एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध
कई तरह के संक्रमणों से लोगों, जानवरों और पौधों की रक्षा करने में एंटी-माइक्रोबियल अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका दुरुपयोग और हद से ज़्यादा इस्तेमाल उनके बेअसर होने की वजह भी बन सकता है.
पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां रोगाणुओं ने इन जीवनरक्षक दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित कर लिया और मरीज़ों पर दवाओं का असर होना बंद हो गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस का कहना है कि एएमआर के कारण विश्व में जन-स्वास्थ्य की दृष्टि से, एक आपातकाल स्थिति पैदा हो गयी है. इसके चलते अनेकों रोग, जैसे टीबी, जिनका अब तक इलाज संभव था अब लाइलाज हो रहे हैं क्योंकि इन बीमारियों को पैदा करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवी रोगाणु उत्पन्न हो रहे हैं जिन पर कोई दवा असर ही नहीं कर रही है। यह एक भयावह स्थिति है।
एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस के कारण 7 लाख लोग प्रति वर्ष मृत्यु को प्राप्त होते हैं और यदि इसको रोकने के कारगर कदम न उठाये गए, तो यह संख्या आने वाले वर्षों में 1 करोड़ तक बढ़ने की संभावना है.
क्या है एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध?
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है जब सूक्ष्मजीवी – जैसे जीवाणु, वायरस, फंगस, अन्य पराजीवी – अनुवांशिक परिवर्तनों के कारण उन दवाओं से प्रतिरोधी हो जाते हैं जिनसे वे पहले प्रभावित होते थे। यह एक क्रमिक विकासवादी परिवर्तन है परन्तु यह प्रक्रिया कतिपय कारणों से त्वरित हो जाती है, जैसे मानव, पशु और कृषि क्षेत्र में दवाओं का अतिप्रयोग या दुरुपयोग, तथा संक्रमण नियंत्रण में कमी।
कोरोना काल में एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध को लेकर क्यों हो रही है चिंता!
दुनिया भर में पहले से ही एंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से दुरूपयोग हो रहा है और भारत इसमें अग्रणी है। चूंकि वायरस और सह-संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक रोगाणुरोधी (एंटीमाइक्रोबियल्स) का उपयोग किया जाता है, यह अंधाधुंध उपयोग एएमआर (एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस) को और बढ़ा देगा - किसी दवा के प्रतिरोधी बनने के लिए तेजी से उत्परिवर्तन (कोशिकीय संरचना में बदलाव) एक माइक्रोब (सूक्ष्म जीवी) की अंतर्निहित प्रकृति है।
हालांकि डॉक्टर और शोधकर्ता दशकों से एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस के मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन यह विडंबना ही है कि उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, फार्मा, खाद्य पशु, कृषि आदि क्षेत्रों ने एएमआर जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। अब यह कोविड-19 महामारी के साथ मिलकर मानव जीवन को कठिन बनाने को तैयार है।
मलेरिया के उपचार में दी जाने वाली दवाएं क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन खूब प्रयोग की जा रही हैं। फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि यह कोविड-19 के उपचार में कारगर हैं या नहीं। लेकिन, यह स्पष्ट रूप से तय है कि क्लोरोक्वीन मलेरिया के परजीवी प्लाज्मोडियम फॉल्सीपेरम पर अप्रभावी है, जिस पर की यह दवा प्राथमिक रूप से इस्तेमाल की जाती थी।
एचआईवी में प्रयोग की जाने वाली दो दवाएं, लोपिनवीर और रटनवीर के कॉबीनेशन का भी प्रयोग किया जा रहा है। कोरोनावायरस के खिलाफ एक और प्रमुख एंटीवायरल दवाई रेमेडिसविर है जो इबोला वायरस के इलाज के लिए विकसित एक प्रयोगात्मक दवा है। यह इबोला का इलाज करने में विफल रही, लेकिन कोरोनावायरस के खिलाफ प्रभावी पाई गई है - कम से कम यह एक प्लेसबो (बिना किसी वैज्ञानिक आधार के की गई चिकित्सा) की तुलना में अधिक सुरक्षा करता है।
कैसे रोका जा सकता है एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध ?
पशु एवं कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं का तर्कहीन उपयोग तत्काल बंद कर देना आवश्यक है. इन दवाओं का प्रयोग फसल अथवा दूध आदि उत्पाद बढ़ाने के लिए बिलकुल नहीं करना चाहिए। इसके अलावा जिन एंटीबायोटिक दवाओं को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आरक्षित श्रेणी में रखा है उनको पशुओं में उपचार के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा मनुष्यों में भी सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए।
इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि एंटीबायोटिक दवाएं पानी और मिट्टी को प्रदूषित न कर सकें ताकि प्रतिरोधी म्युटेशन वातावरण में स्थित दूसरे जीवाणुओं तक न फैल सकें। साथ ही सभी स्वास्थ्य केंद्रों में संक्रमण नियंत्रण विधियों का समुचित पालन होना भी अति आवश्यक है।
SOURCE DOWN TO EARTH
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