Skip to main content

जशपुर सामरी पाट

 जशपुर सामरी पाट 


jaspur samri pat


यह छत्तीसगढ़ के उत्तर पूर्वी सीमान्त हिस्से में स्थित है। यह छोटा नागपुर पठार का विस्तार है। इसकी भू-आकृति पाट प्रदेश की तरह है। अर्थात यहाँ स्थित पठार अपने शीर्ष पर सपाट तथा पार्श्व में सोपान जैसी तीखी ढालदार युक्त होती है.

इस प्राकृतिक प्रदेश का क्षेत्रफ़ल 6208 वर्ग किलोमीटर है जो की छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 4.59 प्रतिशत है। 

इस आधार पर यह छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा प्राकृतिक प्रदेश है। 

इस पाट क्षेत्र में विभिन्न पाट पाए जाते है यथा - मैनपाट ,जारंग पाट ,सामरी पाट तथा जशपुर पाट आदि। 

मैनपाट क्षेत्र की औसत ऊंचाई 1152 मीटर है तथा यहाँ से मांड नदी का उद्गम होता है। यह नदी रायगढ़ जिले में चंद्रपुर के पास महानदी में मिल जाती है। 

मैनपाट
मैनपाट 

चंद्रपुर
चंद्रपुर 

मैनपाट में निर्वासित तिब्बतियों को बसाया गया है इसलिए भी इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहते है।

इसी तरह से सामरी पाट इस पाट प्रदेश का सबसे छोटा तथा ऊँचा पाट प्रदेश हैं। इसकी औसत ऊँचाई 700 से 1200 मीटर है.इसी पाट प्रदेश में छत्तीसगढ़ की सबसे ऊँची चोटी गौर लाटा है जिसकी ऊँचाई 1225 मीटर है।

जशपुर पाट क्षेत्रफ़ल के अनुसार सबसे बड़ा पाट प्रदेश है। इसी क्षेत्र में वर्षा भी अत्यधिक होती है। (लगभग 172 cm )

जशपुर सामरी पाट में मुख्यतः उरांव जनजाति का निवास है। इस जनजाति की भाषा कुड़ुख है। इस जनजाति में पाए जाने वाले युवा गृह को धुमकुरिया कहा जाता है। धुमकुरिया में नवयुवक तथा नवयुवतियाँ अपने जनजाति में प्रचलित संस्कारो तथा मान्यताओं को सीखते है।

इस जनजाति का प्रमुख पर्व सरहुल है जो चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

सरहुल
सरहुल पर्व 

अपवाह तंत्र

इस प्राकृतिक प्रदेश में तीन अपवाह तंत्र है। महानदी अपवाह तंत्र ,गंगा अपवाह तंत्र तथा ब्राह्मणी नदी तंत्र। महानदी नदी तंत्र के अंतर्गत प्रमुख नदी मांड तथा ईब नदी है वही गंगा अपवाह तंत्र की प्रमुख नदी कन्हार है।

खनिज

इस क्षेत्र में bauxite प्राप्त होता है। bauxite की खदानें मैनपाट ,जारंग पाट,पंडरा पाट आदि में स्थित है।

जलवायु

पाट प्रदेश में छत्तीसगढ़ की सबसे अधिक औसत वर्षा होती है। शीत ऋतु में मैनपाट में कुछ जगहों पर बर्फ भी जम जाता है।

मिट्टी

इस क्षेत्र में लाल -पीली मिट्टी के साथ लेटराइट मिट्टी भी पाई जाती है।

कृषि

इस क्षेत्र की प्रमुख फसल धान है। इसके साथ यहाँ चाय ,स्ट्राबेरी ,लीची आदि की भी खेती की जाती है। लुड़ेग को छत्तीसगढ़ की टमाटर राजधानी कहा जाता है। यहाँ बहुतयात में टमाटर की खेती की जाती है।


Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद