Skip to main content

छत्तीसगढ़ में वन सम्पदा

 छत्तीसगढ़ में वन सम्पदा 



  1. छत्तीसगढ़ में सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल भूमि के 59772 वर्ग किलोमीटर भूमि पर वन है। जो की कुल भूमि के 44.21 % क्षेत्र पर विस्तृत है।   
  2. स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार छत्तीसगढ़ के लगभग 41.13 % भूमि पर वन है। जो की देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग 12.25 % है। 
  3. इस रिपोर्ट के अनुसार अत्यंत घने वन का क्षेत्रफल 7068 वर्ग किलोमीटर ,आंशिक घने वन 32198 वर्ग किलोमीटर ,खुले वन का क्षेत्रफल 16345 वर्ग किलोमीटर है। 
  4. बस्तर को साल वनो का द्वीप कहा जाता है। 
  5. यहाँ पर समर्थन मूल्य पर 52 वनोपज की खरीदी सरकार के द्वारा की जाती है। 
  6. आरक्षित वनों का कुल क्षेत्रफल 25782.17 वर्ग किलोमीटर है ,जो प्रदेश के कुल वनो का 43.13 % है। 
  7. संरक्षित वनो का कुल क्षेत्रफल 24036.10 वर्ग किलोमीटर है ,जो प्रदेश के कुल वनो का 40.22 % है। 
  8. अवर्गीकृत वनों का कुल क्षेत्रफल 9954.13 वर्ग किलोमीटर है ,जो प्रदेश के कुल वनो का 16.65 % है। 
  9. छत्तीसगढ़ राज्य वन क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में चौथे स्थान पर है।
  10. वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान पर है।
  11. नारायणपुर के कुरसेल घाटी में उच्च प्रजाति के सागौन पाए जाते है। 

प्राकृतिक आधारों पर इसे निम्न तीन भागो में बाँट सकते है -
  1. मिश्रित पर्णपाती - कुल वनों के 43.52 % भाग पर पाया जाता है। 
  2. साल वन - कुल वनों के 40.56 % भाग पर पाया जाता है। 
  3. सागौन वन - कुल वनो के 9.42 % भाग पर पाया जाता है। 
छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वन नारायणपुर में है। इसके कुल क्षेत्रफल के 81.59 % भूमि पर वन है। सबसे कम वन दुर्ग में है। इसके कुल क्षेत्रफल के 9.10 % भूमि पर वन है। 

बाँस वन 

  1. इसे लघु वनोपज के श्रेणी में रखा गया है। प्रदेश में मुख्यतः नर बाँस पाया जाता है। 
  2. 1971 में बैनेट एवं गौर के अनुसार प्रदेश में बाँस की 9 प्रजातियाँ पायी जाती है। 
  3. बिसेन तथा उज्जैनी के अनुसार प्रदेश में बाँस की 10 प्रजातियाँ पायी जाती है।  
  4. राज्य में बाँस वनों का क्षेत्रफल 6565 वर्ग किमी है ,जो कुल वनों का लगभग 11% है।

Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न