छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास
1857 की क्रांति तथा छत्तीसगढ़
वीर नारायण सिंह की शहादत
- 1857 की क्रांति के पहले ही छत्तीसगढ़ में अँग्रेज़ों के विरुद्ध बगावत के सुर उठने लगे थे।
- वीर नारायण सिंह इस दिशा में अन्य लोगों के पथप्रदर्शक थे।
- वीर नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार थे। वह बिंझवार जनजाति से थे।
- इनकी ज़मींदारी में जब अकाल पड़ गया तब उन्होंने गरीबो तथा भूखे लोगों की बहुत मदद की तथा इसी क्रम में उन्होंने माखन नामक व्यापारी से भी लोगों की मदद की बात कही परन्तु उसके द्वारा ऐसा ना करने पर उन्होंने उनके गोदाम से अनाज लूटकर उसे गरीबों में बाँट दिया। इस घटना की शिकायत माखन के द्वारा अंग्रेजों से की गयी। इस शिकायत की वजह से अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। किन्तु ,अंग्रेजी सेना में कार्यरत भारतीयों सैनिकों के द्वारा इन्हें जेल से भागने में मदद की गयी।
- जेल से भागने के उपरांत कप्तान स्मिथ के नेतृत्व में एक टुकड़ी इन्हें पकड़ने के लिए भेजी गयी। इस टुकड़ी ने देवरी के जमींदार के सहयोग से वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
- इनकी गिरफ्तारी के पश्चात 10 DEC 1857 को जयस्तंभ चौक(रायपुर ) में इन्हें फांसी दे दी गयी।
हनुमान सिंह - छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेय
- मंगल पांडेय भारतीय इतिहास में वह पहला सैनिक थे जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत कर दिया था। वह बैरकपुर (पश्चिम बंगाल ) में पदस्थ था।
- मंगल पांडेय से ही प्रेरणा लेकर हनुमान सिंह ने छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- वह तीसरी नियमित सेना में मैगजीन लश्कर के पद पर कार्यरत था।
- उसकी नियुक्ति रायपुर में थी।
- उसने 18 जनवरी 1858 को सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी।
- इस घटना में उनके साथ लगभग 17 अन्य सैनिक भी शामिल थे।
- घटना के बाद हनुमान सिंह ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट को भी मारने का प्रयत्न किया परन्तु इसमें वह असफल रहा। इस घटना को अंजाम देने के पश्चात वह भागने में सफल रहा।
सुरेंद्र साय का विद्रोह
- इनका सम्बन्ध सम्बलपुर राजघराने से था।
- यह सम्बलपुर राजघराने के वैध वारिसों में एक थे। परन्तु अंग्रेजों के द्वारा नारायण साय को सम्बलपुर का राजा घोषित कर दिया गया। वह जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थे तथा राजसत्ता के वैध वारिस नहीं थे।
- इसके फलस्वरूप इन्होंने अँग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में इनका साथ सम्बलपुर के आसपास के आदिवासियो ने भी दिया।
- कालांतर में अंग्रेजों के द्वारा इन्हें गिरफ़्तार कर असीरगढ़ के किले में भेज दिया गया। इसी किले में 28 फ़रवरी 1884 को इनकी मृत्यु हो गयी।
उदयपुर का विद्रोह
- यह सरगुजा राजघराने की एक शाखा थी। इस शाखा के राजा कल्याण सिंह थे जिन्हें 1852 में मानव हत्या के दोष के तहत अंग्रेजों ने राजा के पद से हटा दिया।
- 1857 के विद्रोह के दौरान राजा ने अपने सैनिकों की सहायता से अंग्रेजों को पराजित कर अपनी सत्ता स्थापित कर ली. परन्तु यह सत्ता अल्पकाल के लिए ही इनके पास रही।
- 1859 में राजा तथा इसके भाई को सरगुजा के राजा की सहायता से बंदी बना लिया गया।
- 1860 में उदयपुर का राज्य सरगुजा को सौंप दिया गया।
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