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कोरोना वायरस

 

कोरोना वायरस



चीन से फैले कोरोना वायरस ने भारत समेत दुनिया के कई देशों में हाहाकार मचा दिया है। चीन और इटली समेत दुनियाभर में कोरोना वायरस से हजारों लोगों की जान ले ली है और लाखों लोगों इसकी चपेट में हैं। 

अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीएस) के अनुसार, कोरोना वायरस जानवरों से मनुष्यों तक पहुंच जाता है। नया चीनी कोरोनो वायरस, सार्स वायरस की तरह है। इसके संक्रमण से बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं हो जाती हैं। यह न्यूमोनिया का कारण भी बन सकता है। 

कोरोनावायरस (Coronavirus) कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, मृत्यु) तक हो सकती है। 

लातीनी भाषा में "कोरोना" का अर्थ "मुकुट" होता है और इस वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढाँचों से इलेक्ट्रान सूक्षमदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इसका नाम रखा गया था। 

चूँकि यह वुहान, चीन से शुरु हुआ, इसलिये इसे वुहान कोरोनावायरस के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि डब्ल्यूएचओ ने इसका नाम सार्स-कोड 2  (SARS- CoV 2) रखा है।

  1. क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?
    इसके लक्षण फ्लू से मिलते-जुलते हैं. संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं. यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है. कुछ मामलों में कोरोना वायरस घातक भी हो सकता है. खास तौर पर अधिक उम्र के लोग और जिन्हें पहले से अस्थमा, डायबिटीज़ और हार्ट की बीमारी है.

  2. क्या हैं इससे बचाव के उपाय?
    स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए. अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है. खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढककर रखें. जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें. अंडे और मांस के सेवन से बचें. जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें.

कोरोना वायरस से मृत्यु-दर

  1. 9 साल तक के बच्चों में- 0 प्रतिशत

  2. 10-39 वर्ष तक के लोगों में 0.2 प्रतिशत

  3. 40-49 वर्ष तक के लोगों में 0.4 प्रतिशत

  4. 50-59 वर्ष तक के लोगों में 1.3 प्रतिशत

  5. 60-69 वर्ष तक के लोगों में 3.6 प्रतिशत

  6. 60-69 वर्ष तक के लोगों में 3.6 प्रतिशत

  7. 70-79 वर्ष तक के लोगों में 8 प्रतिशत

  8. 80 से ज्यादा वर्ष के लोगों में 14.8 प्रतिशत

कोरोना वैक्सीन

स्वदेशी कम्पनियाँ जो वैक्सीन का निर्माण कर रही है-

  1. भारत बायोटेक इंटरनेशनल कोवैक्सीन नाम से स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विकसित कर रही है। 

  2.  पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी कोरोना वैक्सीन का निर्माण कर रही है। इसके लिए इसने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी/एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता किया है। 

  3.  जायडस कैडिला  कोविड-19 के वैक्सीन कैंडिडेट जाइकोव-डी निर्माण कर रहा है। 

  4. पैनेशिया बायोटेक कोविड-19 का टीका विकसित करने के लिए अमेरिका की रेफेना के साथ मिलकर आयरलैंड में संयुक्त उद्यम (जॉइंट वेंचर) लगा रही है।

  5. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की अनुषंगी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स ने कोरोना वायरस का टीका विकसित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के ग्रिफिथ विश्वविद्यालय के साथ करार किया है।

  6. माइनवैक्स और बायोलॉजिकल ई भी कोविड-19 का टीका तैयार करने के लिए काम कर रही हैं।

विदेशी कम्पनियाँ जो वैक्सीन का निर्माण कर रही है -


  1. फ़ाइज़र और बायोएनटैक फ़ाइज़र/बायोएनटेक वैक्सीन एक बड़ी अमेरिकी फ़ार्मा कंपनी और जर्मन बायोटेक्नोलॉजी कंपनी के बीच आपसी साझेदारी से तैयार की गई है. यह वैक्सीन 95 फ़ीसद तक सुरक्षा प्रदान करती है.  

  2. स्पुतनिक 5 इस वैक्सीन का निर्माण रूस के द्वारा किया गया है। स्पूतनिक-5 टीका कोरोनवायरस के खिलाफ दुनिया का पहला क्लीनिकल अप्रूव्ड टीका है। इसका निर्माण रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से गैमेलिया अनुसंधान संस्थान द्वारा किया गया है। 

  3. मॉर्डना वैक्सीन अमेरिकी कंपनी Modified RNA यानी Moderna उन कंपनियों में से एक है, जिसने सबसे पहले कोविड वैक्सीन बनाने का दावा किया था. मॉर्डना ने मार्च में ही अपनी वैक्सीन mRNA-1273 के पहले ट्रायल की इजाजत मांग ली थी, जिसके बाद से ही अलग-अलग स्तर पर काम चल रहा है. 

हर्ड इम्युनिटी 

अगर कोई बीमारी आबादी के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी के संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद करती है, जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से 'इम्यून' हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं. उनमें वायरस का मुक़ाबला करने को लेकर सक्षम एंटी-बॉडीज़ तैयार हो जाते हैं.


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