Skip to main content

यूनिवर्सल बेसिक इनकम

यूनिवर्सल बेसिक इनकम

यूनिवर्सल बेसिक इनकम
 

यूनिवर्सल बेसिक इनक़म का मतलब है कि सभी वर्ग के लोगों को बिना उनकी उम्र, सम्पत्ति, रोज़गार, परिवार आदि को देखे हुए कुछ पैसा दिया जाए, जिसको वो अपनी इच्छानुसार ख़र्च कर सकें. हालांकि आज के परिपेक्ष्य में इसे केवल ग़रीबों, बुज़ुर्गों, विधवाओं और बेसहारा आदि लोगों के लिए ही लागू करने के लिए कहा जाता है.

यूनिवर्सल बेसिक इनकम के पीछे तीन अवधारणाएं हैं-


एक, यदि सभी के पास कुछ न कुछ पैसा होगा तो उससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे बाज़ार में डिमांड बढ़ेगी, जिसे पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ेगा, व्यापार में वृद्धि आएगी, रोज़गार सृजित होंगे, विकास को गति मिलेगी और कुल मिलाकर विभिन्न प्रकार के टैक्सों से सरकार की भी आमदनी बढ़ेगी.
दो, व्यक्ति पैसा नहीं होने की वजह से तमाम ग़लत निर्णय लेता है, मसलन बच्चों को ठीक से ना पढ़ाना, पौष्टिक भोजन न करना, क्राइम की दुनिया में चले जाना वग़ैरह वग़ैरह. इन सबका कुल परिणाम यह होता है कि पूरे समाज की सुख, शांति और समृद्धि पर असर पड़ता है. ऐसे में अगर व्यक्ति को रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ पैसे मिल जाएँगे तो वह इन सब कामों में नहीं लगेगा, जिससे सरकार को पुलिस, नौकरशाही आदि पर ज़्यादा ख़र्च नहीं करना पड़ेगा. सरकार का ख़र्च कम होने की एक वजह से नवउदारवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख अर्थशास्त्री मिल्टन फ़्रीड्मन ने भी अपनी किताब ‘कैपिटलिज्म और फ़्रीडम’ में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा का समर्थन किया है.
तीन, ऐसा माना जाता है कि तकनीकी में उन्नति एक सतत प्रक्रिया है. तकनीकी में प्रगति अर्थव्यवस्था के चरित्र और संरचना को तेज़ी से बदल देती है. जिस समय अर्थव्यवस्था की संरचना और चरित्र बदल रहा होता है, उस समय लोग नयी तकनीकी को तेज़ी से नहीं अपना पाने की वजह से बड़ी संख्या में बेरोज़गार हो जाते हैं. यूनिवर्सल बेसिक इनकम ऐसे समय में बेरोज़गारों को राहत देती है, जिससे उनके मन में असंतोष ना पैदा हो.
यदि आज के समय में देखा जाए तो नब्बे के दशक में आयी सूचना और तकनीकी क्रांति ने अर्थव्यवस्था की संरचना को बदल दिया है. दुनिया आज तेज़ी से नॉलेज आधारित अर्थव्यवस्था में तब्दील होती जा रही है. इसमें आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस और बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में हुई प्रगति ने भी इसमें काफ़ी योगदान दिया है.
कुल मिलाकर इसका प्रभाव यह पड़ रहा है कि बेरोजगारी तेज़ी से बढ़ रही है, जिसकी वजह से आर्थिक असमानता और ग़रीबी भी बढ़ रही है. अर्थव्यवस्था में आ रहे इस परिवर्तन की वजह से वैश्विक स्तर पर यह कहा जा रहा है कि पूँजीवाद संकट में है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम बेरोज़गार लोगों को संकट से बचाने में मदद करेगी.

कोरोना तथा आर्थिक मंदी 

कोरोना के चलते भारत में लॉक डाउन  समाप्ति के बाद भी आर्थिक गतिविधियाँ तेज नहीं हो पा रही है। परिणमतः भारत में आर्थिक मंदी का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। लोगो के रोजगार पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इस मंदी के दौर में भारत की बहुसन्खयक आबादी के समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। 

ऐसी परिस्थिति में यह जरुरी है की लोगो को एक निश्चित रकम सरकार के द्वारा प्रदान किया जाये। 

यूनिवर्सल बेसिक इनकम तथा विश्व 

हांगकांग की सरकार ने कोरोना वायरस के कारण मंदी झेल रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 70 लाख स्थानीय निवासियों को नकद सहायता देने की घोषणा की है। इसके तहत हर स्थानीय नागरिक को 94,720 रुपये (1,280 अमेरिकी डॉलर) की मदद मिलेगी। हांगकांग की अर्थव्यवस्था को भी वायरस के कारण खासा नुकसान झेलना पड़ रहा है। लेकिन इस मदद से लोगों की परेशानी काफी हद तक दूर हो सकती है।

