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जून समसामयिकी 2020 (राष्ट्रीय मुद्दे )

राष्ट्रीय मुद्दे 


राज्यसभा के लिए सांसदों का चुनाव

 हाल ही में राज्यसभा की 24 सीटों के लिए चुनाव हुए। आंध्र प्रदेश की चार-चार, राजस्थान और मध्य प्रदेश की तीन-तीन, झारखंड की दो और मणिपुर और मेघालय की एक-एक सीट शामिल है. बाकी छह में से चार सीटें कर्नाटक से और एक-एक सीट अरुणाचल प्रदेश व मिज़ोरम से आती हैं.

  1. राज्यसभा अपने नाम के अनुरूप ही राज्यों का एक सदन होता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और 238 सदस्य राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं।

  2. राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है।

चुनाव की प्रक्रिया 

  1. किसी भी राज्य से चुने जाने वाले राज्यसभा सांसदों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या के अनुपात में तय की जाती है.

  2. राज्यसभा के सांसदों को जनता सीधे नहीं चुनती है. बल्कि उसकी तरफ से उसके प्रतिनिधि यानी कि विधायक ऐसा करते हैं. इसलिए यह एक अप्रत्यक्ष चुनाव होता है.

  3. विधानसभा के सदस्यों को ही राज्यसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार होता है, विधान परिषद के सदस्यों को नहीं

  4. राज्यसभा संसद का स्थायी सदन है. इसका मतलब यह है कि लोकसभा के विपरीत यह कभी भंग नहीं होता. इसके एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल हर दो साल बाद खत्म हो जाता है और उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिये जाते हैं.

  5. राज्यसभा में कोई विधेयक पेश कर दिया जाए तो वह एक्सपायर नहीं होता. जैसेकि महिला आरक्षण बिल, जिसे मनमोहन सिंह सरकार राज्यसभा से पारित करवा चुकी है.

  6. राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए आवश्यक मतों की संख्या की गणना एक फ़ॉर्मूले द्वारा की जाता है. इसे हेयर फ़ॉर्मूला कहते हैं. इस फ़ॉर्मूले के मुताबिक़ किसी राज्य की जितनी भी राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है उसमें एक जोड़ देते हैं. फ़िर इस नई संख्या से उस राज्य के विधायकों की संख्या में भाग दिया जाता है. जो भागफल मिलता है उसमें फ़िर एक जोड़ देते हैं. वही आवश्यक मतों की संख्या होती है.

  7.  उदाहरण- राजस्थान में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना है. इसमें एक जोड़ देते हैं तो ये संख्या बन जाती है चार (3+1=4). राज्य में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं और इनमें से कोई भी खाली नहीं है. इसलिए 200 में 4 का भाग देते हैं. भागफल मिलता है 50. अब 50 में एक जोड़ देते हैं. ये नई संख्या 51 ही राजस्थान में राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए आवश्यक मतों की संख्या है. यानी राजस्थान में जिस किसी भी प्रत्याशी को 51 विधायक वरीयता क्रम में सबसे ऊपर रखेंगे वह जीता हुआ माना जाएगा.

  8. लेकिन यदि प्रत्याशियों में से किसी को भी पहली वरीयता के आधार पर बहुमत न मिले तो उस स्थिति में विधायकों की दूसरे क्रम की प्राथमिकता देखी जाएगी. इसे समझने के लिए मान लेते हैं कि राजस्थान की तीन राज्यसभा सीटों के लिए पांच प्रत्याशी अ, ब, स, द और य मैदान में हैं. इनमें से ‘अ’ और ‘ब’ को तो 51 विधायकों ने पहली प्राथमिकता दे दी. इसलिए संसद के लिए उनका रास्ता साफ़ हो गया. लेकिन बाकी तीन में से किसी को भी बहुमत नहीं मिल पाया. इनमें से ‘स’ को 35 विधायकों ने, ‘द’ को 33 विधायकों ने और ‘य’ को 30 विधायकों ने वरीयता सूची में सबसे ऊपर रखा.

