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छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना

  छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना


 



किसी भी राज्य मे पाए जाने वाले मिट्टी,खनिज,प्रचलित कृषि की प्रकृति को समझने के लिए यह आवश्यक है की उस राज्य की भौगोलिक संरचना को समझा जाए । 

छत्तीसगढ़ का निर्माण निम्न प्रकार के शैलों से हुआ है -

  1. आर्कियन शैल समूह 
  2. धारवाड़ शैल समूह 
  3. कड़प्पा शैल समूह 
  4. गोंडवाना शैल समूह 
  5. दक्कन ट्रैप शैल समूह 

आर्कियन शैल समूह 

 पृथ्वी के ठंडा होने पर सर्वप्रथम इन चट्टानों का निर्माण हुआ। ये चट्टानें अन्य प्रकार की चट्टानों हेतु आधार का निर्माण करती हैं। नीस, ग्रेनाइट, शिस्ट, मार्बल, क्वार्टज़, डोलोमाइट, फिलाइट आदि चट्टानों के विभिन्न प्रकार हैं।

यह भारत में पाया जाने वाला सबसे प्राचीन चट्टान समूह है, जो प्रायद्वीप के दो-तिहाई भाग को घेरता है। जब से पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व है, तब से आर्कियन क्रम की चट्टानें भी पाई जाती रही हैं। इन चट्टानों का इतना अधिक रूपांतरण हो चुका है कि ये अपना वास्तविक रूप खो चुकीं हैं। इन चट्टानों के समूह बहुत बड़े क्षेत्रों में पाये जाते हैं। 

 छत्तीसगढ़ के 50 % भू -भाग का निर्माण इसी चट्टानों से हुआ है । इसका विस्तार निम्न क्षेत्रों मे है -

दक्षिण छत्तीसगढ़ या दंडकारण्य का पठार - चरामा,भानुप्रतापपुर,कांकेर,नारायणपुर,बीजापुर,दंतेवाड़ा बघेलखण्ड का पठारअम्बिकापुर 

 जशपुर सामरी पाठ

लुंडरा,जशपुर ,सीतापुर,बगीचा ,कुनकरी। 

छत्तीसगढ़ का मैदान 

कोटा ,पेंड्रा ,लोरमी ,पंडरिया ,महासमुंद ,राजिम ,कुरुद ,धमतरी ,बालोद आदि।

इस शैल समूह में मुख्यतः ग्रेनाइट एवं नीस चट्टान पाया जाता है। 

धारवाड़ शैल समूह 

इस समूह की चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के रूपांतरण अथवा भ्रंशन से हुआ। धारवाड़ शैल समूह की चट्टानें सबसे पहले बनी अवसादी शैलें हैं। आज ये कायान्तरित रूप में मिलती हैं। इनमें भी जीवाश्म नहीं मिलते हैं।
बघेलखण्ड क्षेत्र -
रामानुजगंज ,वाड्रफनगर,
छत्तीसगढ़ का मैदान 
दुर्ग,बेमेतरा,बालोद,रायपुर,गरियाबंद,धमतरी,कसडोल 
पंडरिया 
दंडकारण्य क्षेत्र 
मोहेला(राजनांदगांव),भानुप्रातपपुर,जगदलपुर,दंतेवाड़ा तहसील।
छत्तीसगढ़ में इसके तीन सीरीज पाए जाते है -
चिल्फी घाटी सीरीज
यह बिलासपुर जिले के रतनपुर से प्रारम्भ होकर मैकल श्रेणी के पश्चिम तक विस्तृत है। 
सोनाखान सीरीज 
यह बलोदा बाजार जिले में स्थित है। 
दंडकारण्य की लौह अयस्क सीरीज 
इसका विस्तार बालोद जिले के संजारी बालोद तहसील तथा बस्तर संभाग में है।  
इस शैल समूह में मुख्यतः लौह अयस्क पाया जाता है। 

