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अमेरिका-ईरान तनाव

प्रश्न- अमेरिका-ईरान तनाव में वृद्धि के क्या कारण हैं? दोनों देशों के मध्य किसी भी प्रकार का संघर्ष न केवल मध्य-पूर्व बल्कि भारत के आर्थिक व सामरिक हितों को प्रभावित करेगा। विश्लेषण कीजिए।
सामान्य अध्ययन-II
अमेरिका-ईरान तनाव

वर्ष 2020 के प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और इरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी सहित सेना के कई अन्य अधिकारियों को बगदाद हवाई अड्डे के बाहर हवाई हमले में मार गिराया था।इस घटना के पाँच माह बाद ईरान के एक न्यायालय ने ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारी की हत्या करने व ईरान में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने के आरोप में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 30 अन्य लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश ज़ारी किया है। इसके साथ ही अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिये इंटरपोल (Interpol) से रेड कॉर्नर नोटिस (Red Corner Notice) जारी करने की भी माँग की गई है। निश्चित रूप से ईरान का यह कदम पश्चिम एशिया में व्याप्त तनाव को बढ़ाने वाला है।

अमेरिका-ईरान तनाव बढ़ने के कारण

परमाणु करार का रद्द होना
ईरान पर प्रतिबंधों का आरोपण
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड  को आतंकी संगठन घोषित करना
अमेरिकी तेल टैंकरों पर हमला
सऊदी अरामको पर ड्रोन हमला

पश्चिम एशिया पर पड़ने वाला प्रभाव 

  1. अमेरिका कि सोच सीमित सैनिक संघर्ष के माध्यम से ईरान से अपनी मांगे मनवाने की है जो कि भ्रामक है। यदि अमेरिका, ईरान पर कार्यवाही करता है तो संभव है कि ईरान भी जवाबी कार्यवाही करेगा।
  2. यदि ईरान भी सैन्य कार्यवाही करता है तो वह अमेरिकी सहयोगियों जैसे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा इसराइल में स्थित अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। जिससे पूरा खाड़ी क्षेत्र व पश्चिम एशिया संघर्ष का मैदान बन सकता है।   

भारत पर प्रभाव 

  1. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, जो कच्चे तेल की अपनी 80 प्रतिशत से अधिक और प्राकृतिक गैस की 40 प्रतिशत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर रहता है। ऐसे में तेल बाज़ार को प्रभावित करने वाला कोई भी घटनाक्रम भारत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  2. अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
  3. खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय अपने सगे-संबंधियों को करीब प्रतिवर्ष लगभग 40 अरब डालर की मुद्रा रेमिटेंसेस के रूप में भेजते हैं। यदि मध्य-पूर्व में किसी भी प्रकार का संघर्ष होता है तो भारत को इसका आर्थिक खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है.


आगे की राह 

आज के वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए तनाव को टालना ही समझदारी होगी. वर्तमान समय में युद्ध किसी भी देश के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता।
ऐसे में विश्व की सभी शीर्ष नेताओं और कूटनीतिक विशेषज्ञों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि कि वह वर्तमान परिस्थितियों से अमेरिका और ईरान को आगे न बढ़ने दें तथा शांति की दिशा में अपने प्रयास जारी रखें.
स्रोत दृष्टि आईएएस  

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