2019-20 की तीसरी तिमाही में जहां हाउसहोल्ड खपत 21.73 लाख करोड़ रही, वही चौथी तिमाही के अंत में लॉकडाउन के कारण यह कम होकर 21.04 लाख करोड़ हो गई. वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में हाउसहोल्ड खपत मात्र 21.60 लाख करोड़ पर ही अटकी हुई है,जबकि इस पीरियड में अधिकतर भारतीयों को लगा था कि हमने कोविड-19 को हरा दिया है.
हाउसहोल्ड खपत में यह कमी विशेष रूप से तब चिंताजनक है जब हम इसकी तुलना फैक्ट्री उत्पादन में वृद्धि से करते हैं. 2020-21 की चौथी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में GVA उसके पिछले वर्ष के इसी पीरियड की अपेक्षा 6.9% बढ़ा है.मार्च 2020 के आखिरी कुछ दिनों में फैक्ट्रियां बंद थीं, इसलिए इस वृद्धि को भी एडजस्ट करना पड़ेगा. लेकिन 2019 के अंतिम 3 महीनों की अपेक्षा 2020-21 के Q4 के मैन्युफैक्चरिंग GVA में 15% से भी ज्यादा की वृद्धि हुई है.
2019-20 की तीसरी तिमाही और 2020-21 की चौथी तिमाही के बीच हाउसहोल्ड खपत में तो लगभग 1% की गिरावट हुई है,जबकि फैक्ट्री उत्पादन में 15% की वृद्धि हो गई.
इससे पता चलता है कि उत्पादन आंशिक रूप से कायम रहा क्योंकि सरकार ने अपनी खपत बढ़ाकर इसको बैलेंस किया है. स्पष्ट रूप से यही हुआ है क्योंकि सरकार का फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर(GFCE) वित्त वर्ष 20-21 की चौथी तिमाही में वित्त वर्ष 19-20 के इसी पीरियड की अपेक्षा 28% से अधिक बढ़ गया है.
दूसरी बात कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों का तो विस्तार नहीं हुआ लेकिन मशीनों और उपकरणों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों का हुआ. इसका भी कारण रहा ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉरमेशन(GFCF) में 11% की वृद्धि.पिछले साल के इसी अवधि की तुलना में इन्वेंटरी और स्टॉक में भी 12% से अधिक की वृद्धि हुई है.यह आने वाले तिमाहियों में एक समस्या के रूप में दिखाई दे सकता है.खासकर जब से वित्त वर्ष 21-22 की पहली तिमाही के 2 महीने कोविड की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
आगे का रास्ता
सरकार लोगों के हाथ में पैसा सौंपकर खपत को प्रोत्साहित करें. यह वह ऑक्सीजन है जिसकी भारत की कोविड प्रभावित अर्थव्यवस्था को अभी सख्त जरूरत है.
एक सुनियोजित और व्यापक आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज का स्टेरॉयड भी आगे लगना चाहिए. अन्यथा हम खपत में मंदी भरा एक और साल देखेंगे, चाहे हमारा GDP आंकड़ा कुछ भी कहे.
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