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छत्तीसगढ़ शब्द प्रयोग का इतिहास

 छत्तीसगढ़ शब्द प्रयोग का इतिहास 

पिछले क्लॉस में हमने जाना की कैसे छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया। आज हम जानेंगे की कब कवि तथा इतिहासकारों के द्वारा छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग साहित्यों में किया जाने लगा। 
छत्तीसगढ़ के पश्चिमी हिस्से के एक छोटे से राज्य खैरागढ़ के दरबार में  रहने वाले एक चारण कवि ने पहली बार छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग अपनी एक रचना में की थी। उस कवि का नाम था दलराम तथा वह राजा लक्ष्मीनिधि का दरबारी कवि था। 
उन्होंने निम्न पंक्तियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया था -
लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित्त दे ,
गढ़ छत्तीस में न गढ़ैया रही।  
इसी तरह राजनीतिक सन्दर्भों में छत्तीसगढ़ शब्द का पहली बार प्रयोग रतनपुर के राजा राजसिंह के दरबार में रहने वाले कवि गोपाल मिश्र ने अपनी पुस्तक खूब तमाशा में किया था। कलचुरी वंश 
उनकी रचना निम्न थी -
बरन सकल पुर देव देवता नर नारी रस रस के 
बसय छत्तीसगढ़ कुरी सब दिन के रस वासी बस बस के 
बाबू रेवा राम ने एक पुस्तक की रचना की थी जिसका नाम विक्रम विलास था। इस ग्रन्थ में उन्होंने छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया था। 
जब मराठों के आक्रमण के कारण जब छत्तीसगढ़ से कलचुरियो का शासन ख़त्म हो गया तब मराठा इतिहासकारों ने छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग अपनी रचनाओं में करने लगे। इनमे से प्रसिद्ध इतिहासकार श्री काशीनाथ गुप्ते थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ नागपुरकर भोसल्याची बखर में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया है। 
ब्रिटिश काल में बिलासपुर गजेटियर में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया गया था. इस शब्द का प्रयोग उन्होंने कप्तान ब्लंट के छत्तीसगढ़ से राजमुंद्री के यात्रा के दौरान इस क्षेत्र विशेष को छत्तीसगढ़ कहे जाने से प्रभावित होकर किया था। 
 

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