केंद्र ने नागालैंड को 'अशांत क्षेत्र' घोषित किया
केंद्र सरकार ने संपूर्ण नागालैंड को 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर दिया है और राज्य में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (एएफएसपीए - आफ्सपा) को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है, जो 30 जून 2020 से लागू हो गया है।
एएफएसपीए की धारा 3 के अनुसार, अगर राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक को यह लगता है कि पूरे राज्य में या उसके कुछ हिस्से में अशांति है और वहां स्थिति ख़तरनाक है और वहां सशस्त्र बलों की तैनाती आवश्यक है, तो राज्य का राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक या केंद्र सरकार राज्य के पूरे क्षेत्र या उसके एक हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
एएफएसपीए की पृष्ठभूमि
45 साल पहले भारतीय संसद ने “अफस्पा” यानी आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट 1958 को लागू किया, जो एक फौजी कानून है, जिसे “डिस्टर्ब” क्षेत्रों में लागू किया जाता है, यह कानून सुरक्षा बलों और सेना को कुछ विशेष अधिकार देता है.
जहां अफस्पा लागू होता है, वहां सशस्त्र बलों के अधिकारी को जबरदस्त शक्तियां दी जाती हैं. ये इस तरह हैं
- चेतावनी के बाद, यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है, अशांति फैलाता है, तो उस पर मृत्यु तक बल का प्रयोग कर किया जा सकता है.किसी आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो.
- किसी भी असंदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है. गिरफ्तारी के दौरान उनके द्वारा किसी भी तरह की शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है.
- बिना वारंट किसी के घर में अंदर जाकर उसकी तलाशी ली जा सकती है. इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल किया जा सकता है.
- वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है.सेना के अधिकारियों को उनके वैध कामों कानूनी कवच प्रदान किया जाता है.सेना के केवल केंद्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है.
पूर्वोत्तर राज्यों में कब लागू किया गया
अफस्पा को एक सितंबर 1958 को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था. पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए इसे लागू किया गया था.
किसी राज्य को कब डिस्टर्ब घोषित किया जाता है
धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के कारण राज्य या केंद्र सरकार एक क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित कर सकती है.
अफस्पा की आलोचना क्यों
पिछले कुछ वर्षों में अफस्पा की काफी आलोचना हुई है. 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा कि लोकतंत्र में अफस्पा का कोई स्थान नहीं है इसलिए इसको रद्द कर दिया जाए.
- ह्मयूम राइट्स वॉच ने भी इसकी आलोचना की है, बकौल उसके इसका दुरुपयोग हो रहा है.
- अफस्पा पर मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक दल सवाल उठाते रहे हैं. उनका तर्क है कि इस कानून से मौलिक अधिकारों का हनन होता है. इस कानून के कुछ सेक्शन पर भी विवाद है.
एएफएसपीए की संवैधानिक स्थिति
1997 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने नागा पीपुल्स मूवमेंट, ऑफ़ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ मामले में एएफएसपीए, 1958 को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में एएफएसपीए लगाने को लेकर 2016 में Extra Judicial Execution Victim Families Association v. Union of India, मामले में कहा था - " हमारी राय में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सशस्त्र बल की मदद लेना नागरिक प्रशासन की विफलता है या यह सैन्य बलों की विफलता का संकेत है अगर उसे सामान्य स्थिति बहाल करने में नागरिक प्रशासन की मदद करनी पड़े। कुछ भी हो, स्थिति सामान्य नहीं हो पा रही है, इसके लिए स्थायी तौर पर या अनिश्चित काल तक के लिए सेना की तैनाती का बहाना नहीं हो सकता है… यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मज़ाक़ उड़ाना होगा और आंतरिक गड़बड़ी के कारण संघ सूची की प्रविष्टि 2 के तहत सैन्य बलों की तैनाती क्षेत्राधिकार का उपहास होगा।"
स्रोत news18 हिंदी ,लाइव लॉ. इन
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