दंडकारण्य का पठार
दंडकारण्य का पठार |
यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।
इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।
बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।
अपवाह तंत्र
यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।
वनस्पति
यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) में पाए जाने वाले सैगोन वृक्ष दुनिया के सबसे अच्छे सैगोन के वृक्ष है।
इस क्षेत्र में कांगेर घाटी तथा इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान है एवं पामेड़ ,भैरमगढ़ तथा कुटुरु गेम सेंचुरी स्थित है। इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में प्रोजेक्ट टाइगर का संचालन भी किया जा रह है। वही कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में कुटुमसर तथा कैलाश गुफा है जहाँ चूने पत्थर से निर्मित कई प्रकार की आकृतियाँ पायी जाती है।
भैसदरहा नामक स्थल में प्राकृतिक रूप से मगरमच्छ पाए जाते है।
जनजाति
गौर नृत्य |
यह क्षेत्र जनजातियों के दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ अबुझमाड़िया जनजाति का निवास स्थल है। इस जनजाति को भारत सरकार के द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्रदान किया गया है। इस जनजाति का प्रमुख नृत्य ककसार है।
मुरिया जनजाति इस क्षेत्र में बहुतायत में निवास करते है। इस जनजाति में प्रचलित युवा गृह को घोटुल कहते है। घोटुल का प्रमुख नृत्य मांदरी तथा डिटोंग है। उल्लेखनीय है की डिटोंग नृत्य में गैड़ी का प्रयोग किया जाता है तथा इसे पुरषों के द्वारा किया जाता है।
माड़िया जनजाति के द्वारा गौर नृत्य किया जाता है।
खनिज़
इस क्षेत्र में धारवाड़ शैल समूह का विस्तार है जिसकी वजह से यह खनिज के दृष्टिकोण से काफी समृद्ध है। यहाँ की बैलाडीला ,किरंदुल में उच्चस्तरीय लोह अयस्क पाया जाता है। इसके अतिरिक्त नारायणपुर जिले में स्थित रावघाट से भिलाई स्थित स्टील प्लांट के लिए लौह अयस्क की आपूर्ति की जानी है।
दंतेवाड़ा जिला स्थित कटेकल्याण,बचेली ,सुकमा जिले में स्थित चिंतलनार,गोविन्दपाल में टिन अयस्क पाया जाता है। उल्लेखनीय है की पुरे भारत में तीन अयस्क का उत्पादन छत्तीसगढ़ में ही होता है।
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