  9. तब देखा जाएगा कि विधायकों ने दूसरी प्राथमिकता पर किस प्रत्याशी को रखा है. अब यदि 21 विधायकों ने ‘य’ को दूसरा सबसे पसंदीदा प्रत्याशी माना होगा तो वह राज्यसभा चुनाव जीत जाएगा. लेकिन यदि दूसरे क्रम की वरीयता से भी कोई नतीजा न निकले तो इस प्रक्रिया को तीसरी, चौथी और पांचवी बार बिल्कुल ऐसे ही दोहराया जाएगा. आम तौर पर राज्यसभा चुनावों में यह नौबत नहीं आती है.

  10. चूंकि राज्यसभा चुनाव में विधायक आनुपातिक तौर पर जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व कहलाता है. और चूंकि इस पद्धति में विधायकों के मत (सूची) एक से अधिक प्रत्याशियों के बीच बंटे होते हैं, इसलिए इस प्रक्रिया को एकल संक्रमणीय मत पद्धति के नाम से जाना जाता है. इसकी परिकल्पना एक अँग्रेज़ राजनीतिज्ञ टॉमस हेयर ने 1857 की थी.

  11. इस पद्धति का उपयोग भारत में राज्यसभा चुनाव के अलावा राष्ट्रपति और विधान परिषदों के सदस्यों के निर्वाचन में भी किया जाता है.

भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) को आगे बढ़ाने को लेकर सेमिनार 

नीति आयोग 6 जून, 2020 को आगामी और ओमिदयार नेटवर्क इंडिया के सहयोग से पहली बार एक वर्चुअल बैठक के माध्‍यम से भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान को आगे बढ़ाने के लिए प्रमुख हितधारकों को एक साथ लाया।

ओडीआर विवादों, विशेष रूप से छोटे और मध्‍यम किस्‍म के विवादों का बातचीत, बीच-बचाव और मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) की डिजिटल तकनीक और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके समाधान करना है। जहां एक ओर न्यायपालिका के प्रयासों के माध्यम से न्यायालय डिजिटल हो रहे हैं, ऐसे में नियंत्रण और समाधान के अधिक प्रभावी, सुगम्य और सहयोगी तंत्र की तत्काल आवश्यकता है। विवादों को कुशलतापूर्वक और किफायती तरीके से सुलझाने में मदद कर सकता है।

ऑनलाइन विवाद समाधान  इस बैठक का सामान्‍य विषय भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान को आगे बढ़ाने के प्रयास सुनिश्चित करने लिए सहयोगपूर्ण रूप से कार्य करने की दिशा में बहु-हितधारक सह‍मति कायम करना था।

भविष्य एक हाइब्रिड मॉडल होगा, जो दोनों तरह की दुनिया -ऑफ-लाइन कोर्ट, ऑनलाइन कोर्ट और ओडीआर के सर्वश्रेष्ठ को सम्मिलित करेगा। हमें हाइब्रिड सिस्टम में काम करने के लिए न्याय वितरण की पूरी प्रक्रिया की नए सिरे से परिकल्‍पना करनी होगी और इसके लिए अच्छे आंकड़ों की आवश्यकता होगी।'

कोविड-19 ने ओडीआर के लिए तत्काल आवश्यकता महसूस कराई है, जिसके तहत अदालतों के समक्ष - विशेष रूप से उधार, ऋण, संपत्ति, वाणिज्य और खुदरा क्षेत्र में विवादों में वृद्धि होने की संभावना के साथ निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। आने वाले महीनों में, ओडीआर समयोचित समाधान हासिल करने में मदद करने वाली व्‍यवस्‍था हो सकता है।

चांगपा समुदाय

चांगपा (Changpa) या चाम्पा तिब्बती मूल का एक बंजारा मानव समुदाय है जो भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख़ क्षेत्र के चांगथंग इलाके में बसते हैं। इनकी कुछ संख्या तिब्बत में आने वाले चांगथंग के भाग में भी रहती है जिनमें से कुछ को चीन की सरकार ने चांगथंग प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र की स्थापना पर ज़बरदस्ती अन्य इलाक़ो में बसाया था। 

तिब्बतीलद्दाख़ी भाषाओं में "चांगपा" का अर्थ "चांग(थंग) के लोग" है। अनुमान है कि सन् 1989 में चांगथंग में लगभग 5 लाख चांगपा रह रहे थे।

