एनरिका लेक्सी विवाद का अंतिम निर्णय
हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने एनरिका लेक्सी मामले में भारतीय अधिकारियों की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा है कि भारत इस मामले में मुआवजा पाने का हक़दार है लेकिन नौसैनिकों को आधिकारिक छूट प्राप्त होने के कारण उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चला सकता है।अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने कहा कि दोनों नौसैनिकों ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है और इसके परिणामस्वरूप इटली ने यूएनसीएलओएस (समुद्र संबंधी कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि) के तहत भारत की नौवहन स्वतंत्रता का उल्लंघन किया। न्यायाधिकरण ने फैसला दिया कि भारत जीवन के नुकसान सहित अन्य नुकसान को लेकर मुआवजे का हक़दार है। न्यायाधिकरण ने यूएनसीएलओएस के प्रावधानों के तहत भारतीय अधिकारियों के आचरण को सही पाया है।न्यायाधिकरण ने पाया कि इस घटना पर भारत और इटली के बीच समवर्ती अधिकार क्षेत्र है और नौसैनिकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही के लिए वैध कानूनी आधार है।
घटना क्या था ?
वर्ष 2012 के इस मामले में दो इतालवी नौ-सैनिकों पर दो भारतीय मछुआरों की जान लेने का आरोप है।इस मामले के न्याय क्षेत्र का मुद्दा दोनों देशों के बीच एक बड़ा विषय बन गया था और भारत का कहना था कि यह घटना भारतीय जल क्षेत्र में हुई और मारे गए मछुआरे भी भारतीय थे। इसलिए इस मामले की सुनवाई भारतीय कानूनों के अनुसार होनी चाहिए। वहीं इटली ने दावा किया कि गोलीबारी भारतीय जल क्षेत्र से बाहर हुई थी और उसके नौसैनिक इतालवी ध्वज के वाले जहाज पर सवार थे।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई और अप्रैल 1946 में इसने काम करना शुरू किया।
यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है जो हेग (नीदरलैंड्स) के पीस पैलेस में स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत यह एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा निर्दिष्ट कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।
इसमें 193 देश शामिल हैं और इसके वर्तमान अध्यक्ष अब्दुलकावी अहमद यूसुफ हैं।
समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय(UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS)
अंकलोस (UN Convention on teh Law of teh Sea-UNCLOS) को 1982 में आयोजित समुद्री कानून पर तृतीय संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अपनाया गया (अंकलोस-III) तथा यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया।
प्रमुख प्रावधान हैं- क्षेत्रीय समुद्र के लिये 12 नॉटिकल मील सीमा का निर्धारण; अंतरराष्ट्रीय जलडमरूमध्य (straits) से होकर पारगमन की सुविधा; द्वीप समूह (archipelogic) और स्थलरुद्ध (landlocked) देशों के अधिकारों में वृद्धि; तटवर्ती देशों के लिये 200 नॉटिकल मील ईईजेड का निर्धारण, और, राष्ट्रीय अधिकार-क्षेत्र से बाहर गहरे समुद्र में स्थित खनिज संसाधनों के दोहन की व्यवस्था। अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण की स्थापना समुद्रतल के संसाधनों के प्रशासन के लिये की गयी है। समुद्री संसाधन के दोहन का आधार समान साझेदारी और सामूहिक मानव धरोहर के सिद्धांत होगे। अभिसमय में एक अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। हेम्बर्ग (जर्मनी) में अवस्थित यह न्यायाधिकरण अभिसयम में निर्दिष्ट प्रावधानों के संबंध में उभरे विवादों को सुलझाता है। इन विवादों के संबंध में न्यायाधिकरण का निर्णय बाध्यकारी होता है। कोई भी विवादित पक्ष विवाद को न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
SOURCE DRISHTI IAS,NAVBHARAT TIMES,VIVACE PANORAMA
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