Skip to main content

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास

 छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास भाग 2 

1857 की क्रांति के पश्चात भारत में शनैः शनैः राष्ट्रवाद का उद्भव होने लगा। राष्ट्रवाद के उद्भव के पीछे निम्न कारण थे  -
  1. पाश्चात्य शिक्षा 
  2. अंग्रेजी भाषा का विकास 
  3. रेल्वे का विकास 
  4. टेलीग्राफ का प्रसार 
  5. प्रशासनिक एकीकरण 
  6. नस्लवाद 
छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं था। यहाँ भी ऐसे कई विद्वान थे जो राष्ट्रवादी भावना से भरे हुए थे तथा भारत को अंग्रेजो के बंधन से मुक्त करवाना चाहते थे। इनमे से कुछ प्रमुख नेता निम्न थे - पंडित सुंदरलाल शर्मा ,माधवराव सप्रे ,सी.एम.ठक्कर ,पंडित रविशंकर शुक्ल ,ठाकुर प्यारेलाल आदि। 
  1. छत्तीसगढ़ के उपरोक्त नेताओं ने पहली बार वर्ष 1891 में नागपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। 
  2. वर्ष 1907 में कांग्रेस का अधिवेशन सूरत में हुआ। इस अधिवेशन में छत्तीसगढ़ से पंडित सुंदरलाल शर्मा ने भाग लिया। इस अधिवेशन के दौरान ही कांग्रेस के नरम दल तथा गरम दल के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष पद तथा स्वदेशी आंदोलन के विस्तार को लेकर दोनों के मध्य विवाद हो गया. इस विवाद के बीच सुंदरलाल शर्मा ने बाल गंगाधर तिलक को मंच में चढ़ने में मदद की थी। 
  3. छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस पर इसका प्रभाव पड़ा। इसी दौरान जब रायपुर में कांग्रेस की जिला स्तरीय बैठक हुई तब वन्दे मातरम के गायन को लेकर नरम दल तथा गरम दल में विवाद की स्थिति निर्मित हो गयी थी। इस गतिरोध को टालने का कार्य पंडित रविशंकर शुक्ल ने किया। 
  4. छत्तीसगढ़ में नरम दल के नेता निम्न थे - पंडित रविशंकर शुक्ल ,हरिसिंह गौर ,पंडित सुंदरलाल शर्मा आदि। 
  5. छत्तीसगढ़ में गरम दल के नेता निम्न थे - दादा साहेब खापर्डे ,माधवराव सप्रे आदि। 
  6. बिलासपुर के प्रमुख कांग्रेसी नेता निम्न थे - ई.राघवेन्द्र राव ,कुंजबिहारी अग्निहोत्री ,बैरिस्टर छेदीलाल ठाकुर आदि थे। 
  7. धमतरी के प्रमुख कांग्रेसी नेता निम्न थे - छोटेलाल श्रीवास्तव ,पंडित सुंदरलाल शर्मा ,नारायण लाल मेघावाले आदि। 
  8. राजनांदगाव के प्रमुख नेता निम्न थे- ठाकुर प्यारेलाल ,शिवलाल ,शंकर खरे आदि। 
  9. दुर्ग के प्रमुख नेता निम्न थे - रत्नाकर झा ,विश्वनाथ तामस्कर ,नरसिंह प्रसाद अग्रवाल ,घनश्याम सिंह गुप्ता आदि।
  10.  छत्तीसगढ़ में होमरूल आंदोलन(1915 ई ) -छत्तीसगढ़ में होमरूल आंदोलन के सूत्रधार बाल गंगाधर तिलक थे। उनकी अगुवाई में छत्तीसगढ़ में होमरूल आंदोलन को नेतृत्व पंडित रविशंकर शुक्ल ,मूलचंद बागड़ी ,माधवराव सप्रे आदि ने प्रदान किया गया। 
  11. 1915 में ही सुंदरलाल शर्मा ने राजिम में किसान सभा का आयोजन किया था। इस कार्य में उनका साथ विष्णुदत्त शुक्ला ने दिया था। 
  12. 1915 में गोपाल कृष्ण गोखले का आगमन रायपुर में हुआ था। 
  13. खिलाफत आंदोलन के दौरान पंडित रविशंकर शुक्ल ने रायपुर में एक प्रसिद्ध भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने कहा था की - "अब हम लोग हिन्दू -मुस्लिम नहीं रहे ,बल्कि सही अर्थो में हिंदुस्तानी है "






Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद