Skip to main content

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास 

छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास


1857 की क्रांति तथा छत्तीसगढ़ 

वीर नारायण सिंह की शहादत 

  1. 1857 की क्रांति के पहले ही छत्तीसगढ़ में अँग्रेज़ों के विरुद्ध बगावत के सुर उठने लगे थे। 
  2. वीर नारायण सिंह इस दिशा में अन्य लोगों के पथप्रदर्शक थे। 
  3. वीर नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार थे। वह बिंझवार जनजाति से थे। 
  4. इनकी ज़मींदारी में  जब अकाल पड़ गया तब उन्होंने गरीबो तथा भूखे लोगों की बहुत मदद की तथा इसी क्रम में उन्होंने माखन नामक व्यापारी से भी लोगों की मदद की बात कही परन्तु उसके द्वारा ऐसा ना करने पर उन्होंने उनके गोदाम से अनाज लूटकर उसे गरीबों में बाँट दिया। इस घटना की शिकायत माखन के द्वारा अंग्रेजों से की गयी। इस शिकायत की वजह से अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। किन्तु ,अंग्रेजी सेना में कार्यरत भारतीयों सैनिकों के द्वारा इन्हें जेल से भागने में मदद की गयी।  
  5. जेल से भागने के उपरांत कप्तान स्मिथ के नेतृत्व में एक टुकड़ी इन्हें पकड़ने के लिए भेजी गयी। इस टुकड़ी ने देवरी के जमींदार के सहयोग से वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 
  6. इनकी गिरफ्तारी के पश्चात 10 DEC 1857  को जयस्तंभ चौक(रायपुर ) में इन्हें फांसी दे दी गयी। 

हनुमान सिंह - छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेय 

  1. मंगल पांडेय भारतीय इतिहास में वह पहला सैनिक थे जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत कर दिया था। वह बैरकपुर (पश्चिम बंगाल ) में पदस्थ था। 
  2. मंगल पांडेय से ही प्रेरणा लेकर हनुमान सिंह ने छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 
  3. वह तीसरी नियमित सेना में मैगजीन लश्कर के पद पर कार्यरत था। 
  4. उसकी नियुक्ति रायपुर में थी। 
  5. उसने 18 जनवरी 1858 को सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी। 
  6. इस घटना में उनके साथ लगभग 17 अन्य सैनिक भी शामिल थे। 
  7. घटना के बाद हनुमान सिंह ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट को भी  मारने का प्रयत्न किया परन्तु इसमें वह असफल रहा। इस घटना को अंजाम देने के पश्चात वह भागने में सफल रहा। 

सुरेंद्र साय का विद्रोह 

  1. इनका सम्बन्ध सम्बलपुर राजघराने से था। 
  2. यह सम्बलपुर राजघराने के वैध वारिसों में एक थे। परन्तु अंग्रेजों के द्वारा नारायण साय को सम्बलपुर का राजा घोषित कर दिया गया। वह जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थे तथा राजसत्ता के वैध वारिस नहीं थे। 
  3. इसके फलस्वरूप इन्होंने अँग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में इनका साथ सम्बलपुर के आसपास के आदिवासियो ने भी दिया। 
  4. कालांतर में अंग्रेजों के द्वारा इन्हें गिरफ़्तार कर असीरगढ़ के किले में भेज दिया गया। इसी किले में 28 फ़रवरी 1884 को इनकी मृत्यु हो गयी। 

उदयपुर का विद्रोह 

  1. यह सरगुजा राजघराने की एक शाखा थी। इस शाखा के राजा कल्याण सिंह थे जिन्हें 1852 में मानव हत्या के दोष के तहत अंग्रेजों ने राजा के पद से हटा दिया। 
  2. 1857 के विद्रोह के दौरान राजा ने अपने सैनिकों की सहायता से अंग्रेजों को पराजित कर अपनी सत्ता स्थापित कर ली. परन्तु यह सत्ता अल्पकाल के लिए ही इनके पास रही। 
  3. 1859 में राजा तथा इसके भाई को सरगुजा के राजा की सहायता से बंदी बना लिया गया। 
  4. 1860 में उदयपुर का राज्य सरगुजा को सौंप दिया गया। 



Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद