अन्तर्राष्ट्रीय घटनाएँ - श्रीलंका वित्तीय संकट
भारत का पड़ोसी देश, श्रीलंका आज फिर एक बार "आग की लपटो" में जल रहा है। पर इस बार आग लगाने वाले हनुमान जी नहीं, वहां के सरकार की गलत नीतियां, उनके द्वारा लिया हुआ गलत निर्णय, साथ ही कर्ज के चक्रव्यूह (Debt trap) का शिकार हो चुकी सरकार है।
आर्थिक संकट से जुझ रहा देश राजनीतिक अस्थिरता से भी गुजर रही है, प्रधानमंत्री महेन्द्र राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया है, वित्तीय आपातकाल के बीच उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया है। पुरे देश में कर्फ्यू लगी है ,आखिर लंका के इस हालात का जिम्मेदार कौन है ? इसके पीछे क्या-क्या कारण है? और मौजूदा हालात में भारत क्या रुख अपनायेगी। आइये इसके बारे में जाने :-
श्रीलंका की वर्तमान स्थिति--
* श्रीलंका पर 56 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, इसके ब्याज के रूप में उसको 2 अरब डॉलर चुकाने है। यदि यह कर्ज चुकाने में नाकाम रहती है तो वित्तीय एजेंसियां उसको डिफॉल्टर घोषित कर सकती है।
* 2022 में वार्षिक मुद्रास्फीति दर अप्रैल माह में 29.80% तक बढ़ गयी है जो कि मार्च माह में 18.70% थी।
* देश में सोशल मिडिया साईट प्रतिबन्धित है।
* पेट्रोल की कीमत आसमान छु रही है 338 rs/lit, डीजल तो ख़त्म हो चुकी है। कही मिल भी रही है तो, श्रीलंकन आर्मी की निगरानी में।
* 24 घंटे में 12-12 घंटे तक पॉवर कट।
* कागज की आयात में कमी के कारण विद्यार्थी अपना पेपर भी नही दे पा रहे हैं।
किसी देश की रीढ़ उस उस देश का विदेशी मुद्रा भंडार होती है। श्री लंका का विदेशी मुद्रा भण्डार अप्रैल माह तक मात्र 1.9 बिलियन US डॉलर बचा है। (भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 634.2 बिलियन US डॉलर है। ( 1जनवरी 2022 तक) ) जो की भारत की तुलना में बहुत ही कम है। जिसके कारण सरकार विदेशो से जरुरत की वस्तुएं जैसे- खाने के लिए अनाज, स्टील, दवाईयाँ, नमक, डेयरी उत्पाद, चाय ,काफी आदि आयात नहीं कर पा रही। जिससे इनकी कीमत बढ़ती ही जा रही है जैसे- 1kg चावल -200 रूपए, 1 गैस सिलेण्डर- 4200 रूपए वही 1 लिटर दूध 2000 रूपए यह आज तक का भयावह स्तिथि है जिसके कारण वहाँ की जनता अपनी सरकार से बहुत नाराज़ है और सड़को पर उतर आयी है इतना ही नहीं सरकार प्रतिनिधियों के घरों मे आग भी लगा रही है। यह आर्थिक संकट के साथ-साथ मानवीय संकट में तब्दील होते जा रही है।
थोड़ा पीछे मुड़ कर देखे आखिर श्रीलंका में आर्थिक संकट की स्थिति कैसे पैदा हुई ?
