अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय और अमेरिका
पृष्ठ्भूमि
नीदरलैंड्स के हेग शहर में स्थित आईसीसी की ओर से जारी बयान के मुताबिक, “अपील चैम्बर ने पाया कि अभियोजक को जांच के लिए अधिकृत किया जाता है... ये कथित अपराध 1 मई 2003 से अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र में किए गए और साथ ही वे अन्य कथित अपराध भी जिनका अफ़ग़ानिस्तान में सशस्त्र संघर्ष से संबंध है, और अफग़ानिस्तान में हालात से पर्याप्त ढंग से जुड़े हैं और जिन्हें अन्य सदस्य देशों के क्षेत्रों में अंजाम दिया गया.”
आईसीसी द्वारा जांच की ज़िम्मेदारी मुख्य अभियोजक फ़तू बेन्सूडा के पास होगी जिन्होंने नवंबर 2017 में पहली बार कोर्ट के प्री-ट्रायल चैम्बर में अपील दायर की थी.
आईसीसी अभियोजक के अनुरोध में उन सभी कथित दुर्व्यवहारों का भी ज़िक्र किया गया था जिन्हें अफ़ग़ानिस्तान में 1 मई 2003 के बाद अंजाम दिया गया.
आईसीसी अभियोजक फ़तू बेन्सूडा का मुख्य कार्य तालिबान व हक़्क़ानी नेटवर्क और अफ़गान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों, नेशनल डायरेक्टरेट फ़ॉर सिक्योरिटी और अफ़ग़ान नेशनल पुलिस के सदस्यों द्वारा कथित युद्धापराधों व मानवता के विरुद्ध अपराधों की जांच करना होगा.
आईसीसी अभियोजक अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैन्यकर्मियों और ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के सदस्यों द्वारा कथित युद्धापराधों की जांच करने के लिए भी तैयार है.
ये कथित अपराध वर्ष 2003-04 की अवधि में अफ़ग़ानिस्तान में गुप्त हिरासत केंद्रों में और "ऐसे देशों में हुए जो रोम संविधि" (Rome Statue) पर मुहर लगाने वाले देशों में शामिल हैं".
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओब्रायन, रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने अपने निर्णय की जानकारी देते हुए उन आईसीसी अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने की घोषणा की थी जो अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका सहित सभी पक्षों द्वारा किए गए कथित युद्धापराधों की जाँच कार्य में जुटे हैं.अमेरिका की तरफ से कहा गया था कि सरकार आईसीसी अधिकारियों के परिजनों के खिलाफ वीजा संबंधी पाबंदियाँ लगाएगी। ग़ौरतलब है कि अफगानिस्तान में हुए युद्ध अपराधों की जांच की जिम्मेदारी आईसीसी द्वारा फतू बेंसूडा को दी गई है। उन्होंने नवंबर 2017 में पहली बार कोर्ट के प्री-ट्रायल चैंबर में इसको लेकर अपील दायर की थी। अमेरिका के अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने आईसीसी को अफगानिस्तान में की जाने वाली जांच को लेकर गैरजवाबदेह अन्तरराष्ट्रीय कुलीन वर्ग का एक राजनैतिक औजार बताया था।
अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की निगरानी करने वाली असेम्बली ऑफ स्टेट पार्टीज के अध्यक्ष ओ-गॉन क्वॉन (O-Gon Kwon, President of the Assembly of States Parties) ने अमेरिकी सरकार के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें अफगानिस्तान में हुए कथित युद्ध अपराधों की जांच कर रहे आईसीसी अधिकारियों के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है। क्वॉन ने अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे फैसलों से सामूहिक अत्याचारों की जवाबदेही तय करने के उनके प्रयास कमजोर पड़ जाएंगे।
क्वॉन ने आईसीसी की स्वतंंत्रता और निष्पक्षता को दोहराते हुए कहा कि कोर्ट का संचालन रोम संविधि के तहत स्थापित प्रणाली के अनुसार किया जाता है। इसमें स्पष्ट है कि अत्याचार संबंधी अपराधों की जांच, मुकदमे और न्याय प्रक्रिया का अधिकार-क्षेत्र सबसे पहले सदस्य देशों के ही पास है। उनका कहना है कि आईसीसी न्याय पाने की आखिरी उम्मीद है । क्वॉन ने कहा कि कोर्ट और असेंबली ऑफ स्टेट पार्टीज ने एक समीक्षा प्रक्रिया की शुरुआत की है। इसका लक्ष्य रोम संविधि को मजबूत करना और अत्याचार संबंधी अपराधों के मामलों में असरदार ढंग से जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय
मई, 2013 की स्थिति के अंतर्गत इसके 122 राष्ट्र सदस्य हैं। हालांकि चीन, भारत, रूस और अमेरिका न्यायालय के आलोचक हैं और वे इसमें शामिल नहीं हुए हैं।
आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिये विश्व स्तर पर स्थापित एक न्यायालय की मांग उस समय प्रारंभ हुई जब राष्ट्र संघ ने एक वैश्विक न्याय तंत्र की चर्चा की थी। 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक नर संहार अभिसमय का प्रयोजन किया। इस अभिसमय ने आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिये एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण की मांग की। 1989 में अंतरराष्ट्रीय मादक द्रव्य तस्करी के संबंध में त्रिनिदाद और टोबैगो की शिकायत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को अंतरराष्ट्रीय विधि सम्मेलन आयोजित करने के लिये प्रेरित किया, लेकिन न्यायालय के गठन में वास्तविक अभिप्रेरक का कार्य स्लोबोदान मिलोसेविक के नेतृत्व में बोस्निया-हर्जेगोविना के नर संहार ने किया (मिलोसेविक पर हेग स्थित अस्थायी अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण में मुकदमा चल रहा है)।
17 जुलाई, 1998 को रोम में आयोजित सरकारी प्रतिनिधियों के एक कूटनीतिक सम्मेलन में आईसीसी संविधान पर 139 देशों ने हस्ताक्षर किए, सात देशों ने संविधान का विरोध किया, जबकि 22 देशों (जिसमें भारत भी सम्मिलित था) ने मतदान में भाग न लेकर तटस्थता की नीति अपनायी।
11 अप्रैल, 2002 को 10 देशों- बोस्निया-हर्जेगोविना, बुल्गारिया, कम्बोडिया, कांगो, आयरलैंड, जॉर्डन, मंगोलिया, नाइजर, रोमानिया और स्लोवाकिया, ने एक ही दिन न्यायालय के पक्ष में अपना अनुमोदन प्रस्तुत किया। इस प्रकार आईसीसी की स्थापना का अनुमोदन करने वाले राज्यों की संख्या 66 हो गयी। आईसीसी का संविधान 1 जुलाई, 2002 को प्रभाव में आया, तब तक 74 देशों ने इस संविधान का अनुमोदन कर दिया था।
न्यायालय में न सिर्फ देशों के विरुद्ध बल्कि व्यक्ति विशेष या व्यक्तियों के समूह (जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति रक्षक बल भी सम्मिलित हैं) के विरुद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है। न्यायालय में नर संहार, युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, आदि से संबंधित मुकदमे चलाये जा सकते हैं। न्यायालय में आक्रमण (aggression) के विरुद्ध भी मुकदमा चलाया जा सकता है लेकिन इसके लिये पहले आक्रमण की परिभाषा पर सदस्य राज्यों की सहमति आवश्यक है। न्यायालय का अधिकार क्षेत्र उस राज्य में होगा जहां आपराधिक घटना घटी है। उस राज्य में भी न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होगा जहां का आरोपी व्यक्ति नागरिक है, लेकिन इसके लिए उस राज्य का न्यायालय के संविधान का एक पक्ष होना आवश्यक है। जो राज्य संविधान का सदस्य नहीं है, उसके समक्ष यह विकल्प होगा कि किसी अपराध विशेष के संबंध में वह आईसीसी को अपने राज्य में अधिकार क्षेत्र प्रदान करे या नहीं। अतः कोई भी विक्षुब्ध देश किसी मामले को न्यायालय में ला सकता है। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद किसी मामले को आईसीसी को निर्दिष्ट कर सकती है।
आईसीसी केवल उन्हीं अपराधों की जांच कर सकता है, जो व्यापक प्रभाव वाले हैं या किसी नागरिक जनसंख्या पर सुनियोजित ढंग से किये गये आक्रमण के भाग हैं। आईसीसी युद्ध अपराधों की सुनवाई तभी कर सकता है जब ऐसे अपराध व्यापक स्तर पर या किसी योजना या नीति के अंतर्गत किए गए हों, लेकिन ऐसे सशस्त्र विद्रोह भी आईसीसी के अधिकार क्षेत्र में आयेंगे जो अंतरराष्ट्रीय चरित्र वाले नहीं हैं, जैसे- 1949 के जेनेवा अभिसमय की घोर अवव्हेलना।
बलात्कार, यौन दासता, आरोपित वेश्यावृत्ति, आरोपित गर्भाधान, आरोपित बन्ध्यीकरण या इस प्रकार के अन्य यौन अपराधों को भी मानवता के विरुद्ध किये गये अपराधों के रूप में स्वीकार किया गया है। आईसीसी के संविधान में पीड़ितों और कार्रवाई में सम्मिलित गवाहों की सुरक्षा के प्रावधान हैं।
सदस्य देशों की सभा के द्वारा एक न्यास कोष (Trust Fund) की स्थापना की जायेगी, जो पीड़ितों को क्षतिपूर्ति; मुआवजे, और; पुनर्वास के रूप में हरजाना प्रदान करेगा।
सीमाएँ
न्यायालय ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता, जो उसकी स्थापना से पहले घटित हुये हों। आक्रमण और आतंकवाद की स्पष्ट व सर्वसम्मत परिभाषा का अभाव इसकी एक अन्य कमजोरी है। ऐसे अपराध जो सदस्य देशों के अधिकार क्षेत्र से बाहर किये गये हैं, आईसीसी के अधिकार क्षेत्र में तब तक नहीं आते हैं, जब तक कि सुरक्षा परिषद संबंधित देश को ऐसे मामलों को आईसीसी में निर्दिष्ट करने के लिये दबाव नहीं डाले। न्यायालय ऐसे मामलों में भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, जिनकी सुनवाई राष्ट्रीय न्यायालयों में हो रही है या हो चुकी है। व्यापक जनसंहार वाले हथियार से संबंधित मामले भी आईसीसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
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