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बजट 2022

 बजट 2022


 

आम बजट एक वित्त वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) की अवधि के दौरान सरकार की प्राप्तियां तथा व्यय के अनुमानों का विवरण होता है। बजट के मुख्यतः दो भाग होते हैं, आय और व्यय। सरकार की समस्त प्राप्तियों और राजस्व को आय कहा जाता है तथा सरकार के सभी खर्चों को व्यय कहा जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में बजट का उल्लेख है, जहां बजट शब्द का प्रयोग न कर के इसे वार्षिक वित्तीय विवरण कहा गया है।
बजटीय प्रक्रिया के दौरान विभिन्न सरकारी हस्तक्षेप, सरकार के कल्याणकारी स्वरूप, देशहित आदि के आधार पर बजट के अनेक रूप होते हैं, जो उल्लिखित हैं।

 आम बजट
यह एक सामान्य किस्म का बजट है, जिसमें समस्त आय और व्यय का लेखा-जोखा रहता है। बजट का यह स्वरूप अत्यन्त पारस्परिक होता है। इस बजट में वस्तुओं या मद का महत्त्व उद्देश्य की अपेक्षा अधिक होता है। इसे पारस्परिक बजट भी कहते हैं। बदलते स्वरूप को देखते हुए बजट की यह प्रणाली भारत की समस्याओं को सुलझाने एवं इसकी महत्वाकांक्षाओं क्रो प्राप्त करने में असफल रही। अत: बजट को इस रूप के स्थान पर निष्पादन बजट की आवश्यकता महसूस की गई।

निष्पादन बजट

निष्पादन बजट का तात्पर्य ऐसी बजट प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत बजट में शामिल कार्यक्रमों तथा योजनाओं का क्रियान्वयन इस प्रकार से किया जाये ताकि अपेक्षित तथा वास्तविक निष्पादन के मध्य कम से कम अन्तर हो तथा परियोजनाओं का क्रियान्वयन इष्टतम स्तर पर हो सके। इसके लिये यह अत्यन्त आवश्यक हो जाता है कि बजट के प्रत्येक चरण में अपेक्षित व्यय तथा अपेक्षित प्राप्तियों का एक नियोजित रूप रेखा तैयार की जाय तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन एवं संचालन उच्च स्तर का हो सके तथा वांछित परिणामों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

बजट के क्रियान्वयन के लिए निर्मित कसौटियों के आधार पर सार्वजनिक व्यय में पूर्ण मितव्ययता बरती जाय तथा बजट का संचालन एक कुशल प्रबन्धतंत्र द्वारा किया जाय। इस प्रकार निष्पादन बजटिंग में कुशल प्रशासनिक कार्य तंत्र को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। क्योंकि कार्यक्रमों या योजनाओं का इष्टतम निष्पादन कुशल प्रशासनिक कार्यतंत्र पर ही पूर्ण रूप से आधारित होता है।

 भारतीय संसद में पहली बार 25 अगस्त, 2005 को निष्पादन बजट तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा प्रस्तुत किया गया।

 आउटकम बजट

 इसका मतलब यह कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जिस मद में राशि खर्च की जा रही है उसका परिणाम भी निकलना चाहिए. मसलन, अगर किसी प्रखंड में स्कूल भवन बनाया जाता है लेकिन वहां बच्चे नहीं पहुंच पा रहे हैं तो इसका मतलब है कि राशि बेकार चली गई.

 आउटकम बजट एक नए प्रकार का बजट है। इसके अन्तर्गत साधनों के साथ-साथ उन लक्ष्यों को भी निर्धारित कर दिया जाता है, जिन्हें प्राप्त करना आवश्यक माना जाता है। इस बजट के अन्तर्गत एक वित्त वर्ष के लिए किसी मंत्रालय अथवा विभाग को आबंटित किए गए बजट में मूल्यांकन किए जा सकने वाले भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण इस उद्देश्य से किया जाता है, जिससे बजट के क्रियान्वयन को परखा जा सके।

 भारत में इसकी शुरुआत पी. चिदम्बरम ने वर्ष 2005 में की थी

 लैंगिक बजट

 लैंगिक बजटीकरण का सम्बन्ध लिंग-संवेदी विधि निर्माण, योजनाओं और कार्यक्रमों, संसाधनों के आवंटन, कार्यान्वयन और निष्पादन, योजनाओं और कार्यक्रमों के लेखा परीक्षण और प्रभाव मूल्यांकन तथा लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिये आगे की सुधारात्मक कार्यवाही से है।

  • लैंगिक बजट अभिव्यक्ति (GBS) को पहली बार 2005-06 के भारतीय बजट में प्रस्तावित किया गया था। इस लैंगिक बजट अभिव्यक्ति के दो हिस्से हैं-
  • भाग ‘अ’ में नारी-विशेष योजनाएँ हैं, अर्थात् वे योजनाएँ जिनमें महिलाओं के लिये 100 प्रतिशत राशि आवंटित की गई हो,
  • भाग ‘ब’ में महिलाओं के लाभ की योजनाएँ हैं, अर्थात् वे योजनाएँ जिनमें कम-से-कम 30 प्रतिशत आवंटन महिलाओं के लिये हो।

शून्य आधारित बजट

 शून्य आधारित बजट में गत वर्षों के व्यय सम्बन्धी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है. इस प्रणाली में कार्य इस आधार पर शुरू किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है जब तक कि प्रत्येक रुपये की मांग का किसी भी कार्य अथवा परियोजना या क्रिया का औचित्य नहीं दिया जाता है. इस शब्द को “पीटर पायर” ने दिया था. सबसे पहले इस बजट को 1970 के दशक में अमेरिका में शुरू किया गया था.

 

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