* विदेशी कर्ज - शुरुवात से ही लंकन सरकार वित्तीय प्रबंधन में कमजोर रही है, आजादी के बाद यहाँ की अर्थव्यवस्था रबर, चाय, और नारियल के निर्यात पर निर्भर रही है विदेशी मुद्रा भडारण का 90% हिस्सा इन्ही के निर्यात से आता था। किन्तु 1950 के दशक में अंतराष्टीय बाजार में चाय और रबर का मूल्य गिर गया और इसी समय श्री लंका सरकार को पहली बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा इनकी आयात निर्यात से अधिक हो गयी। जिससे मुद्रा भण्डार में कमी आयी। वही निर्यात से प्राप्त राजस्व का 10 हिस्सा विकास कार्य के लिया उपयोग किया जाता था तो 90% हिस्सा राजनैतिक हित को पूरा करने के लिए खर्च किया जाने लगा। इसकी वजह से सरकार का बजट हमेशा घाटे में रही । इसकी वजह से 1980 के दशक में यह अर्थव्यवस्था सिविल वॉर के चपेट में आ गयी। इसी के चलते इनका रक्षा बजट 4.4% से 1996 आते तक 21.6% हो गयी। जिसके कारण श्री लंका विदेशी निवेश के लिए सबसे ख़राब देश बन गया। सिविल वॉर 2009 तक चला तब तक विदेशी निवेश न के बराबर हो गए। 2005 में महेन्द्र राजपछे की सरकार आयी जिसने हालात को बत से बदतर कर दिया। पड़ोसी देश, वर्ड बैंक, ADB तथा अन्य देशो से ऋण लिया। 2007 में वित्तीय संस्थाओं से भी ऋण लिया। कुल विदेशी कर्ज में 38% हिस्सेदारी ऋण का है। आज श्री लंका का कर्ज GDP का 100% से भी अधिक हो गया है।
*पर्यटन में कमी- श्री लंका की GDP में 20-30% की हिस्सेदरी पर्यटन क्षेत्र का था। 2019 के ईस्टर सन्डे का आतंकी हमला और covid 19 के लहर ने पर्यटन क्षेत्र को चकना चूर कर दिया जहाँ Covid के पहले 455 मिलियन डॉलर प्रति माह राजस्व वसूल करता था वही 2021 तक आते आते 3 मिलियन डॉलर हो गया।
* सरकार की गलत निति - 2019 में गोटबाया राजपक्षे की सरकार बनी, जिसने टैक्स में कमी की घोसणा की। किन्तु covid महामारी के चलते रोजगार में कमी साथ ही महँगाई के चलते सरकार को राजस्व प्राप्ति में 30% तक घटा हुआ।
* खाद्य संकट- महामारी से मार खायी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार ने पिछले साल रासायनिक खाद को प्रतिबंधित कर दिया। और उसकी जगह पर Organic Farming को बढ़ावा दिया, सरकार के अनुसार इससे 400 मिलयन डॉलर का फायदा होना था, पर अचानक से लगा प्रतिबंद का विरोध वहाँ के किसानो ने किया बहरहाल परिणाम ये हुआ कि देश में खाद्य की कमी हो गयी और आयत के लिए विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध नही थे। जिससे महंगाई बढ़ती चली गयी।
* परिवारवाद तथा भ्रष्ट्राचार - पिछले कई दसको से श्री लंका के राजनैतिक और प्रसानिक के बड़े पदों पर राजपक्षे परिवार की दावेदारी है। गोटबाया राजपक्षे (रास्ट्रपति), महेन्द्र राजपक्षे (प्रधानमंत्री), उनके दो बेटे मंत्री के पद पर है, साथ ही उनके भाई चमल राजपक्षे( कृषि मंत्री) और बशील राजपक्षे ( वित्त मंत्री) इनके अनेक मंत्रियो के खिलाफ धोखधड़ी, भ्रष्ट्राचार काले धन को वैद्द बनाने के आरोप है। साथ ही विदेशो में पूंजी रखने का मामला भी सामने आया है। इस प्रकार श्री लंका के इस संकट का
मुख्य कारण गलत नीतिगत निर्णय के साथ पारिवारिक हित एवं भ्रष्ट्राचार भी है।
* भारत का रुख- विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि, भारत अपनी " नेबरहुड फर्स्ट " निति को ध्यान में रखते हुए,श्री लंका के लोगो की कठनाईयो को दूर करने के लिए भारत ने अकेले इस साल 3.5 बिलियन डॉलर का मदद किया है।
भारत के लोगो ने भोजन और दवा जैसी आवश्यक वस्तुओ की कमी को कम करने के लिए सहायता प्रदान की है।
निष्कर्ष
श्रीलंका सरकार को एक मजबूत और तथस्ट सरकार की आवश्कता है , जो पडोसी देशों के साथ अच्छे संबद्ध स्थापित करे और साथ ही वित्तीय विशेषज्ञों की सलाह ली जाये। और इस वित्तीय और मानवीय संकट से जल्द से जल्द उबरा जाए।
Excellent 👍👍
ReplyDeleteNice Article...
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