमुख स्थल -कायथा तथा एरण है । 

मालवा संस्कृति (1700-1200 ईसा पूर्व )

यह संस्कृति मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र मे स्थित था ।  इसके प्रमुख स्थल -नवदाटोली ,महेश्वर ,नागदा आदि है । 

जोरवे संस्कृति (1400 -700 ईसा पूर्व ) 

इस संस्कृति का विस्तार महाराष्ट्र मे है । इसके प्रमुख स्थल जोरवे ,नेवासा ,दैमाबाद ,इनामगाँव आदि । इस संस्कृति से तांबे के साथ साथ ब्रान्ज़ के भी वस्तुएं प्राप्त हुयी है । 

समाज 

इस समय तक मनुष्य का सामाजिक जीवन मजबूत हो चुका था । इस समय तक सामाजिक जीवन मे असमानता का उदय हो चुका था । इस बात की पुष्टि इनामगाँव से होती है । यहाँ पर मुखिया का घर गाँव के केंद्र मे है तथा वह अन्य लोगों के घर के अपेक्षा बड़ा है ,वही मजदूरों या शिल्पकारों का घर गाँव के किनारे मे है एवं छोटे है । 

इसी तरह प्रभावशाली व अमीर लोग अंतिम संस्कार के वक्त कीमती समान भी शव के साथ दफनाते थे वही गरीब लोग कम कीमती समान शव के साथ दफन करते थे । 

कृषि तथा पशुपालन 

इस समय के लोग गेहूँ ,चावल ,मटर ,कपास आदि की खेती करते थे । किन्तु,खेती अभी उतनी विकसित नहीं हुयी थी ।कृषि के साथ वे पशुपालन भी करते थे । पशुओं के अंतर्गत वे गाय ,बैल ,बकरी आदि पालते थे ।  

 

 

 

 



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