भारत मे पाषण युग (stone age in India)
भारत मे पाषाण युग के खोज का श्रेय रॉबर्ट ब्रूसफुट को जाता है ।
मनुष्य जब कपि अवस्था से होमो सेमपीयन्स बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था तब उसने अपने जीवन को सरल बनाने के लिए पत्थरों का प्रयोग प्रारंभ किया । इस काल को ही पाषण काल के नाम से इतिहास मे जाना जाता है ।
यह काल मनुष्य के इतिहास का सबसे लंबा काल था । इस काल का समय लगभग 10 लाख वर्ष ईसा पूर्व से 7 हजार ईसा पूर्व तक विस्तृत है । इतने लंबे काल को अच्छे से समझने के लिए इतिहासकारों ने इस काल को तीन भागों मे विभाजित किया है ।
पाषण काल
1 पुरापाषण काल (Paleolithic age )
2 मध्य पाषण काल (Mesolithic age )
3 नवपाषण काल ( Neolithic age )
पुरापाषण काल का समय 10 लाख ईसा पूर्व से 10 हजार ईसा पूर्व तक था । इसलिए इतिहासकारों ने इसे पुनः अध्ययन तथा पाषण उपकरणों के आकार एवं प्राप्ति स्थल के आधार पर तीन भागों मे विभाजित किया है -
1 निम्न पुरापाषाण काल (10 लाख से 50 हजार ईसा पूर्व )
2 मध्य पुरापाषाण काल (50 हजार से 40हजार ईसा पूर्व )
3 उच्च पुरापाषण काल (40 हजार से 10 हजार ईसा पूर्व )
निम्न पुरापाषण काल (10 लाख से 50 हजार ईसा पूर्व )
पाषण काल के अंतर्गत यह सबसे लंबा समय माना जाता है । इस काल की विशेषता यह थी की इस काल मे मानव क्वार्ट्ज पत्थरों से हथियार बनाता था । इसलिए इस समय के मानवों को क्वार्ट्ज मानव भी कहा जाता था ।
यह क्वार्ट्ज पत्थर नदियों के किनारे पाए जाते थे । इन पत्थरों को ही मानवों ने सबसे पहले उपकरण के रूप मे प्रयोग किया था । इन पत्थरों को पेबुल कहा जाता था ।
इस काल से संबंधित स्थल -
राजस्थान के नागौर जिले मे स्थित डिडवाना ,चम्बल घाटी मे सोनिता ,प्रवरा नदी के तट पर नेवासा ,मद्रास के निकट पल्लवरम
भू-वैज्ञानिक अरुण सोनकिया को नर्मदा घाटी के hosangabaad के हथनोरा से 5 दिसंबर 1982 को मानव की खोपड़ी मिली है जो होमो एरेक्टस से संबंधित है ।
महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थल से राख के टीले का साक्ष्य मिला है जो लगभग 13 लाख वर्ष पुराना है ।
मध्य पुरापाषाण काल (50 हजार से 40हजार ईसा पूर्व )
इसे फलक संस्कृति भी कहते है क्योंकि इस काल के मानवों के द्वारा फलक ,ब्लेडों तथा स्क्रेपरो का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था ।
क्वार्ट्ज के साथ साथ इस काल के मानव जर्ट तथा जैसपर का प्रयोग उपकरण बनाने मे करते थे ।
उपकरण प्राप्ति स्थल
नेवासा (महाराष्ट्र ),चकिया (उत्तर प्रदेश ),बेलन घाटी (प्रयागराज ),भीमबेटका
उच्च पुरापाषाण काल (40 हजार से 10 हजार ईसा पूर्व )
इस काल तक होमोसेपीयन्स का उद्भव हो चुका था । इसके अतिरिक्त हिमयुग समाप्त हो चुका था जिसकी वजह से पृथ्वी के तापमान मे परिवर्तन होने लगा था ।
इस काल के मानव ब्लेड तथा ब्यूरिन का प्रयोग करते थे । यह उपकरण पाषण तथा हड्डियों से निर्मित होते थे ।
उपकरण प्राप्ति स्थल
सोनघाटी (मध्य प्रदेश ),भीमबेटका (मध्य प्रदेश ),बाघोर (मध्य प्रदेश ),इनाम गाँव (महाराष्ट्र)
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