पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि
स सदी के आखिर तक यानी 2100 तक दुनिया के कई ऐसे इलाके इंसानों के रहने लायक नहीं रहेंगे। अभी जो महीना बीता यानी जुलाई का महीना, उसमें दुनिया का तापमान 16.72 डिग्री सेल्सियस रहा, जो औसत से 0.92 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। ये आंकड़ा विश्व मौसम संगठन(डब्ल्यूएमओ ) का है। इसके मुताबिक, जो 20 सबसे गर्म साल रहे हैं, वो पिछले 22 साल में रहे हैं। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि धरती का तापमान हर साल बढ़ ही रहा है। डब्ल्यूएमओ का अनुमान है कि अगर यही ट्रेंड चलता रहा, तो 2100 तक धरती का तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो धरती के कई इलाकों में इंसानों का रह पाना आसान नहीं होगा।
2015 में क्लाइमेट चेंज को लेकर पेरिस में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत 2100 तक धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर रोकने का लक्ष्य है। हालांकि, अभी जो शोध हो रहा है उसके अनुसार आ रही हैं, लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल लग रहा है।
भारत पर इसका प्रभाव
इसी साल जून में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की जलवायु परिवर्तन पर एक रिपोर्ट आई थी।जलवायु परिवर्तन पर सरकार की ये पहली रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2100 तक भारत का तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।
भारतीय मौसम विभाग 1901 से क्लाइमेट डेटा रख रहा है। इसी साल जनवरी में मौसम विभाग ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा था कि 1901 के बाद 2019 7वां ऐसा साल है, जो सबसे गर्म रहा। 2019 में देश का तापमान 0.36 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। ताज्जुब की बात ये भी है कि जो 7 सबसे गर्म साल रहे हैं, वो सभी 2009 से लेकर 2019 के बीच 11 सालों में दर्ज किए गए हैं।
अब तक सबसे गर्म साल 2016 रहा है। उस साल देश का तापमान 0.72 डिग्री सेल्सियस बढ़ा था। उसके बाद 2009 में 0.56 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा था।
जर्मनी की संस्था जर्मन वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, क्लाइमेट चेंज के मामले मेंं भारत दुनिया का 14वां सबसे संवेदनशील देश है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के 60 करोड़ लोग यानी 45% आबादी ऐसी जगह रहती है जहां 2050 तक जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
इसी तरह अमेरिका की मैसेच्युएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) का अनुमान है कि सदी के अंत तक धरती की सतह का तापमान 4.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, जबकि औसत तापमान में भी 2.25 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने की आशंका है। अगर ऐसा होता है तो दक्षिणी एशिया के कई इलाकों पर इंसानों का रहना मुश्किल हो जाएगा।
पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि गर्मी बढ़ने की वजह से 2030 तक दक्षिण एशिया में 4.3 करोड़ से ज्यादा नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा, क्योंकि 2030 तक बढ़ती गर्मी से 3.4 करोड़ लोगों की नौकरियां चली जाएंगी।
बढ़ती गर्मी और जलवायु परिवर्तन का असर लोगों की आम जिंदगी पर किस तरह पड़ेगा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2050 तक हर 45 में से 1 व्यक्ति इन्हीं वजहों से माइग्रेट करने पर मजबूर होगा। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी का अनुमान है कि क्लाइमेट चेंज के वजह से 2050 तक 20 करोड़ लोग माइग्रेशन करेंगे। ये आंकड़ा 1 अरब के पार भी जा सकता है।
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स के पास जो डेटा है, उसके मुताबिक बढ़ते तापमान के कारण 2019 में देश के अलग-अलग हिस्सों में 157 दिन लू चली है। जबकि, 2018 में 86 दिन ही लू चली थी। इस साल भी देश के कई हिस्सों में तापमान 47 डिग्री के ऊपर पहुंच गया। दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश में रेड अलर्ट जारी किया गया।
लू की वजह से हर साल सैकड़ों जानें भी जाती हैं। पिछले साल ही लू की वजह से देशभर में 373 लोगों की जान गई थी। 2010 से लेकर 2019 तक 10 साल में लू की वजह से 6 हजार 355 लोगों की मौत हुई है।
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