पुलिस व न्यायिक हिरासत में मौत के आँकड़े
पुलिस सुधार की आवश्यकता क्यों?
- मौजूदा पुलिस तंत्र में अनगिनत कमियां हैं। पुलिस बल इस समय संगठन, बुनियादी ढांचे और परिवेश से लेकर बेकार हथियार और पुरानी खुफिया सूचना संग्रहण तकनीक के साथ साथ पुलिसकर्मियों की कमी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। कहा जा सकता है कि देश का पुलिस बल अभी सही स्थिति में नहीं है।
- पुलिस कानून के मुताबिक केन्द्रीय और प्रांतीय पुलिस बल पर निगरानी और नियंत्रण का अधिकार राजनीतिक सत्ताधारियों के पास है। इसका परिणाम ये हुआ कि पुलिस बल में लोकतांत्रिक व्यवस्था और उपयुक्त दिशा का अभाव है। पुलिस की प्राथमिकताएं राजनीतिक सत्ताधीशों की मर्जी के मुताबिक तेजी से बदलती रहती हैं।
- पुलिस का मौजूदा बुनियादी ढांचा भी पुलिस बल की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। पुलिस विभाग में कर्मियों की भारी कमी है। भारत में जनसंख्या और पुलिस का अनुपात प्रति एक लाख जनसंख्या पर 192 पुलिसकर्मी है जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित स्तर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 222 पुलिसकर्मी से काफी कम है। इसका परिणाम ये हुआ है कि पुलिस बल पर काम का बोझ काफी ज्यादा है जो उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। काम के ज्यादा बोझ से पुलिसकर्मी की ना सिर्फ कुशलता और दक्षता घटती है बल्कि इससे उनके मनोवैज्ञानिक तनाव का शिकार होने की आशंका भी बढ़ती है जिसका परिणाम कई प्रकार के अपराधों में पुलिसकर्मियों की संलिप्तता के रूप में नजर आता है।
- सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर राज्यों में प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों का प्रतिशत भी काफी कम है। वर्ष 2016 में सिपाही स्तर की 71,711 नियुक्तियों में से 67,669 सिपाहियों को प्रशिक्षण दिया गया। रिपोर्ट में हथियार प्रशिक्षण की कमियों और उपयुक्त प्रशिक्षण संबंधी बुनियादी ढांचे के अभाव का भी विशेष तौर पर उल्लेख है।
पुलिस सुधार से संबंधित कमेटियाँ
विधि आयोग की सिफारिशें
. जुलाई 1985ः 113वीं रिपोर्ट में इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में नई धारा 114बी जोड़ने की सिफारिश की। इसके अनुसार पुलिस किसी को गिरफ्तार करे तो पहले उसकी मेडिकल जांच कराए। पुलिस हिरासत में कोई जख्मी होता है तो कोर्ट मान सकता है कि उसे वह जख्म संबंधित पुलिस अधिकारी के द्वारा दिया गया है।
. अगस्त 1994ः 152वीं रिपोर्ट में हिरासत में हिंसा कम करने के लिए आइपीसी की कई धाराओं में संशोधन की सिफारिश की। सीआरपीसी की धारा के तहत पुलिसकर्मियों को किसी भी कार्रवाई से सुरक्षा मिली होती है। आयोग का कहना था कि पुलिस अधिकारी इस का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसलिए पुलिस ज्यादती के मामलों में धारा 197 लागू नहीं होनी चाहिए।
. दिसंबर 2001ः 177वीं रिपोर्ट में आयोग ने सीआरपीसी की धारा 55ए में संशोधन का सुझाव दिया। इसका मकसद हिरासत में लिए गए व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
. मई 2017ः 268वीं रिपोर्ट में आयोग ने सीआरपीसी में नई धारा 41(1ए) जोड़ने और 41बी में संशोधन की सिफारिश की। इसके मुताबिक पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में बताएगा।
. अक्टूबर 2017ः 273वीं रिपोर्ट में टॉर्चर की परिभाषा में संशोधन कर इसका दायरा बढ़ाने की सिफारिश की गई। इसने टॉर्चर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन को शामिल करने को कहा। टॉर्चर करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ आजीवन कारावास तक की सजा की सिफारिश है। इसमें 113वीं रिपोर्ट की सिफारिशों को भी दोहराया गया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनुभाई रतिलाल पटेल बनाम गुजरात सरकार मामले में दी गई व्यवस्था
बेंच ने कहा था, एक अभियुक्त के रिमांड पर निर्देश देना मौलिक रूप से एक न्यायिक कार्य है. मजिस्ट्रेट एक अभियुक्त को हिरासत में रखने का आदेश देते समय कार्यकारी क्षमता में कार्य नहीं करता है. इस न्यायिक कार्य के दौरान मजिस्ट्रेट का खुद इस पर संतुष्ट होना अनिवार्य है कि क्या उसके समक्ष रखी गई सामग्री इस तरह की रिमांड को जायज ठहराती है या इसे अलग तरीके से देखा जाना चाहिए, भले ही अभियुक्त को हिरासत में रखने और उसकी रिमांड बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हों. धारा 167 के तहत अपेक्षित रिमांड का उद्देश्य यह है कि जांच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं की जा सकती. ये मजिस्ट्रेट को यह देखने में सक्षम बनाता है कि क्या रिमांड वास्तव में आवश्यक है… मजिस्ट्रेट के लिए अनिवार्य है कि वह अपने विवेक का इस्तेमाल करे और सिर्फ यांत्रिक रूप से रिमांड के आदेश को पारित न करे.
आगे की राह
केंद्र सरकार को बाकायदा यह निर्देश जारी किया जाना चाहिए कि इस पर विचार करे और इसे लागू करने के लिए जरूरत पड़े तो हिरासत में किसी अभियुक्त को लगी चोट या मौत की जिम्मेदारी संबंधित अधिकारी पर डालने संबंधी 10वें विधि आयोग की सिफारिश के अनुरूप भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन जैसे उपयुक्त कदम उठाए.
हिरासत में यातना के शिकार बनाने वालों में अधिकांश समाज के आर्थिक या सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित होते हैं, इसलिए समय आ गया है कि केंद्र सरकार संसद से अत्याचार निवारण विधेयक पारित कराने की दिशा में कदम उठाए.
पुलिस सुधार की दिशा में कार्य किया जाये।
विधि आयोग की रिपोर्ट को जल्द से जल्द लागू किया जाए।
स्रोत - the print hindi,outlook hindi
https://www.outlookhindi.com/story/police-reform-is-long-awaited-1856
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