लद्दाख के चुमूर (Chumur) और डेमचोक (Demchok) क्षेत्र में चीनी सेना के अतिक्रमण ने लद्दाख के घुमंतू चरवाहा चांगपा समुदाय (Changpa Community) को ग्रीष्मकालीन चरागाहों के बड़े हिस्से से अलग-थलग कर दिया है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव उनके बकरी पालन व्यवसाय पर पड़ रहा है।

क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग- 2021 जारी

क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग 2021 जारी की गई है।इसमें अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) ने लगातार 9वें साल पहला स्थान हासिल किया है। जबकि स्टैनफ़ोर्ड, हावर्ड और कैलीफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी को क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा स्थान मिला है। ये सभी अमेरिकी यूनिवर्सिटीज हैं। पांचवां स्थान यूके की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को मिला है।

 इसमें दुनिया के टॉप 500 में भारत से सिर्फ आठ संस्थानों को जगह मिली है।

विशेषताएँ 

  1. भारत के बहुप्रतिष्ठित व सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) की वैश्विक स्तर पर रैंकिंग गिर गई है।क्यूएस रैंकिंग 2021 में दुनियाभर में इसे 172वां स्थान मिला है। पिछले साल (QS World University Ranking 2020) यह 152वें स्थान पर था।आईआईटी बॉम्बे 2020 की तुलना में 20 पायदान नीचे खिसक गया है।

  2.  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलुरू को इस साल क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में 185वां स्थान मिला है।

  3. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (Indian Institute of Technology - IIT Delhi) इस लिस्ट में 193वें पायदान पर है।

  4. आईआईटी मद्रास (IIT Madras) - वैश्विक स्तर पर 275वां स्थान

  5. आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) - 314वां स्थान

  6. आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) - 350वां स्थान

  7. आईआईटी रूड़की (IIT Roorkee) - 383वां स्थान

  8. आईआईटी गुवाहाटी (IIT Guwahati) - 470वां स्थान


क्यू. एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग  क्वाकरेल्ली सायमोंड्स (क्यू. एस.) {Quacquarelli Symonds: QS} द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक प्रकाशन है जो विश्वविद्यालयों की रैंकिंग प्रदान करता है। पूर्व में इसे टाइम्स हायर एजुकेशन-क्यू. एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के नाम से जाना जाता था।

कृष्णा तथा गोदावरी नदी जल विवाद

हाल ही में ‘जल संसाधन विभाग’ (Department of Water Resources) ने कृष्णा तथा गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्डों (Krishna and Godavari River Management Boards) के अध्यक्षों को महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं का विवरण एक माह में केंद्र सरकार को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश द्वारा कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के जल उपयोग को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के बाद केंद्र सरकार ने इन नदियों के जल उपयोग का जायजा लेने का निर्णय लिया है।इस कार्यवाही का मुख्य उद्देश्य यह जानना है कि क्या भविष्य में इन नदियों पर जल परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिये अथवा या नहीं।

कृष्णा और गोदावरी नदी पर अधिकतर बड़ी परियोजनाएँ महाराष्ट्र एवं कर्नाटक सरकार द्वारा बनाई जा गई है जबकि तेलंगाना ने भी इन नदियों पर कई लघु परियोजनाओं को शुरू किया हैं।आंध्र प्रदेश में वर्तमान में किसी नवीन परियोजना पर कार्य नहीं किया जा रहा है यद्यपि राज्य में इन नदियों के जल का अधिकतम उपयोग करने के लिये पुरानी कई अधूरी परियोजनाओं पर तेज़ी से कार्य किया जा रहा है। 

भारतीय संविधान अनुच्छेद 262 (Article 262 in Hindi) - अंतरराज्यिक नदियों या नदी-दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन

(1) संसद, विधि द्वारा, किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के या उसमें जल के प्रयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या परिवाद के न्यायनिर्णयन के लिए उपबंध कर सकेगी।

(2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद, विधि द्वारा, उपबंध कर सकेगी कि उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विवाद या परिवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा।


1 कृष्णा नदी जल विवाद- इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय हो चुका है। यह विवाद आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच था.

2. नर्मदा नदी जल विवाद- इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय हो चुका है। यह विवाद मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच था।

3. गोदावरी नदी जल विवाद- इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय हो चुका है। यह विवाद आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के बीच था।

4. कृष्णा नदी जल विवाद- इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय हो चुका है। यह विवाद आँध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच था।

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क 2020 

यह रैंकिंग्स मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है.वर्ष 2020 में इसका पाँचवा संस्करण जारी किया गया है। 

इसके तहत इंडिया रैंकिंग्स 2020’ (India Rankings 2020) में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT-Madras) को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत के सबसे सर्वश्रेष्ठ संस्थान के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

इस वर्ष के रैंकिंग फ्रेमवर्क में देश भर के कुल 3,771 संस्थान पंजीकृत किये गए हैं, जो कि बीते वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक हैं।

वर्ष 2020 में पहले की नौ रैंकिंग के अलावा ‘डेंटल’ (Dental) श्रेणी को पहली बार शामिल किया गया, जिससे इस वर्ष कुल श्रेणियों की संख्या दस हो गई है.

आईआईएससी बेंगलुरु को सूची में दूसरा स्थान मिला है जबकि आईआईटी दिल्ली तीसरे स्थान पर रहा। कॉलेजों में, दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस ने कॉलेजों की राष्ट्रीय रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है, जबकि एलएसआर ने दूसरा और हिंदू कॉलेज ने तीसरा स्थान हासिल किया है।

 देश में एम्स नई दिल्ली को अग्रणी चिकित्सा विज्ञान संस्थान का दर्जा दिया गया है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु ने 'लॉ' डिसिप्लिन के लिए सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।

 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली ने एनएलयू हैदराबाद के बाद दूसरी रैंक हासिल की है। फार्मेसी संस्थानों में, जामिया हमदर्द नेता के रूप में सामने आया है, आईआईएम अहमदाबाद को प्रबंधन संस्थानों में सबसे ऊपर स्थान दिया गया है।

डेंटल कॉलेजों में मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल स्किनज ने पहला स्थान हासिल किया है।

आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय

अदालत ने ये टिप्पणी तमिलनाडु के मेडिकल कालेजों में कुछ वर्गों (ओबीसी) को आरक्षण न दिए जाने के फ़ैसले के विरोध में एक केस के संदर्भ में गुरुवार को की.

तमिलनाडु के तक़रीबन सभी राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था जिसमें मेडिकल कालेजों की सीटों में अन्य पिछड़े वर्गों को 50 फ़ीसद आरक्षण देने से मना कर दिया गया था.ये सीटें पहले तमिलनाडु सरकार के पास थीं और बाद में केंद्र को चली गईं.

एक्सपर्ट क्या कहते है ?

संविधानविद सूरत सिंह मानते हैं कि देश की सबसे ऊंची अदालत की इस टिप्पणी में कहीं भी रिज़र्वेशन पर सवाल नहीं उठाया गया है या उसे ख़त्म करने की बात नहीं कही गई है, बल्कि ये कहा गया है कि चूंकि ये मामला किसी ख़ास सूबे में आरक्षण की बात को लेकर है, तो इसे पहले हाई कोर्ट ले जाया जाना चाहिए.

सूरत सिंह का कहना है कि आरक्षण संविधान की धारा 16 (4) के तहत विशेष समुदायों की बेहतरी के लिए हुकूमत को कई तरह के क़दम उठाने का अधिकार देता है. इसके तहत वो तबक़े आते हैं जो ऐतिहासिक, सामाजिक और शैक्षणिक वजहों से पिछड़े रह गए हैं.

वहीं सामाजिक सरोकारों से जुड़े स्कॉलर और लेखक दिलीप मंडल कहते हैं कि बात सिर्फ़ एक फ़ैसले की नहीं है, अदालत को अगर इस मामले की सुनवाई नहीं करनी थी, तो वो याचिकाकर्ताओं से सीधे-सीधे मामले को उच्च न्यायालय ले जाने को कह सकता था, लेकिन उसने इस मामले पर टिप्पणी भी कर दी, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.

वर्तमान में सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (SC) के लिये 15%, अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये 7.5%, अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिये 27% तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, यदि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है ।

अनुच्छेद 32 

(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।

(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।

संविधान की नौवीं अनुसूची

विधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है. इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं.

नोट: अब तक यह मान्यता थी कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित क़ानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन क़ानूनों की समीक्षा कर सकता है.