lफिनलैंड की सरकार बीते दो साल से 2,000 नागरिकों को बिना किसी शर्त हर महीने 560 यूरो की बेसिक इनकम दे रही है. इस प्रयोग का अध्ययन करने के लिए जनवरी 2017 से दिसंबर 2019 तक के आंकड़े जुटाए गए. शोध में साफ पता चला कि हर महीने 560 यूरो पाने वाले लोगों में असुरक्षा और तनाव का स्तर बहुत कम था. कुल मिलाकर लोगों के जीवन में एक तरह की खुशहाली लौट आई.
बेसिक इनकम पाने वाले टॉमस कहते हैं, "जिन्हें बेसिक इनकम मिल रही थी वे मानसिक रूप से बेहतर महसूस कर रहे थे. जब आप सुरक्षित और आजाद होते हैं तो आप बेहतर महसूस करते हैं.” 
कोरोना काल में वैसे अमेरिका, जर्मनी, कनाडा आदि देशों में सभी लोगों को एक नियत धन दिया गया है। अमेरिका और कनाडा में 2 से ढाई हजार डालर प्रतिमाह की दर से समान रूप से प्रत्येक परिवार को दिये गए हैं।
भारत में सेल्फ एंप्लॉयड वुमेन एसोसिएशन (सेवा भारत) नाम की एक संस्था ने साल 2011 से 2016 के बीच मध्य प्रदेश में इंदौर के आठ गांवों में मध्य प्रदेश अनकंडीशनल कैश ट्रांसफर प्रॉजेक्ट नाम से एक पायलट प्रॉजेक्ट चलाया। जिसके तहत करीब 6,000 लोगों को सीधी मदद दी गई। यूनिसेफ फंडेड एक योजना भी 30 गाँव में चली थी जिसमें लोगों को निश्चित रकम हर महीने दी गई। इन योजनाओं के बढ़िया नतीजे रहे। लोगों का जीवनस्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य, असमानता सभी में सकारात्मक फर्क आया। प्रयोग के तौर पर केन्या, नामीबिया, कनाडा, आदि देशों में ऐसी योजनाएँ चलाई जा चुकीं हैं।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के क्या है नुकसान?
-यूनिवर्सिल बेसिक इनकम के बाद गुड्स और सर्विसेज की डिमांड बढ़ जाएगी जिससे महंगाई बढ़ सकती है। 
-अगर महंगाई बढ़ेगी तो बेसिक इनकम से बुनियादी जरुरते पूरी कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
-फ्री इनकम लोगों को आलसी बना देगी जिससे इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में मुश्किल होगी।
-फ्री इनकम से लोग ओवरडिपेंडेंट बन जाएंगे।
-सरकार को स्कूल और अस्पतालों पर खर्च होने वाली राशि को फ्री इनकम के तौर पर बांटना होगा।
-फ्री इनकम की वजह से लेबर फोर्स में कमी आ सकती है।
-अपर क्लास के लिए बेसिक इनकम किसी काम की नहीं होगी। ऐसे में सरकार के लिए उन्हें ये राशि बांटना एक तरह का वेस्टेज होगा।

क्या भारत जैसे देश इसे इम्प्लीमेंट कर सकते हैं?
साल 2010 में जब देश में यूपीए की सरकार थी तब मध्य प्रदेश में बेसिक इनकम का ट्रायल करने के लिए 20 गांवों को चुना गया था। इनमें से 8 गांवों को बेसिक इनकम दिया गया जबकि 12 गांवों के साथ इसका कंपेरिजन किया गया। ये गांव दो तरह के थे एक ट्राइबल और दूसरे नॉर्मल। नार्मल गांव में 6000 से ज्यादा लोगों को UBI दिया गया। वयस्क को 200 रुपए और बच्चों को 100 रुपए दिए गए। एक साल बाद इस राशि को बढ़ाकर 300 और 150 रुपए कर दिया गया। जबकि ट्राइबल गांव में 12 महीने की अवधि में इसे 300 और 150 रुपए रखा गया। इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट काफी चौंकाने वाले थे। रिजल्ट में सामने आया कि गांव वालों ने अपने खाने पर हेल्थ पर ज्यादा पैसे खर्च किए।

बच्चों की स्कूल में परफॉर्मेंस 68 परसेंट ज्यादा बढ़ गई। परिवारों की सेविंग तीन गुना बढ़ गई। गांव में नए बिजनेस दोगुना हो गए। गांव की गरीबी कम हो गई। सैनिटेशन और न्यूट्रिशन में बदलाव देखने को मिला। कुकिंग और लाइटिंग के एनर्जी सोर्स में भी बदलाव देखने को मिला। हालांकि एक्सपेरिमेंट के पॉजिटिव रिजल्ट के बावजूद पूरे भारत में इसे लागू कर पाना आसान नहीं है। सवाल उठता है कि इतने सारे पैसे सरकार कहा से लाएगी? कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि अपर क्लास पर वेल्थ टैक्स लगाकर और कुछ योजनाओं को बंद कर सरकार कुछ पैसे जुटा सकती है।

आगे की राह प्रयोग 

  1. भारत में 2010 में मध्यप्रदेश के गांव में किये गये प्रयोग की सफलता यह दिखाती है की शेष भारत में इस तरह की योजना लागु की जा सकती है। 
  2. अगर यह योजना लागु होती है तो सब्सिडी की बंदरबाँट पर रोक लगने के साथ साथ राजकोषीय घाटा भी कम हो सकता  है। 
  3. अभी वर्तमान में भारत में किसान सम्मान निधि योजना ,छत्तीसगढ़ में राजीव गाँधी न्याय योजना यूनिवर्सिल बेसिक इनकम के तर्ज पर ही चल रही है। 
स्रोत - द प्रिंट ,भास्कर डॉट कॉम ,हिंदी वन इंडिया ,डी डब्लू डॉट कॉम 

Comments

Popular posts from this blog

दंडकारण्य का पठार

दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न

INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद