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प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान

 प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान की शुरुआत हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा लोगों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने के लिए की गयी है । इस अभियान के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों  के नागरिकों को कंप्यूटर व डिजिटल उपकरणों जैसे टेबलेट, स्मार्टफोन आदि की ट्रेनिंग (Training citizens on computers and digital devices such as tablets, smartphones, etc.), ईमेल भेजना व रिसीव करना, इंटरनेट चलाना, इंटरनेट से सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना, इंटरनेट पर जानकारी ढूँढना व ऑनलाइन पेमेंट करना आदि। 

स अभियान को देश के ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों के लिए लागू किया गया है ।इस PMGDISHA 2021 का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों के उन परिवारों को प्रदान किया जायेगा । जिनके परिवार का कोई सदस्य डिजिटल तरीके से साक्षर ना हो तथा  उस परिवार में किसी को भी कंप्यूटर की जानकारी ना हो। एक परिवार में घर का मुखिया, उनकी पत्नी, बच्चे व माता-पिता आते हैं। इस योजना के अंतर्गत एक परिवार के एक सदस्य को कंप्यूटर सम्बन्धी ट्रेनिंग (A member of a family will be given computer related training ) दी जाएगी । 

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छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर च...

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के स...

छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना

  छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना   किसी भी राज्य मे पाए जाने वाले मिट्टी,खनिज,प्रचलित कृषि की प्रकृति को समझने के लिए यह आवश्यक है की उस राज्य की भौगोलिक संरचना को समझा जाए ।  छत्तीसगढ़ का निर्माण निम्न प्रकार के शैलों से हुआ है - आर्कियन शैल समूह  धारवाड़ शैल समूह  कड़प्पा शैल समूह  गोंडवाना शैल समूह  दक्कन ट्रैप शैल समूह  आर्कियन शैल समूह    पृथ्वी के ठंडा होने पर सर्वप्रथम इन चट्टानों का निर्माण हुआ। ये चट्टानें अन्य प्रकार की चट्टानों हेतु आधार का निर्माण करती हैं। नीस, ग्रेनाइट, शिस्ट, मार्बल, क्वार्टज़, डोलोमाइट, फिलाइट आदि चट्टानों के विभिन्न प्रकार हैं। यह भारत में पाया जाने वाला सबसे प्राचीन चट्टान समूह है, जो प्रायद्वीप के दो-तिहाई भाग को घेरता है। जब से पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व है, तब से आर्कियन क्रम की चट्टानें भी पाई जाती रही हैं। इन चट्टानों का इतना अधिक रूपांतरण हो चुका है कि ये अपना वास्तविक रूप खो चुकीं हैं। इन चट्टानों के समूह बहुत बड़े क्षेत्रों में पाये जाते हैं।   छत्तीसगढ़ के 50 % भू -भाग का निर्माण...