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गांधी युग (1917-1947)

चम्पारण सत्याग्रह (1917 )




भारत के इतिहास में 1917 से 1947 तक के समय को गांधी युग के नाम से जाना जाता हैं। इस काल खंड में तीन बड़े जनांदोलन हुए और इन जनांदोलनों का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया। इन जनांदोलनों के कारण भारत में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों को भारत को आजाद करना पड़ा।
इसलिए इस काल खंड को इतिहास में गांधी युग के नाम से जाना जाता है।
महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन 9 जनवरी 1915 को हुआ था भारत आगमन के पश्चात उन्होंने अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की थी तथा इस आश्रम के माध्यम से उन्होंने भारत को समझने का प्रयास प्रारंभ किया। इस कड़ी में उनका मार्गदर्शन गोपाल कृष्ण गोखले ने किया था फलत: गांधीजी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
उन्होंने पहली बार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर जनसभा को संबोधित किया था इस जनसभा के माध्यम से उन्होंने तत्कालीन भारत के विषय में जो विचार प्रकट किए उसकी वजह से उनकी ख्याति भारत में बहुत जल्द फैलने लगी।
उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के दौरन वहां निवासरत प्रवासी भारतीय मजदूरों के अधिकारों के लिए वहां की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह पर आधारित आंदोलन का नेतृत्व किया था जिसकी वजह से वे भारत में अपने आगमन के पूर्व ही प्रसिद्ध हो चुके थे।

चंपारण सत्याग्रह(1917).

भारत में गांधी जी का सत्याग्रह पर आधारित पहला आंदोलन चंपारण सत्याग्रह था।
इस सत्याग्रह का संबंध चंपारण जिले में प्रचलित तिनकठिया पद्धति से था। इस पद्धति के अंतर्गत किसानों को अपनी भूमि के 3/20 वे हिस्से में नील की खेती करनी पड़ती थी तथा उत्पादित नील को उन्हें अनुबंध के तहत नील कंपनी के मालिकों को बेचनी होती थी।
इस क्षेत्र में स्थित समस्त नील कंपनी के मालिक अंग्रेज थे तथा वे किसानों को बहुत कम दरों पर नील की फसल को कंपनी को बेचने के लिए मजबूर करते थे ।
नील की खेती से प्राप्त कम लाभ तथा जमीन की उत्पादकता कम होने की वजह से नील उत्पन्न करने वाले किसान इस व्यवस्था से नाखुश थे।
इसी बीच जर्मनी में कृत्रिम नील बनाने की विधि खोजे जाने की वजह से इस क्षेत्र में स्थित नील कंपनी के मालिकों को नुकसान होने लगा।
फलत: उन्होंने कृषकों को बहुत ज्यादा दरों पर नील की खेती से संबंधित अनुबंध से मुक्त होने का आश्वासन देने लगे।
कई कृषकों ने इस अनुबंध से मुक्त होने के लिए नील कंपनी के मालिकों को धन भी दे दिया परंतु नील मालिक अपनी बातों से मुकरने लगे जिसकी वजह से किसानों में काफी रोष था।
किसी बीच चंपारण जिले के एक किसान राजकुमार शुक्ला ने महात्मा गांधी से कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में मुलाकात की तथा गांधी जी से आग्रह किया कि वे इस कुप्रथा से किसानों को मुक्त कराएं।
उनके आग्रह पर गांधीजी चंपारण पहुंचे जहां पर उन्हें प्रारंभ में अंग्रेज अधिकारियों तथा न्यायालय का सामना करना पड़ा परंतु वह अंग्रेजों से बिना डरे इस क्षेत्र विशेष के समस्या से अवगत होने के लिए संकल्पित रहे जिसकी वजह से अंग्रेजों को झुकना पड़ा तथा कालांतर में उन्हें वहां प्रचलित कुप्रथा की समाप्ति एवं नील कंपनी के मालिकों के द्वारा किए जा रहे हैं अन्याय की जांच के लिए गठित समिति का सदस्य भी बनाया गया।
इस समिति के माध्यम से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि नील कंपनी के मालिक वास्तव में किसानों का शोषण कर रहे थे तथा उन्हें इस बात के लिए मजबूर किया गया कि वे किसानों से ली गई धनराशि का 25% किसानों को वापस करें।
इस तरह से गांधी जी ने अपनी दक्षिण अफ्रीका में आजमाएं गई सत्याग्रह की पद्धति का भारत में सफल प्रयोग किया।कालांतर में उन्होंने सत्याग्रह का प्रयोग 3 बड़े जन- आंदोलनों में भी किया।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • इस सत्याग्रह के पश्चात रविंद्रनाथ टैगोर ने गाँधी जी को महात्मा की उपाधि प्रदान की। 
  • इस सत्याग्रह के दौरान उनकी मुलाकात महादेव देसाई से हुई जो उनके निज सचिव बन गए। 
  • इस सत्याग्रह के दौरान उनकी मुलाकात राजेंद्र प्रसाद ,अनुग्रह नारायण सिन्हा तथा जे.बी.कृपलानी से हुई तथा वे गाँधी जी के हमेशा के लिए सहयोगी बन गए। 







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