Skip to main content

वैशेषिक दर्शन

वैशेषिक दर्शन 

वैशेषिक दर्शन


 भारतीय दर्शन अत्यंत प्राचीन दर्शन है। इस दर्शन में प्रमुख स्थान वैशेषिक दर्शन का है। इस दर्शन के प्रणेता महर्षि कणाद माने जाते है। इस दर्शन को इसके अलावा औलूक्य दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है की कणाद का वास्तविक नाम उलूक था। 

इस दर्शन के लिए वैशेषिक नाम के प्रयोग के निम्न कारण है -

  1. विशेष को एक पदार्थ मानने के कारण इसे वैशेषिक कहा जाता है। 
  2. पदार्थों को  विशेष महत्व  देने के कारण इसे वैशेषिक कहा जाता है। 
  3. सांख्य आदि दर्शनों से विशिष्ट होने के कारण इसे वैशेषिक कहा जाता है।

इस दर्शन का लक्ष्य -

इस दर्शन का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति कर दुखों से मुक्त होना है। यह मोक्ष प्राप्ति के लिए इस भौतिक जगत में पाए जाने वाले छः पदार्थों के ज्ञान को आवश्यक मनाता है। यह अपनी बातों को वेदों के माध्यम से प्रामाणिक सिद्ध करता है। अतः यह आस्तिक दर्शन के अंतर्गत आता है। 

पदार्थ 

 इस दर्शन में पदार्थ से अभिप्राय वह सभी वस्तुएँ है जो दुनिया में पायी जाती है। इसके अंतर्गत दृश्य ,अदृश्य ,भौतिक ,अभौतिक ,कर्म ,गुण आदि शामिल है। 

पदार्थों के प्रकार 

इस दर्शन में अनगिनत पदार्थों को मुख्यतः छः कोटियों में विभाजित किया गया है -
  1. द्रव्य 
  2. गुण 
  3. कर्म 
  4. सामान्य 
  5. विशेष 
  6. समवाय 
  7. अभाव (इसे बाद में जोड़ा गया है )

परमाणुवाद 

इसके माध्यम से वैशेषिक दर्शन सृष्टि सम्बन्धी सिद्धांत को प्रस्तुत करता है। इस दर्शन में यह माना गया है कि सृष्टि का निर्माण असंख्य सूक्ष्म अणुओं (परमाणुओं) से हुआ है।

परमाणुवाद की विशेषता 

  1. यह अविभाज्य है। 
  2. यह अविनाशी है। 
  3. यह गोलाकार है। 
  4. यह गतिहीन है। 
  5. यह अचेतन और निष्क्रिय है। 
  6. परमाणुओं में गति एक विशिष्ट धर्म के कारण होता है।  महर्षि कणाद ने इस धर्म को अदृष्ट नाम दिया है। 
  7. कालांतर में परमाणुओं की गति का कारण ईश्वर को माना गया है। 

परमाणुओं के प्रकार 

परमाणुओं के चार प्रकार है -
  1. पार्थिव 
  2. जलीय 
  3. तैजस 
  4. वायवीय 

सृष्टि का निर्माण निम्न प्रकार के परमाणुओं  संयोजन से होता है -

  1. परमाणु - एक प्रकार के परमाणु 
  2. दवयणुक - दो परमाणुओं के संयोजन से निर्मित 
  3. त्र्यणुक - तीन परमाणुओं के संयोजन से निर्मित 

भारतीय परमाणुवाद तथा यूनानी परमाणुवाद में अंतर 

  1. यूनानी दार्शनिक विभिन्न परमाणुओं में एक ही प्रकार के गुणों की बात करते है मगर इस बात पर विश्वास करते है की उनके आकर भिन्न होते है ,वही भारतीय दार्शनिक यह मानते है की परमाणु में मात्रा तथा गुण दोनों भिन्न होते है। 
  2. यूनानी दार्शनिक यह मानते है की आत्मा भी परमाणु से निर्मित है जबकि भारतीय दार्शनिक आत्मा को नित्य तथा बिना किसी अवयव का बना हुआ मानते है। 
  3. यूनानी दार्शनिक यह मानते है की परमाणु में गति होती है जबकि भारतीय दार्शनिक परमाणु को गतिहीन मानते है। 
स्रोत 
  1. भारतीय दर्शन ,शोभा निगम 
  2. भारतीय दर्शन की रुपरेखा ,हरेंद्र प्रसाद सिन्हा 








Popular posts from this blog

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर च...

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के स...

छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना

  छत्तीसगढ़ की भू-गर्भिक संरचना   किसी भी राज्य मे पाए जाने वाले मिट्टी,खनिज,प्रचलित कृषि की प्रकृति को समझने के लिए यह आवश्यक है की उस राज्य की भौगोलिक संरचना को समझा जाए ।  छत्तीसगढ़ का निर्माण निम्न प्रकार के शैलों से हुआ है - आर्कियन शैल समूह  धारवाड़ शैल समूह  कड़प्पा शैल समूह  गोंडवाना शैल समूह  दक्कन ट्रैप शैल समूह  आर्कियन शैल समूह    पृथ्वी के ठंडा होने पर सर्वप्रथम इन चट्टानों का निर्माण हुआ। ये चट्टानें अन्य प्रकार की चट्टानों हेतु आधार का निर्माण करती हैं। नीस, ग्रेनाइट, शिस्ट, मार्बल, क्वार्टज़, डोलोमाइट, फिलाइट आदि चट्टानों के विभिन्न प्रकार हैं। यह भारत में पाया जाने वाला सबसे प्राचीन चट्टान समूह है, जो प्रायद्वीप के दो-तिहाई भाग को घेरता है। जब से पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व है, तब से आर्कियन क्रम की चट्टानें भी पाई जाती रही हैं। इन चट्टानों का इतना अधिक रूपांतरण हो चुका है कि ये अपना वास्तविक रूप खो चुकीं हैं। इन चट्टानों के समूह बहुत बड़े क्षेत्रों में पाये जाते हैं।   छत्तीसगढ़ के 50 % भू -भाग का निर्माण...