भारतीय राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पूरी तरह से डिजिटल

भारतीय राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण क्‍लाउड तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित विश्‍लेषण प्रणाली अपनाने के साथ ही पूरी तरह से डिजिटल हो गया है। इससे कामकाज में पारदर्शिता, तेजी और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता सुनिश्चित होगी। अब प्राधिकरण का कामकाज ऑनलाइन पोर्टल के जरिए होगा। परियोजनाओं से संबंधित सभी दस्‍तावेज, निर्णय और मंजूरी ऑनलाइन होंगी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत लघु वन उत्पादों (एमएफपी) की रिकॉर्ड खरीद

16 राज्यों में लघु वन उत्पाद (एमएफपी) योजना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अंतर्गत लघु वन उत्पादों की चल रही खरीद 79.42 करोड़ रुपये तक पहुंचने के साथ ही यह रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इसके साथ ही, इस वर्ष के लिए कुल खरीद (सरकारी और निजी व्यापार दोनों) 2,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की हो चुकी है। कोविड-19 महामारी के इस कठिन दौर में, जिसके कारण आदिवासियों का जीवन और आजीविका प्रभावित हुई है, उनके लिए आवश्यक रामबाण साबित हुई है।

26 मई, 2020 को जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा एमएफपी सूची के लिए एमएसपी के अंतर्गत 23 नई वस्तुओं को शामिल करने की भी सिफारिश की गई। इन मदों में आदिवासी संग्रहकर्ताओं द्वारा एकत्र की गई कृषि और बागवानी उपज भी शामिल हैं।

 

जनजातीय अर्थव्यवस्था में 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के आने के साथ ही एमएफपी योजना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन लाने और जनजातीय लोगों को सशक्त बनाने में अग्रणी साबित हो सकता है। प्रणाली और प्रक्रियाएं पूरे देश में मजबूती के साथ स्थापित की जा रही है, इसलिए वहां निश्चित रूप से कुछ बेहतर होने वाला है।

सभी राज्यों के बीच, छत्तीसगढ़ ने 52.80 करोड़ रुपये मूल्य वाली 20,270 मीट्रिक टन लघु वन उत्पाद की खरीद करके अपना स्थान प्रथम कर लिया है। ओडिशा और गुजरात क्रमशः 21.32 करोड़ रुपये मूल्य वाली 9908 मीट्रिक टन एमएफपी और गुजरात 1.61 करोड़ रुपये मूल्य वाली 155 मीट्रिक टन एमएफपी की खरीद के साथ उसका अनुसरण कर रहे हैं। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ अपने सराहनीय प्रयासों के माध्यम से एक चैंपियन राज्य के रूप में उभर कर सामने आया है। एमएफपी योजना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार अपनी पूरी ताकत के साथ काम कर रही है, सभी जिलों में खरीद के लिए प्रणालियां और प्रक्रियाएं बहुत अच्छी तरह से लागू हैं। छत्तीसगढ़ में 866 खरीद केंद्र हैं और राज्य को 139 वन धन केंद्रों में वन धन स्वयं सहायता समूहों के अपने विशाल नेटवर्क से भी लाभ प्राप्त होता है। वन, राजस्व और वीडीवीके अधिकारियों को शामिल करते हुए, मोबाइल इकाइयों द्वारा लघु वन उत्पादों का घर-घर संग्रह जैसे नवाचारों ने इन उच्च आंकड़ों में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

वन धन योजना के सफल क्रियान्वयन में 22 राज्यों के 3.6 लाख जनजातीय लाभार्थी शामिल हैं और वन धन के अंतर्गत ट्राइफेड के साथ राज्यों की निरंतर भागीदारी और ऑन-बोर्डिंग ने उत्प्रेरक के रूप में काम किया जब तक कि नॉन-स्टार्टर एमएफपी योजना के लिए एमएसपी सही दिशा में काम नहीं करने लगी।

ट्राइफेड

बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत् राष्ट्रीय स्तर के शीर्षस्थ निकाय के रूप में वर्ष 1987 में ट्राइफेड की स्थापना की गई।बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2007 के अधिनियमित होने के बाद ट्राइफेड को इस अधिनियम में पंजीकृत कर इसे राष्ट्रीय सहकारी समिति के रूप में अधिनियम की दूसरी अनुसूची में अधिसूचित किया गया।


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