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छत्तीसगढ़ में पायी जाने वाली मिट्टियाँ

 छत्तीसगढ़ में पायी जाने वाली मिट्टियाँ  

छत्तीसगढ़ में मिट्टियाँ 

छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है। उल्लेखनीय है की इन मिट्टिओं के निर्माण में विभिन्न कारकों की भूमिका होती है -
  1. चट्टानों की प्रकृति 
  2. जलवायु 
  3. वर्षा 
  4. वायु 
  5. वनस्पति 
इस आधार पर छत्तीसगढ़ में निम्न प्रकार के मिट्टियाँ पाई जाती है -

काली मिट्टी -

इस मिट्टी को छत्तीसगढ़ में कन्हार मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का निर्माण यह दक्कन ट्रैप के लावा चट्टानों की अपक्षय अर्थात टूटने फूटने से हुई है। इसमें नाइट्रोजन,पोटास,ह्यूमस की कमी होती है। इस मिट्टी में मैग्नेशियम,चूना,लौह तत्व तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइड एवं जीवांश(Humus) की उपस्थिति के कारण होता है।
इस मिट्टी में जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी गुण के कारण काली मिट्टी को स्वतः जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में इसका विस्तार कवर्धा ,बेमेतरा, कुरुद ,महासमुंद,राजिम आदि स्थलों पर है। 
यह मिट्टी चने ,सोयाबीन आदि के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

लाल -पीली मिट्टी 

इस मिट्टी को छत्तीसगढ़ में मटासी मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।इसके अलावा इसे दोमट मिट्टी भी कहा जाता है। यह  फसलों के लिए अत्यन्त उर्वर (उपजाऊ)) होती है। इसमें लगभग 40 % सिल्ट, 20% चिकनी मिट्टी तथा शेष 40% बालू होता है। पानी तथा वायु के प्रवेश हेतु अर्थात् अधिक छिद्रिल होने के कारण फसलों की उर्वरा शक्ति अधिक होती है। ऐसी मिट्टी अपने कुल भार का ५०% पानी रोकने की क्षमता रखती है। इस मिट्टी में पोषक पदार्थों की मात्रा भी अधिक होती है।

दोमट मिट्टी में सिल्ट, बालू और चिकनी मिट्टी के अंश अलग-अलग होने से भिन्न-भिन्न प्रकार के दोमट बनते हैं जैसे बलुई दोमट, सिल्टी दोमट, चिकनी दोमट, बलुई चिकनी दोमट आदि। चिकनी मिट्टी की अपेक्षा दोमट मिट्टी में अधिक पोषक पदार्थ, अधिक नमी, अधिक ह्यूमस होता है। दोमट मिट्टी की जुताई चिकनी मिट्टी की अपेक्षा आसान होती है। इसमें सिल्टी मिट्टी की अपेक्षा हवा और पानी को छानने तथा जल-निकास की बेहतर क्षमता होती है।

दोमट मिट्टी बागवानी तथा कृषि कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है। यदि किसी बलुई या चिकनी मिट्टी में भी अधिक मात्रा में जैविक पदार्थ मिले हों तो उसके गुण भी दोमट जैसे ही होंगे।

यह छत्तीसगढ़ के 60 % भाग में विस्तृत है।

लैटेराइट मिट्टी

इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता और शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है. इसमें आयरन और सिलिका की बहुलता होती है. शैलों यानी रॉक्स की टूट-फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट और भूमिगत जलवायी लैटेराइट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. लैटेराइट मिट्टी चाय की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है.

छत्तीसगढ़ में इस मिट्टी को भाटा मिट्टी कहते है। 

इसका विस्तार छत्तीसगढ़ में जशपुर -सामरी पाट प्रदेश ,पाटन ,तिल्दा ,भाटापारा आदि में है। 

लाल रेतीली मिट्टी 

इसका छत्तीसगढ़ में विस्तार बस्तर संभाग में है। इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों के अपरदन की वजह से हुआ है।
यह छत्तीसगढ़ के लगभग 30 से 35 प्रतिशत भू -भाग पर विस्तृत है। इसमें नाइट्रोजन,पोटास,ह्यूमस की कमी होती है। यह मिट्टी मोटे अनाज के लिए उपयुक्त है। 

लाल दोमट मिट्टी 

यह छत्तीसगढ़ के कोंटा एवं दंतेवाड़ा के आसपास के क्षेत्रों में विस्तृत है। इसमें रेत की अपेक्षा क्ले की मात्रा अधिक होती है। 

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