ई-कचरा और भारत
यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी द्वारा एक नई रिपोर्ट 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020' के अनुसार वर्ष 2019 में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था। जोकि पिछले पांच सालों में 21 फीसदी बढ़ गया है, जबकि अनुमान है कि 2030 तक इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन 7.4 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा।
दुनिया का सबसे ज्यादा ई-वेस्ट उत्पन्न करने वाले देशों की बात की जाए तो भारत तीसरे स्थान पर है|
दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह तेजी से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत है|
इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों की मरम्मत की सीमित व्यवस्था है, और है भी तो वो बहुत महंगी है| ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद ख़राब होता है| लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं| जिस वजह से भी इस कचरे में इज़ाफा हो रहा है|
रिपोर्ट के अनुसार 2019 में एशिया ने सबसे ज्यादा 2.49 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था|
रिपोर्ट के अनुसार 2019 में केवल 17.4 फीसदी कचरे को ही इकट्ठा और रिसाइकल किया गया था। जिसका मतलब यह है कि इस वेस्ट में मौजूद लोहा, तांबा, सोना और अन्य कीमती चीजों को ऐसे ही डंप कर दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है| ऐसे में उन कीमती पदार्थों जिनको इसमें से पुनः प्राप्त किया जा सकता है वो बर्बाद चली जाती हैं| जिससे संसाधनों की बर्बादी हो रही है|
यदि 2019 में इस वेस्ट को रिसाइकल न किये जाने से होने वाले नुकसान को देखा जाए तो वो करीब 425,833 करोड़ रुपए (5700 करोड़ अमेरिकी डॉलर) के बराबर है| जोकि दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है|
इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में कई तरह के हानिकारक तत्व होते हैं जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं| रिपोर्ट के अनुसार 2019 में जो ई-कचरा रिसाइकल नहीं किया गया उसमें करीब 50 टन हानिकारक पारा था| ऐसे में इस ई-वेस्ट का सही तरीके से प्रबंधन और निपटान करना जरूरी है| जिससे न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचाया जा सकेगा| साथ ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे और सर्कुलर इकोनॉमी को भी बढ़ावा मिलेगा|
क्या है ई-कचरा?
ई-कचरा आई.टी. कंपनियों से निकलने वाला यह कबाड़ा है, जो तकनीक में आ रहे परिवर्तनों और स्टाइल के कारण निकलता है। जैसे पहले बड़े आकार के कम्प्यूटर, मॉनीटर आते थे, जिनका स्थान स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है। माउस, की-बोर्ड या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आ जाते हैं। पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों तथा अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण भारत में हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है।