यूनिवर्सल बेसिक इनकम
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के पीछे तीन अवधारणाएं हैं-
दो, व्यक्ति पैसा नहीं होने की वजह से तमाम ग़लत निर्णय लेता है, मसलन बच्चों को ठीक से ना पढ़ाना, पौष्टिक भोजन न करना, क्राइम की दुनिया में चले जाना वग़ैरह वग़ैरह. इन सबका कुल परिणाम यह होता है कि पूरे समाज की सुख, शांति और समृद्धि पर असर पड़ता है. ऐसे में अगर व्यक्ति को रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ पैसे मिल जाएँगे तो वह इन सब कामों में नहीं लगेगा, जिससे सरकार को पुलिस, नौकरशाही आदि पर ज़्यादा ख़र्च नहीं करना पड़ेगा. सरकार का ख़र्च कम होने की एक वजह से नवउदारवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख अर्थशास्त्री मिल्टन फ़्रीड्मन ने भी अपनी किताब ‘कैपिटलिज्म और फ़्रीडम’ में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा का समर्थन किया है.
तीन, ऐसा माना जाता है कि तकनीकी में उन्नति एक सतत प्रक्रिया है. तकनीकी में प्रगति अर्थव्यवस्था के चरित्र और संरचना को तेज़ी से बदल देती है. जिस समय अर्थव्यवस्था की संरचना और चरित्र बदल रहा होता है, उस समय लोग नयी तकनीकी को तेज़ी से नहीं अपना पाने की वजह से बड़ी संख्या में बेरोज़गार हो जाते हैं. यूनिवर्सल बेसिक इनकम ऐसे समय में बेरोज़गारों को राहत देती है, जिससे उनके मन में असंतोष ना पैदा हो.
यदि आज के समय में देखा जाए तो नब्बे के दशक में आयी सूचना और तकनीकी क्रांति ने अर्थव्यवस्था की संरचना को बदल दिया है. दुनिया आज तेज़ी से नॉलेज आधारित अर्थव्यवस्था में तब्दील होती जा रही है. इसमें आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस और बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में हुई प्रगति ने भी इसमें काफ़ी योगदान दिया है.
कुल मिलाकर इसका प्रभाव यह पड़ रहा है कि बेरोजगारी तेज़ी से बढ़ रही है, जिसकी वजह से आर्थिक असमानता और ग़रीबी भी बढ़ रही है. अर्थव्यवस्था में आ रहे इस परिवर्तन की वजह से वैश्विक स्तर पर यह कहा जा रहा है कि पूँजीवाद संकट में है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम बेरोज़गार लोगों को संकट से बचाने में मदद करेगी.
कोरोना तथा आर्थिक मंदी
कोरोना के चलते भारत में लॉक डाउन समाप्ति के बाद भी आर्थिक गतिविधियाँ तेज नहीं हो पा रही है। परिणमतः भारत में आर्थिक मंदी का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। लोगो के रोजगार पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इस मंदी के दौर में भारत की बहुसन्खयक आबादी के समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
ऐसी परिस्थिति में यह जरुरी है की लोगो को एक निश्चित रकम सरकार के द्वारा प्रदान किया जाये।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम तथा विश्व
lफिनलैंड की सरकार बीते दो साल से 2,000 नागरिकों को बिना किसी शर्त हर महीने 560 यूरो की बेसिक इनकम दे रही है. इस प्रयोग का अध्ययन करने के लिए जनवरी 2017 से दिसंबर 2019 तक के आंकड़े जुटाए गए. शोध में साफ पता चला कि हर महीने 560 यूरो पाने वाले लोगों में असुरक्षा और तनाव का स्तर बहुत कम था. कुल मिलाकर लोगों के जीवन में एक तरह की खुशहाली लौट आई.
-यूनिवर्सिल बेसिक इनकम के बाद गुड्स और सर्विसेज की डिमांड बढ़ जाएगी जिससे महंगाई बढ़ सकती है।
-अगर महंगाई बढ़ेगी तो बेसिक इनकम से बुनियादी जरुरते पूरी कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
-फ्री इनकम लोगों को आलसी बना देगी जिससे इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में मुश्किल होगी।
-फ्री इनकम से लोग ओवरडिपेंडेंट बन जाएंगे।
-सरकार को स्कूल और अस्पतालों पर खर्च होने वाली राशि को फ्री इनकम के तौर पर बांटना होगा।
-फ्री इनकम की वजह से लेबर फोर्स में कमी आ सकती है।
-अपर क्लास के लिए बेसिक इनकम किसी काम की नहीं होगी। ऐसे में सरकार के लिए उन्हें ये राशि बांटना एक तरह का वेस्टेज होगा।
क्या भारत जैसे देश इसे इम्प्लीमेंट कर सकते हैं?
साल 2010 में जब देश में यूपीए की सरकार थी तब मध्य प्रदेश में बेसिक इनकम का ट्रायल करने के लिए 20 गांवों को चुना गया था। इनमें से 8 गांवों को बेसिक इनकम दिया गया जबकि 12 गांवों के साथ इसका कंपेरिजन किया गया। ये गांव दो तरह के थे एक ट्राइबल और दूसरे नॉर्मल। नार्मल गांव में 6000 से ज्यादा लोगों को UBI दिया गया। वयस्क को 200 रुपए और बच्चों को 100 रुपए दिए गए। एक साल बाद इस राशि को बढ़ाकर 300 और 150 रुपए कर दिया गया। जबकि ट्राइबल गांव में 12 महीने की अवधि में इसे 300 और 150 रुपए रखा गया। इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट काफी चौंकाने वाले थे। रिजल्ट में सामने आया कि गांव वालों ने अपने खाने पर हेल्थ पर ज्यादा पैसे खर्च किए।
बच्चों की स्कूल में परफॉर्मेंस 68 परसेंट ज्यादा बढ़ गई। परिवारों की सेविंग तीन गुना बढ़ गई। गांव में नए बिजनेस दोगुना हो गए। गांव की गरीबी कम हो गई। सैनिटेशन और न्यूट्रिशन में बदलाव देखने को मिला। कुकिंग और लाइटिंग के एनर्जी सोर्स में भी बदलाव देखने को मिला। हालांकि एक्सपेरिमेंट के पॉजिटिव रिजल्ट के बावजूद पूरे भारत में इसे लागू कर पाना आसान नहीं है। सवाल उठता है कि इतने सारे पैसे सरकार कहा से लाएगी? कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि अपर क्लास पर वेल्थ टैक्स लगाकर और कुछ योजनाओं को बंद कर सरकार कुछ पैसे जुटा सकती है।
आगे की राह प्रयोग
- भारत में 2010 में मध्यप्रदेश के गांव में किये गये प्रयोग की सफलता यह दिखाती है की शेष भारत में इस तरह की योजना लागु की जा सकती है।
- अगर यह योजना लागु होती है तो सब्सिडी की बंदरबाँट पर रोक लगने के साथ साथ राजकोषीय घाटा भी कम हो सकता है।
- अभी वर्तमान में भारत में किसान सम्मान निधि योजना ,छत्तीसगढ़ में राजीव गाँधी न्याय योजना यूनिवर्सिल बेसिक इनकम के तर्ज पर ही चल रही है।
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