प्रायद्वीपीय पठार
- दक्कन का पठार
- मध्य उच्च भू-भाग
- उत्तरी पूर्वी पठार
इस पठार का निर्माण लावा से हुआ है । इसकी औसत ऊंचाई 600 m है । इसकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर कम होती जाती है । उत्तर दिशा मे इसकी ऊंचाई लगभग 500 m है वही दक्षिण मे इसकी ऊंचाई 1000 m है ।
इस पठार को और छोटे छोटे पठार मे विभाजित कर सकते है ।यथा -
- महाराष्ट्र का पठार
- आंध्र का पठार
- कर्नाटक का पठार
पश्चिमी घाट
यह भारत का एक प्रमुख जैव विविधता से परिपूर्ण क्षेत्र है । इसी क्षेत्र विशेष से भारत मे मानसून प्रवेश करता है । यह उत्तर मे ताप्ती नदी घाटी से दक्षिण मे कन्याकुमारी तक विस्तृत है । इसकी लंबाई 1500 km है । इसकी चौड़ाई उत्तरी भाग मे लगभग 50 km तथा दक्षिणी भाग मे 80 km है । इसकी औसत ऊंचाई 900 से 1000m है ।
यह 6 राज्यों मे विस्तृत है । इन राज्यों के नाम निम्न है -
- गुजरात
- महाराष्ट्र
- कर्नाटक
- गोवा
- केरल
- तमिलनाडु
यह ब्लॉक माउंटेन का उदाहरण है । इस घाट मे तीन प्रमुख दर्रे है -
- थालघाट
- भोरघाट
- पालघाट
- शेनकोटा
थालघाट मे से मुंबई -कोलकाता ,भोरघाट से मुंबई -चेन्नई तथा पालघाट मे से कोच्चि -चेन्नई रेल मार्ग होकर जाता है ।
इसके दक्षिणी भाग मे निम्न पहड़ियाँ है -
इलायची की पहाड़ियाँ
पालनी की पहाड़ियाँ -इसी पहाड़ी पर ही दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी स्थित है जिसका नाम अन्नाईमुड़ी (2695 m)है ।
नीलगिरी की पहाड़ियाँ - उल्लेखनीय है की नीलगिरी पहाड़ियों पर ही पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट आपस मे मिलते है । इसकी सबसे ऊंची चोटी दोदाबेटा(2637 m) है ।
जैवविविधता -
इस क्षेत्र विशेष मे फूलों के 7402 प्रजातियाँ ,139 प्रकार के स्तनपायी ,508 प्रकार पक्षियों की प्रजाति ,227 प्रकार के सरीसृप ,179 प्रकार के उभयचर ,290 प्रकार के मीठे जल की मछलियाँ तथा 6000 से अधिक कीट पाए जाते है ।
पश्चिमी घाट की प्रमुख नदियां -
गोदावरी नदी ,कावेरी ,अमरावती ,पेरियार ,कृष्णा नदी आदि ।
पूर्वी घाट
इसका विस्तार पूर्वी समुद्र तट के किनारे-किनारे है । यह ओडिसा के उत्तर -पूर्वी भाग से प्रारंभ होकर बंगाल के खाड़ी के तट के समानांतर चलता हुआ नीलगिरी की पहाड़ियों तक विस्तृत है । ओडिसा मे पूर्वी घाट को महेन्द्रगिरी के नाम से जानते है । पूर्वी घाट लाल चंदन के लिए विख्यात है ।
इस घाट की प्रमुख नदी महानदी ,स्वर्णरेखा ,ब्रम्हनी नदी आदि है ।
पूर्वी पठार
इसके अंतर्गत बघेलखण्ड का पठार ,छोटा नागपूर का पठार एवं दंडकारण्य का पठार शामिल है । बघेलखण्ड के पठार का विस्तार छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश मे है । यह गंगा तथा महानदी के बीच जल विभाजक का कार्य करता है । बघेलखण्ड का पठार कोयले के प्राप्ति के लिए भी प्रसिद्ध है ।
छोटा नागपूर का पठार - इसका विस्तार झारखंड मे है । यह विभिन्न प्रकार के खनिजों के लिए प्रसिद्ध है । इसकी प्रमुख नदी दामोदर नदी है ।
दंडकारण्य का पठार- यह महानदी तथा इंद्रावती के बीच जल विभाजक का कार्य करती है । इसका निर्माण आर्कियन तथा धारवाड़ से हुआ है । इसमे उच्च क्वालिटी के लौह अयस्क पाया जाता है ।
मध्य उच्च भू -भाग
इसका विस्तार अरावली पर्वत से लेकर विंध्यानचल पर्वत श्रेणी तक है ।
अरावली पर्वत - इसका विस्तार राजस्थान,हरियाणा तथा दिल्ली तक है । इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है ।अरावली पर्वत मे माउंट आबू नामक प्रसिद्ध स्थल है । यह एक प्राचीन वलित पर्वत है । इसके पश्चिम हिस्से मे थार का मरुस्थल है ।
मालवा का पठार - इसका निर्माण लावा से हुआ है । लावा से निर्मित होने के कारण यहाँ काली मिट्टी पायी जाती है । काली मिट्टी के कारण यह क्षेत्र सोयाबीन ,कपास तथा सूरजमुखी के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है । इसकी औसत ऊंचाई 800 m है । इसकी प्रमुख नदी चम्बल है । यह नदी घड़ियाल के लिए प्रसिद्ध है । यह नदी यमुना की प्रमुख सहायक नदी है ।
उत्तर पूर्वी पठार
यह प्रायद्वीप पठार का ही विस्तार है । यह मुख्य प्रायद्वीप पठार का ही हिस्सा था परंतु ,हिमालय के निर्माण के समय उत्पन्न हलचल के कारण रिफ्ट का निर्माण हुआ तथा यह हिस्सा मुख्य प्रायद्वीप पठार से अलग हो गया । इस पठार को यहाँ पायी जाने वाली प्रमुख जनजाति के नाम पर रखा गया था - गारो ,खासो तथा जयंतियाँ । यह पठार दुनिया का सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करता है । यथा-मसिनराम ,चेरापुंजी । इस पठार मे निम्न स्तर का कोयला पाया जाता है ।
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