Skip to main content

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद

 राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद



प्रश्न - राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद क्या है ?
उत्तर - यह एक सावधिक निकाय है। यह  17 अगस्त 1995 से अस्तित्व में आई। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का मूल उद्देश्य समूचे भारत में अध्यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित और समन्वित विकास करना, अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मानदंडों और मानकों का विनियमन तथा उन्हें समुचित रूप से बनाये रखना और तत्संबंधी विषय हैं.
प्रश्न - राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के कार्य क्या है ?
उत्तर - इसके निम्न कार्य है -
  1. शिक्षक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं से संबंधित सर्वेक्षण और अध्ययन करते हैं और उसके परिणाम को पुनः प्रकाशित करते हैं;

  2. शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में उपयुक्त योजनाओं और कार्यक्रमों की तैयारी के मामले में केंद्र और राज्य सरकार, विश्वविद्यालयों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मान्यता प्राप्त संस्थानों की सिफारिशें करना;

  3. देश में शिक्षक शिक्षा और उसके विकास का समन्वय और निगरानी करें;

  4. स्कूलों में या मान्यता प्राप्त संस्थानों में शिक्षक के रूप में नियोजित होने के लिए न्यूनतम योग्यता या व्यक्ति के संबंध में दिशा-निर्देश निर्धारित करें;

  5. शिक्षक शिक्षा में पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण की किसी भी निर्दिष्ट श्रेणी के लिए मानदंड रखना, जिसमें प्रवेश के लिए न्यूनतम पात्रता मानदंड और चयन की विधि शामिल है। उम्मीदवारों की अवधि, पाठ्यक्रम की अवधि, पाठ्यक्रम सामग्री और पाठ्यक्रम के मोड

  6. नए पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण शुरू करने के लिए, और शारीरिक और निर्देशात्मक सुविधाएं प्रदान करने, स्टाफिंग पैटर्न और कर्मचारियों की योग्यता प्रदान करने के लिए, मान्यता प्राप्त संस्थानों द्वारा अनुपालन के लिए दिशानिर्देशों को रखना;

  7. शिक्षक भर्ती के लिए परीक्षाओं के संबंध में मानक निर्धारित करना। इस तरह की परीक्षाओं और पाठ्यक्रमों या प्रशिक्षण की योजनाओं में प्रवेश के लिए मानदंड;

  8. मान्यता प्राप्त संस्थानों द्वारा ट्यूशन फीस और अन्य शुल्क प्रभार  के बारे में दिशानिर्देश देना;

  9. विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देना और संचालित करना; शिक्षक शिक्षा और उसके परिणामों का प्रसार;

  10. समय-समय पर परिषद द्वारा निर्धारित मानदंडों, दिशा निर्देशों और मानकों के कार्यान्वयन की समीक्षा करें और मान्यता प्राप्त संस्थान को उपयुक्त सलाह दें;

  11. मान्यता प्राप्त संस्थानों पर जवाबदेही बढ़ाने के लिए उपयुक्त प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली, मानदंड और तंत्र विकसित करना;

  12. शिक्षक शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए योजनाएँ बनाना और मान्यता प्राप्त संस्थानों की पहचान करना और शिक्षक विकास कार्यक्रमों के लिए नए संस्थान स्थापित करना;

  13. शिक्षक शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं; और

  14. ऐसे अन्य कार्य करते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा उसे सौंपे जा सकते हैं।

स्रोत NCTE.GOV.IN

Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद