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पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम 1986

 पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम 1986 



  1. यह अधिनियम भारत के पर्यावरण को सुरक्षित बनाये रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस अधिनियम की पृष्ठभूमि 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित पर्यावरण से सम्बंधित प्रथम वैश्विक सम्मेलन से जुड़ी हुई है। यह अधिनियम वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 ,जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण )अधिनियम 1974 तथा वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण )1981का ही विस्तार है। 
  2. इसके अलावा इस अधिनियम को पारित करने का तात्कालिक कारण भोपाल गैस कांड की भयावह घटना भी है। 
  3. यह अधिनियम पूरे भारत में प्रभावी है। 
  4. यह अधिनियम 23 मई 1986 को प्रभावी हुआ है। 
  5. इस अधिनियम में 4 अध्याय तथा 26 धाराएँ है। 

परिभाषा 

इस अधिनियम के धारा 2 में इस अधिनियम से जुड़े विभिन्न पदों का परिभाषा दिया गया है। 

(क) “पर्यावरण” के अन्तर्गत जल, वायु और भूमि हैं और वह अन्तरसम्बन्ध(inter relation ) है जो जल, वायु और भूमि तथा मानवों, अन्य जीवित प्राणियों, पादपों और सूक्ष्मजीव और सम्पत्ति के बीच विद्यमान है;
(ख) “पर्यावरण प्रदूषक” से ऐसा ठोस, द्रव या गैसीय पदार्थ अभिप्रेत (

Purporting)है जो ऐसी सान्द्रता में विद्यमान है जो पर्यावरण के लिये क्षतिकर हो सकता है या जिसका क्षतिकर होना सम्भाव्य (जो हो सकता हो या जिसके होने की संभावना हो)है;

(ग) “पर्यावरण प्रदूषण” से पर्यावरण में पर्यावरण प्रदूषकों का विद्यमान होना अभिप्रेत (जो अभिप्राय का विषय बना हो)है;

(घ) किसी पदार्थ के सम्बन्ध में, “हथालना” से ऐसे पदार्थ का विनिर्माण, प्रसंस्करण, अभिक्रियान्वयन, पैकेज, भण्डारण, परिवहन, उपयोग, संग्रहण, विनाश, सम्परिवर्तन, विक्रय के लिये प्रस्थापना, अन्तरण या वैसी ही संक्रिया(डाटा प्रोसेसिंग जिसमें परिणाम पूरी तरह से किसी नियम द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है ) अभिप्रेत है;

(ङ) “परिसंकटमय पदार्थ” से ऐसा पदार्थ या निर्मित अभिप्रेत है जो अपने रासायनिक या भौतिक-रासायनिक गुणों के या हथालने के कारण मानवों, अन्य जीवित प्राणियों, पादपों, सूक्ष्मजीव, सम्पत्ति या पर्यावरण को अपहानि कारित(नुकसान पहुँचाना ) कर सकती है;

धारा 3 

इस धारा में उन उपायों के विषय में बताया गया है जिसके द्वारा केंद्र सरकार पर्यावरण की गुणवत्ता में वृद्धि कर  सकता है। जो की निम्न है -
  1. केन्द्रीय सरकार को ऐसे सभी उपाय करने की शक्ति होगी जो वह पर्यावरण के संरक्षण और उसकी क्वालिटी में सुधार करने तथा पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन(किसी अनुचित कार्य, अवस्था आदि को रोकने की क्रिया) के लिये आवश्यक समझे।
  2.  पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन के लिये राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसको निष्पादित करना।
  3. पर्यावरण के विभिन्न आयामों के सम्बन्ध में उसकी क्वालिटी के लिये मानक  अधिकथित( procedure laid down) करना।
  4.  विभिन्न स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निस्सारण (ejection) के मानक अधिकथित करना।
  5. ऐसी दुर्घटनाओं के निवारण के लिये प्रक्रिया और रक्षेपाय अधिकथित करना जिनसे पर्यावरण प्रदूषण हो सकता है और ऐसी दुर्घटनाओं के लिये उपचारी उपाय अधिकथित करना;
  6.  परिसंकटमय पदार्थों को हथालने के लिये प्रक्रिया और रक्षोपाय अधिकथित करना;
  7.  ऐसी विनिर्माण प्रक्रियाओं, सामग्री और पदार्थ की परीक्षा करना जिनसे पर्यावरण प्रदूषण होने की सम्भावना है;
  8. पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के सम्बन्ध में अन्वेषण और अनुसन्धान करना और प्रायोजित करना;
  9.  किसी परिसर, संयंत्र, उपस्कर, मशीनरी, विनिर्माण या अन्य प्रक्रिया सामग्री या पदार्थों का निरीक्षण करना और ऐसे प्राधिकरणों, अधिकारियों या व्यक्तियों को, आदेश द्वारा, ऐसे निर्देश  देना जो वह पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन के लिये कार्रवाई करने के लिये आवश्यक समझे;
  10.  ऐसे कृत्यों को कार्यान्वित करने के लिये पर्यावरण प्रयोगशालाओं और संस्थाओं की स्थापना करना या उन्हें मान्यता देना, जो इस अधिनियम के अधीन ऐसी पर्यावरण प्रयोगशालाओं और संस्थाओं को सौंपे जाएँ;
  11.  पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित विषयों की बाबत जानकारी एकत्र करना और उसका प्रसार करना;
  12. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन से सम्बन्धित निर्देशिकाएँ , संहिताएँ या पथ प्रदर्शिकाएँ तैयार करना;
  13. ऐसे अन्य विषय, जो केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों का प्रभाव पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिये आवश्यक या समीचीन समझे।

धारा 4 

इस धारा के अंतर्गत केंद्र सरकार ऐसे पदनामों से जैसा वह उचित समझे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकेंगी तथा उन्हें ऐसी शक्तियों और कृत्य के अधिकृतय  कर सकेगी जैसे वह उचित समझें।  

 धारा 5

केन्द्रीय सरकार, किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों के प्रयोग और अपने कृत्यों के निर्वहन में किसी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकरण को निदेश दे सकेगी और ऐसा व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकरण ऐसे निर्देशों का अनुपालन करने के लिये आबद्ध होगा।

इस धारा के अधीन निदेश देने की शक्ति के अन्तर्गत, -

(क) किसी उद्योग, संक्रिया या प्रक्रिया को बन्द करने, उसका प्रतिषेध या विनियमन करने का निदेश देने की शक्ति है; या
(ख) विद्युत या जल या किसी अन्य सेवा के प्रदाय को रोकने या विनियमन करने का निदेश देने की शक्ति है।

धारा 5 क 

 राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपील


कोई व्यक्ति जो, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 (2010 का 19) के प्रारम्भ होने पर या उसके पश्चात धारा 5 के अधीन जारी किन्हीं निदेशों से व्यथित है, वह राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 3 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय हरित अधिकरण को, उस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार, अपील फाइल कर सकेगा।}

धारा 6 

केंद्रीय सरकार निम्न में से किसी भी विषय पर नियमावली बनाने के लिए सशक्त है -
  1. वायु ,जल और भूमि की गुणवत्ता के मानक 
  2. विविध क्षेत्रों में विविध पर्यावरण प्रदूषकों को अधिकतम स्वीकार्य सीमा 
  3. खतरनाक वस्तुओं के संचालन में रोक तथा प्रतिबन्ध 
  4. इसमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण होने वाली विभिन्न दुर्घटनाओं को रोकने व प्रतिबंधित करने के उपाय सम्मिलित हैं। 

धारा 12 

पर्यावरण प्रयोगशालाएँ


(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, -

(क) एक या अधिक पर्यावरण प्रयोगशालाएँ स्थापित कर सकेगी;
(ख) इस अधिनियम के अधीन किसी पर्यावरण प्रयोगशाला को सौंपे गए कृत्य करने के लिये एक या अधिक प्रयोगशालाओं या संस्थानों को पर्यावरण प्रयोगशालाओं के रूप में मान्यता दे सकेगी।
(2) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निम्नलिखित को विनिर्दिष्ट करने के लिये नियम बना सकेगी, अर्थात:-

(क) पर्यावरण प्रयोगशाला के कृत्य;
(ख) विश्लेषण या परीक्षण के लिये वायु, जल, मृदा या अन्य पदार्थ के नमूने उक्त प्रयोगशाला को भेजने के लिये प्रक्रिया, उस पर प्रयोगशाला की रिपोर्ट का प्रारूप और ऐसी रिपोर्ट के लिये सन्देय फीस;
(ग) ऐसे अन्य विषय जो उस प्रयोगशाला को अपने कृत्य करने के लिये समर्थ बनाने के लिये आवश्यक या समीचीन हैं।

धारा 15 

अधिनियमों तथा नियमों, आदेशों और निदेशों के उपबन्धों के उल्लंघन के लिये शास्ति(पेनैलिटी)


(1) जो कोई इस अधिनियम के उपबन्धों या इसके अधीन बनाए गए नियमों या निकाले गए आदेशों या दिये गए निदेशों में से किसी का पालन करने में असफल रहेगा या उल्लंघन करेगा, वह ऐसी प्रत्येक असफलता या उल्लंघन के सम्बन्ध में कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से और यदि ऐसे असफलता या उल्लंघन चालू रहता है तो अतिरिक्त जुर्मानेे से, जो ऐसी प्रथम असफलता या उल्लंघन के लिये दोषसिद्धि के पश्चात ऐसे प्रत्येक दिन के लिये जिसके दौरान असफलता या उल्लंघन चालू रहता है, पाँच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।

(2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट असफलता या उल्लंघन दोषसिद्धि की तारीख के पश्चात, एक वर्ष की अवधि से आगे भी चालू रहता है तो अपराधी, कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।

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