अमेरिका फिर परमाणु बम बनाने में जुटा
रूस और चीन से बढ़ते खतरे को देखते हुए अमेरिका एक बार फिर नए सिरे से परमाणु बम बनाने में जुट गया है। आने वाले 10 सालों में इसके औद्योगिक उत्पादन पर करीब 70 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव है। यह उत्पादन दक्षिण कैरोलिना में सवाना नदी के तट पर स्थित एक फैक्ट्री में और न्यू मैक्सिको के लॉस एल्मोस में हाेगा।
अमेरिकी संस्था द नेशनल न्यूक्लियर सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (एनएनएसए), जो अमेरिका के ऊर्जा विभाग का ही एक अंग है, यहां परमाणु हथियार बनाती है। संस्था का मानना है कि मौजूदा परमाणु हथियार काफी पुराने हो चुके हैं और उन्हें बदलने की जरूरत है। इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि नई टेक्नोलॉजी कहीं ज्यादा सुरक्षित है।
2018 में राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस योजना को मंजूरी दी थी, जिसके तहत कुल 80 गड्ढे हर साल तैयार किए जाएंगे। इसमें 50 दक्षिण कैरोलिना में और 30 न्यू मैक्सिको में हाेंगे। यहां प्लूटोनियम के फुटबॉल जैसे गोले बनाए जाएंगे, जो परमाणु हथियारों में ट्रिगर का काम करेंगे।
अमेरिका के पास 7,550 परमाणु हथियार हैं
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक अमेरिका के पास 7550 परमाणु हथियार हैं। उसने 1750 परमाणु बमों को मिसाइलों और बमवर्षक विमानों में तैनात कर रखा है। इसमें से 150 परमाणु बम यूरोप में तैनात हैं, ताकि रूस पर नजर रखी जा सके। रूस के पास 6,375 और चीन के पास 320 परमाणु हथियार हैं।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक अमेरिका के पास 7550 परमाणु हथियार हैं। उसने 1750 परमाणु बमों को मिसाइलों और बमवर्षक विमानों में तैनात कर रखा है। इसमें से 150 परमाणु बम यूरोप में तैनात हैं, ताकि रूस पर नजर रखी जा सके। रूस के पास 6,375 और चीन के पास 320 परमाणु हथियार हैं।
एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि)
एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है।एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी। अब तक 187 देशों ने इस पर साइन किए हैं। इस पर साइन करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। हालांकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।इस पर साइन नहीं करने वालों में भारत, पाकिस्तान और इस्राइल जैसे देश शामिल हैं। उत्तर कोरिया इससे पहले ही अलग हो चुका है.
व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि
व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty–CTBT), जो परमाणु परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करती है, संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के द्वारा 10 सितंबर, 1996 को पारित हुई। 24 सितंबर, 1996 से इस संधि पर हस्ताक्षर शुरू हुए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका इस पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश बना, यद्यपि इसने अभी तक इसे अनुमोदित नहीं किया है।
सीटीबीटी के कुछ प्रावधान निम्नांकित हैं-
- संधि सभी प्रकार के परमाणु अस्त्र परीक्षण विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है।
- संधि का उल्लंघन रोकने के लिये एक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली स्थापित की जाएगी।
- 1,000 टन क्षमता वाले परम्परागत विस्फोटों से अधिक शक्तिशाली विस्फोट (भूमिगत, वायुमंडल या अंतर्जलीय) का पता लगाने के लिये 20 स्टेशनों वाला एक नेटवर्क स्थापित किया जायेगा।
- अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली या किसी विशेष देश की निगरानी (लेकिन जासूसी नहीं) से प्राप्त सूचना के आधार पर कोई भी देश विस्फोट की सत्यता स्थापित करने के लिये निरीक्षण का आग्रह कर सकता है। निरीक्षण के आवेदन के लिये 51 सदस्यीय कार्यकारी परिषद के 30 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।
यह संधि निरस्त्रीकरण की राह पर मील का पत्थर थी. शीतयुद्ध के चरम पर 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन और सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस संधि (आईएनएफ) पर हस्ताक्षर किए. संधि के अमल में आते ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच छिड़ा शीत युद्ध शांत पड़ने लगा. संधि के तहत दोनों पक्षों ने 500 से 5,500 किलोमीटर रेंज वाली मिसाइलों पर प्रतिबंध लगा दिया.
22 साल बाद 2019 की शुरुआत में अमेरिका और नाटो ने रूस पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया. पश्चिमी देशों के मुताबिक रूस नए किस्म की क्रूज मिसाइलें तैनात कर रहा है. अमेरिका ने फरवरी में आईएनएफ संधि छोड़ने की घोषणा की. अब वह औपचारिक रूप से खत्म हो गया है.
स्रोत डी डब्लु ,नवभारत टाइम्स ,विकिपीडिया
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