कडप्पा शैल समूह 

इन चट्टानों का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के बाद एक अंध युग के पश्चात् हुआ है। धारवाड़ युग की चट्टानें समय के साथ धीरे-धीरे विभिन्न जलज क्रियाओं द्वारा कट-छंट कर समुद्र एवं नदियों की निचली घाटियों में जमा होती रहीं और बाद में इन्हीं एकत्रित निक्षेपों ने चट्टानों का रूप ग्रहण कर लिया, जिन्हें हम कुडप्पा क्रम की चट्टानें कहते हैं। आध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर इस चट्टान समूह का नामकरण किया गया है। कुडप्पा जिले में यह चट्टान अर्द्ध-चंद्राकार स्वरूप में एक विशाल क्षेत्र में पाई जाती है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,000 मीटर है। कुडप्पा क्रम की चट्टानों की निर्माण सामग्री शैल, स्लेट, क्वार्टजाइट तथा चुने के पत्थर की चट्टानों से प्राप्त हुई है। ऐसा नहीं है कि इन चट्टानों में रूपांतरण नहीं हुआ है, परंतु धारवाड़ चट्टानों की अपेक्षा कम हुआ है। इन चट्टानों के विषय में सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अब तक इन चट्टानों में जीवाश्मों का रूप प्राप्त नहीं किया जा सका है जबकि उस समय पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हो चुका था। 
छत्तीसगढ़ के लगभग 25.30 % भाग पर इस क्रम की चट्टानों का विस्तार है। इस शैल समूह का विस्तार 
बलौदाबाजार,जगदलपुर,महासमुंद,दुर्ग,पाटन,बिल्हा ,बिलासपुर,तिल्दा आदि जगहों पर है। 
इस शैल समूह में मुख्यतः चुना पत्थर,डोलोमाइट,अभ्रक,संगमरमर आदि प्राप्त होते है.
छत्तीसगढ़ में कडप्पा शैल समूह के दो सीरीज पाया जाता है -
रायपुर सीरीज 
इस सीरीज का विस्तार दुर्ग ,रायपुर तथा बिलासपुर में है।
चंद्रपुर सीरीज
इस सीरीज का विस्तार कांकेर के उत्तरी भाग से लेकर फिंगेश्वर ,महासमुंद तथा रायपुर जिले के दक्षिणी भाग तथा सारंगढ़ में विस्तृत है। 

 गोंडवाना शैल समूह 

ऊपरी कार्बनीफेरस काल में विश्वव्यापी सरसीनियन हलचल हुई तब संकरी घाटियों में नदी द्वारा एकत्र होने वाले पदार्थों द्वारा इन चट्टानों का निर्माण हुआ।आर्थिक महत्व की दृष्टि से ये चट्टानें काफी उपयोगी हैं। भारत का 98 प्रतिशत कोयला केवल इन्हीं चट्टानों में पाया जाता है। गोण्डवाना चट्टान से प्राप्त बलुआ पत्थर इमारतों के निर्माण के काम आता है। इसके अलावा चीका मिट्टी, लिग्नाइट कोयला, सीमेंट और रासायनिक उर्वरक आदि कई खनिज पदार्थ इन चट्टानों से प्राप्त होते हैं।
छत्तीसगढ़ के 17 % भू भाग का निर्माण इसी शैल समूह से हुआ है। इसका विस्तार महानदी घाटी तथा उसकी सहायक नदी हसदेव नदी घाटी क्षेत्र में है। 

गोंडवाना शैल समूह को मुख्यतः 3 वर्गों में बाँट सकते है

ऊपरी गोंडवाना 
मध्य गोंडवाना 
निचला गोंडवाना 

ऊपरी गोंडवाना -

इसका विस्तार पूर्वी बघेलखंड के पठार में स्थित क्षेत्र यथा मनेन्द्रगढ़ ,बैकुंठपुर ,सूरजपुर ,जशपुर तथा जनकपुर में है। 

मध्य गोंडवाना -

इसका इस राज्य में अधिक विस्तार नहीं है तथा यह महानदी घाटी के आस-पास विस्तृत है। 

निचला गोंडवाना 

मनेन्द्रगढ़ के दक्षिणी भाग ,कोरबा,खरसिया ,धरमजयगढ़ ,रामगढ़ तथा मांड नदी घाटी में इसका विस्तार है। 

दक्कन ट्रैप 

मीसोजोइक युग के अंतिम काल में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था, जिसके उद्गार से लावा उत्पन्न हुआ तथा इसने दक्कन के पठार की आकृति को जन्म दिया। यह प्रायद्वीप भारत में 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र तक फैला हुआ है।दक्कन ट्रैप्स की चट्टानें काफी सख्त हैं किंतु दीर्घकाल से इनका कटाव होता रहा है तथा इस कटाव से जो चूर्ण बना उससे काली मिट्टी का निर्माण हुआ। इस मिट्टी को रेगुर अथवा कपासी मिट्टी भी कहते हैं। इसी ट्रेप से लेटराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है, जिसे बनाने में मानसूनी जलवायु का योगदान है। इसमें लोहा, मैगनीज और एल्यूमिना आदि के अंश मिलते हैं.

छत्तीसगढ़ में इसका विस्तार मैकल श्रेणी के पूर्वी भाग तथा जशपुर  सामरी पाट में है। 
 



 


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