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प्रोजेक्ट डॉल्फिन

 

प्रोजेक्ट डॉल्फिन

 प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट की कामयाबी के बाद भारत अब प्रोजेक्ट डॉल्फिन लॉन्च करेगा जिसका मकसद देश की नदियों और समुद्र में पाई जाने वाली डॉल्फिन की रक्षा करना है.

डॉल्फिन पानी पर आधारित इकोसिस्टम के टॉप पर रहती है और यह नदियों और दूसरे जल में रहने वाले जंतुओं की सेहत के लिए बहुत जरूरी है.

डॉल्फिन फिश जैसे ‘Susu’ की गिनती को पानी पर आधारित इकोसिस्टम की कुल सेहत का संकेतक भी माना जाता है.

डॉल्फिन


डॉल्फिन एक मछली नहीं है। वह तो एक स्तनधारी प्राणी है। जिस तरह व्हेल एक स्तनधारी प्राणी है वैसे ही डॉल्फिन भी इसी वर्ग में आती है, डॉल्फिन का रहने का ठिकाना संसार के समुद्र और नदियां हैं।  डॉल्फिन को अकेले रहना पसंद नहीं है यह सामान्यत: समूह में रहना पसंद करती है। इनके एक समूह में 10 से 12 सदस्य होते हैं। हमारे भारत में डॉल्फिन गंगा नदी में पाई जाती है लेकिन गंगा नदी में मौजूद डॉल्फिन अब विलुप्ति की कगार पर है। डॉल्फिन की एक बड़ी खासियत यह है कि यह कंपन वाली आवाज निकालती है जो किसी भी चीज से टकराकर वापस डॉल्फिन के पास आ जाती है। इससे डॉल्फिन को पता चल जाता है कि शिकार कितना बड़ा और कितने करीब है। डॉल्फिन आवाज और सीटियों के द्वारा एक दूसरे से बात करती हैं। यह 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती है। डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन वह पानी के अंदर सांस नहीं ले सकती। उसे सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना पड़ता है। 

भारत का राष्‍ट्रीय जलीय जीव

पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय जलीय जीव  के रूप में 18 मई 2010 को गंगा नदी डॉल्फिन अधिसूचित किया है। 




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