सूर्य ग्रहण
रविवार यानी 21 जून को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है.देश के कुछ हिस्सों में ये वलयाकार दिखेगा, जहां खगोल विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग 'रिंग ऑफ़ फ़ायर' या 'आग के छल्ले' का दीदार कर पाएंगे.
"वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में आते हैं." यह खगोलीय घटना चंद्रमा के सूरज और धरती के बीच आ जाने के कारण होती है और कुछ समय के लिए एक विशेष इलाक़े में अंधेरा छा जाता है.रविवार का सूर्य ग्रहण इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस दौरान सूर्य 'रिंग ऑफ़ फ़ायर' की तरह दिखेगा
.स्रोत नासाअफ्रीका महादेश में कांगो के लोग दुनिया में सबसे पहले वलयाकार सूर्य ग्रहण का दीदार कर पाएंगे और ये भारत के राजस्थान पहुंचने से पहले दक्षिणी सूडान, इथोपिया, यमन, ओमान, सऊदी अरब, हिंद महासागर और पाकिस्तान से होकर गुज़रेगा.
भारत के बाद तिब्बत, चीन और ताइवान के लोग इसे देख पाएंगे. प्रशांत महासागर के बीच पहुंचकर ये समाप्त हो जाएगा.
चन्द्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग के ढ़के जाने की वजह से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण व वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
पूर्ण सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले ले फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुँच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है
- आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
- वलयाकार सूर्य ग्रहण
वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
कौन सी वैज्ञानिक जानकारियाँ प्राप्त होती है ?
ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होतीं हैं जिससे कि वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें सूर्य ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होंने अन्य पिण्डों के गुरुत्वकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौडे क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 11 मिनट ही हो सकती है उससे अधिक नहीं। संसार के समस्त पदार्थों की संरचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से ही संभव है। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के प्रभावों को समझ लिया जाए तो समस्त धरा पर आश्चर्यजनक परिणाम लाए जा सकते हैं। सूर्य की प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और जैसा कि स्पष्ट है, प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों को पूंजीभूत कर एक ही विशेष बिन्दु पर केन्द्रित कर लिया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है।
सूर्य
स्रोत - विकिपीडियावैज्ञानिक कहते हैं कि इसका तापमान बाहरी स्तर पर 6000 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर डेढ़ करोड़ डिग्री तक रहता है। इसका आकार, उम्र और तापमान अन्य तारों के लगभग मध्यमान के अनुपात में है। इसकी संरचना अधिकतर हाइड्रोजन एवं हीलियम नामक तत्वों से हुई है। सूर्य का व्यास 1372400 है। धरती से इसकी औसत दूरी 149000000 किलोमीटर मानी गई है। ये अपनी धुरी पर 30 दिनों मे घूम जाता है। इस पर पृथ्वी जितने 13 लाख गोले रखे जा सकते हैं। अनुमान है कि अभी यह गोला तीस अरब वर्ष तक जलते रहने की क्षमता रखता है।
स्रोत बीबीसी हिंदी ,वेबदुनिया ,विकिपीडिया
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