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दुनिया में गहराता ऊर्जा संकट

 दुनिया में गहराता ऊर्जा संकट


लगभग पूरी दुनिया इस समय ऊर्जा संकट का सामना कर रही है. कहीं प्राकृतिक गैस तो कहीं कोयले की कमी से ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करना चुनौती बन गया है.

यूरोप के देशों की मुश्किलें

यूरोपीय देश इस समय प्राकृतिक गैस के बड़े संकट का सामने कर रहे हैं. ये देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अधिकतर अक्षय ऊर्जा, प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा पर निर्भर करते हैं. इसमें सबसे ज़्यादा हिस्सा प्राकृतिक गैस का है.

लेकिन, यूरोपीय देशों में फ़िलहाल प्राकृतिक गैस की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं है. सर्दियों में ये मांग और बढ़ने वाली है, जिसकी सबसे ज़्यादा मार मध्यम और निम्न आयवर्ग के लोगों पर पड़ सकती है.

जानकार इसके पीछे कोई एक कारण ज़िम्मेदार नहीं मानते बल्कि कई वजहों ने मिलकर ये स्थितियां पैदा की हैं.

  1. विशेषज्ञ इसके पीछे कोरोना महामारी के बाद सामान्य होते जीवन में उत्पाद एवं सेवाओं की बढ़ती मांग, मौसम में बदलाव और कोयले के उत्पादन में आई कमी को ज़िम्मेदार बताते हैं.
  2. कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्थाएं रुक गई थीं. मांग और उत्पादन दोनों ही कम थे. अर्थव्यवस्थाओं की हालत खराब हो रही थी. लेकिन, महामारी का असर कम होने पर देशों ने अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के लिए आर्थिक सुधार पैकेज दिए.
  3. अमेरिका में आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए खरबों डॉलर का आर्थिक पैकेज दिया गया, जिसका असर अन्य उद्योगों पर भी देखने को मिला. इसने निर्माण और सेवा उद्योग में तेज़ी ला दी और यहाँ ऊर्जा की मांग बढ़ गई.
  4. कई जगहों पर मौसम में भी बदलाव देखने को मिला है. कई देशों में पिछली सर्दियों में ही मांग बढ़नी शुरू हो गई थी.जैसे उत्तरी गोलार्ध में आने वाले कई इलाक़ों में लंबा ठंड का मौसम देखने को मिला, जिससे गर्मी देने वाले बिजली के उपकरण इस्तेमाल होने लगे. पिछली गर्मियों में अमेरिका और यूरोप में गर्म हवाएं चलीं, जिसने एयर कंडिशनर के इस्तेमाल को बढ़ा दिया. इससे बिजली की खपत भी बढ़ने लगी.
  5. कोरोना से बचाव के लिए निजी वाहनों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई जिससे सीएनजी की खपत बढ़ी.
  6. एक बड़ा योगदान कोयले के कम उत्पादन का है. अन्य देशों की तरह एशियाई देशों में भी ऊर्जा की खपत और मांग बढ़ी है. चीन और भारत दो ऐसे बड़े देश हैं जो दुनिया की पूरी आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं.
  7. ये दोनों ही देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए काफी हद तक कोयले पर निर्भर करते हैं. कोयले के आयात के मामले में चीन दुनिया में नंबर एक पर है और भारत नंबर तीन पर. वहीं, कोयले के उत्पादन के मामले में भी चीन और भारत क्रमश: नंबर एक और दो पर आते हैं.लेकिन, हरित ऊर्जा की तरफ़ बढ़ते कदमों और निवेशकों की कोयला उत्पादन में घटती रूचि ने यहां कोयले का उत्पादन कम कर दिया है.
  8. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया कोयले के विकल्पों पर काम कर रही है. इसके लिए सौर और पवन ऊर्जा, प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाई जा रही है. ऐसे में निवेशकों की भी कोयले में रूचि कम हो रही है, उन्हें लाभ कम मिल रहा है. इसलिए कोयले का उत्पादन बहुत कम हो गया है.
रूस की भूमिका
यूरोप में प्राकृतिक गैस संकट से निपटने के लिए रूस की भूमिका बढ़ गई है.यूरोपीय देश अपनी करीब 43 प्रतिशत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर करते हैं. लेकिन, ऊर्जा की बढ़ती मांग के बीच रूस से होने वाली आपूर्ति भी कम हुई है.

रूस से पाइपलाइन के ज़रिए यूरोपीय देशों को प्राकृतिक गैस पहुंचाई जाती है. ये पाइपलाइन यूक्रेन और पोलैंड से होकर जाती है. लेकिन, इन दोनों देशों से रूस के संबंधों ने तनाव होता रहता है.
ऐसे में रूस ने एक पाइपलाइन तैयार की है 'नॉर्ड स्ट्रीम 2' जो सीधे जर्मनी तक जाती है. इससे गैस की आपूर्ति बेहतर हो सकती है लेकिन यूरोपीय देशों ने अभी इस पाइपलाइन को मंज़ूरी नहीं दी है.
अमेरिका भी इस पाइपलाइन का आलोचक रहा है. उसका कहना है कि अगर सीधी पाइपलाइन को मंज़ूरी दे दी गई तो यूक्रेन और पोलैंड को आर्थिक नुक़सान हो सकता है.
पहले भी यूरोप में प्राकृतिक गैस की मांग बढ़ी है तो रूस ने आपूर्ति को उसके अनुरूप बढ़ाया है. लेकिन, इस साल रूस की सरकारी ऊर्जा उत्पादन कंपनी 'गेज़प्रॉम' ने अतिरिक्त आपूर्ति के कम ऑर्डर स्वीकार किए हैं.
इसे रूस के दबाव के तौर पर भी देखा जा रहा है. आलोचकों का कहना है कि यूरोप में ऊर्जा संकट के बीच प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में 'नॉर्ड स्ट्रीम 2' की अहमियत दिखाने की कोशिश है ताकि इसकी मंज़ूरी आसान हो सके.
हालांकि, रूस इससे इनकार करता है और उसने ऊर्जा आपूर्ति की कमी में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है. रूस ने यूरोप में मांग के मुताबिक आपूर्ति बढ़ाने का आश्वासन भी दिया है.
वहीं, रूस में भी ऊर्जा की खपत बढ़ गई है और कोरोना महामारी के दौरान यहां भी उत्पादन पर असर पड़ा है.

भारत में बिजली संकट

भारत में कोयले की कमी के चलते पिछले कई दिनों से बिजली की कमी का संकट बताया जा रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी आने वाले दिनों में बिजली की कमी आशंका जताते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था.

उत्तर प्रदेश में भी कोयले की कमी के कारण आठ बिजली संयंत्र बंद कर दिए गए हैं. देश में तीन या चार दिनों का कोयला बचे होने की बात भी सामने आ रही है.

भारत में ऊर्जा संकट के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार हैं. जैसे लॉकडाउन खुलने के बाद वैश्विक और घरेलू मांग में बढ़ोतरी हो गई है. वहीं, इस साल बारिश भी ज़्यादा हुई है जिससे कोयला गीला हो गया है. कोयला वितरण करने वालीं कंपनियां भी कर्ज में डूबी हुई हैं तो उत्पादन कम हो रहा है.

source bbc hindi 


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