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भारत की भू-गर्भिक संरचना (GEOLOGY OF INDIA )

भारत की भू-गर्भीक संरचना 

(GEOLOGY OF INDIA )

भारत के निर्माण मे विभिन्न प्रकार के चट्टानों का योगदान है । 
 1आर्कियन क्रम की चट्टाने
 2 कुडप्पा क्रम की चट्टाने
 3 धारवाड़ क्रम की चट्टानें
 4 विध्यन क्रम की चट्टानें
 5 गोंडवाना क्रम की चट्टाने 
  6 दक्कन ट्रैप की चट्टानें
 7 टरशियरी समूह की चट्टानें
 8  क्वाटरनरी समूह
  1. आर्कियन क्रम की चट्टाने
  यह पृथ्वी की सबसे पुरानी चट्टान है । यह एक मूलभूत चट्टान है । भारत मे सबसे अधिक इसी चट्टान का विस्तार है । यह बहुत पुरानी चट्टान है इसलिए इसका अत्यधिक रूपांतरण हो चुका है । वर्तमान मे यह नीस तथा शिष्ट प्रकार की चट्टानों के रूप मे प्राप्त होते है । 
उल्लेखनीय है की इन चट्टानों मे खनिज संपदा का भंडार मौजूद है । इन खनिजों के अंतर्गत लोहा ,तांबा ,मैगजीन ,अभ्रक ,डोलमाइट ,शीशा ,जस्ता ,चांदी तथा सोना प्रमुख है । 
इसका विस्तार निम्न क्षेत्रों मे है -
कर्नाटक ,तमिलनाडु ,आंध्रप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,ओडिशा ,झारखंड के छोटा नागपुर का पठार ,दक्षिण -पूर्व राजस्थान । 
 
 2. धारवाड़ क्रम चट्टान 
आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन एवं निक्षेपण के कारण धारवाड़ चट्टानों का निर्माण हुआ है। यह प्राचीन परतदार चट्टान है जो अत्यंत ही रूपांतरित एवं विरूपित हो चुकी है । 
 उल्लेखनीय है की अरावली पर्वत का निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है । इस चट्टान का विस्तार निम्न क्षेत्रों मे है -
  1. कर्नाटक के धारवाड़ एवं बेल्लारी जिलों मे जहां से इनका विस्तार तमिलनाडु के नीलगिरी तथा मदुरई जिले मे है । 
  2. छोटा नागपुर के मध्य पूर्वी हिस्से मेघालय पठार तथा मिकीर पहाड़ियाँ मे विस्तार 
  3. दिल्ली के अरावली श्रेणी से लेकर अलवर तक 
 

कडप्पा क्रम की चट्टान  

इसका नाम आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के नाम पर पड़ा है । इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों के अपरदन से हुआ है । ये चट्टानें मुख्यतः आंध्रप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,तमिलनाडु एवं कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों,छत्तीसगढ़ मे पायी जाती है । 

गोंडवाना क्रम की चट्टानें  

यह चट्टान भारत मे कोयले का प्रमुख स्रोत है । यह एक अवसादी चट्टान है । इसका विस्तार दामोदर घाटी ,महानदी घाटी ,राजमहल ,सतपुड़ा ,महादेव पहदी ,कश्मीर ,दार्जिलिंग ,सिक्किम ,असम आदि जगहों पर है । 

दक्कन ट्रैप  

इस चट्टान का निर्माण बेसाल्ट लावा के कारण हुआ है । इन शैलों से भवन तथा सड़क निर्माण होता है । इससे क्वार्ट्ज ,boxsite तथा अर्धमूल्य पत्थरों की प्राप्ति होती है । 

इन चट्टानों के विखंडन से ही काली मिट्टी का निर्माण होता है । यह मिट्टी अत्यंत उपजाऊ होती है तथा कपास के उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है ।

 इसका विस्तार महाराष्ट्र के अधिकांश भाग ,गुजरात व दक्षिण पश्चिमी मध्यप्रदेश मे है ।  
 
विंध्यन क्रम की चट्टानें  
इस चट्टान का नाम विंध्यानचल पर्वत के नाम पर रखा गया है । यह गंगा के मैदान तथा दक्कन के पठार के बीच विभाजक रेखा का काम करती है । 
इसका विस्तार राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से लेकर बिहार के सासाराम (103600 वर्ग किलो मीटर) तक है ।  
ये परतदार चट्टान(अवसादी चट्टान ) है । यह चट्टान चुने के पत्थर ,बलुआ पत्थर ,चीनी मिट्टी आदि का प्रमुख स्रोत है । 
 
टरशियरी समूह
यह भारत मे पेट्रोलियम पदार्थ का प्रमुख स्रोत है । यह प्रमुखतः हिमालयन क्षेत्रों मे पाए जाते है । इसके अतिरिक्त दक्कन के पठार क्षेत्रों मे यह तटीय क्षेत्रों के आस पास पाया जाता है । 
इसका विस्तार कश्मीर से कुमायूं क्षेत्र तक है ।
 
क्वाटरनरी समूह
 इसका विस्तार कश्मीर घाटी ,झेलम घाटी ,ब्रम्हापुत्र ,नर्मदा ,ताप्ती ,महानदी,गोदावरी ,कृष्णा नदी घाटी मे है । 
 

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