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तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड)

 तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड)

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पानगडिय़ा ने वर्ष 2015 में उन्होंने तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड) की स्थापना की वकालत की थी जो बंदरगाहों के आसपास हों। उनका सुझाव था कि ऐसा करने से लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी की समस्या काफी हद तक दूर हो जाएगी। एसईजेड के उत्पादन को नजदीकी बंदरगाह तक ले जाने में अक्सर यह समस्या आड़े आती है।

इस पर फिर से विचार करने की निम्न कारणों से आवश्यक है -

पहला कारण है कोविड के बाद अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए व्यापक बुनियादी तेजी और लोक निर्माण कार्यक्रम की आवश्यकता है। यदि पूर्वी तट और पश्चिमी तट पर तीन-तीन सीईजेड को संबंधित आंतरिक और बाह्य बुनियादी ढांचे के साथ विकसित किया जाए तो इस दिशा में काफी मदद मिल सकती है।

दूसरी बात, तटीय सीईजेड कार्यक्रम पर नए सिरे से विचार करने का दूसरा कारण यह है कि कोविड के बाद के दौर में वैश्विक विनिर्माण कंपनियां अपनी आपूर्ति शृंखला में से जोखिम कम करना चाहती हैं और इसलिए वे उन्हें चीन से बाहर ले जाना चाहती हैं। सीईजेड ऐसे कुछ विनिर्माण को भारत लाने में भरोसेमंद साबित होगा। इसके लिए ऐसे सीईजेड क्षेत्र से अफसरशाही और नियामकीय बाधाओं को भी दूर किया जाना चाहिए। 

तीसरी बात, पानगडिय़ा का बुनियादी विचार यह था कि सीईजेड को ऐसे मंच के रूप में इस्तेमाल किया जाए जिसके माध्यम से श्रम आधारित निर्यात को नई दिशा दी जा सके। बेरोजगारी के बढ़ते स्तर को देखते हुए यह बात अब और अधिक महत्त्वपूर्ण हो चुकी है।

बल्कि वास्तव में यही असली चीनी मॉडल भी है। चीन ने अपने तटीय इलाकों में और ताइवान तथा हॉन्गकॉन्ग के पास चार बड़े सीईजेड स्थापित किए। इनकी स्थापना की जगह सबसे महत्त्वपूर्ण थी। इससे उनकी कारोबारी क्षमता में इजाफा हुआ। इतना ही नहीं तटीय इलाके में स्थित होने के कारण इन्हें वैश्विक बाजारों के साथ अबाध कारोबार का अवसर भी मिला। वे विदेशों से कच्चे माल का आयात तथा उन्हें तैयार माल का निर्यात आसानी से कर सकते थे। पानगडिय़ा बताते हैं कि इससे चीन के कामगारों के पास रोजगार के अवसर कई गुना बढ़ गए।

इसका सबसे बड़ा लाभ उन फर्म के रूप में सामने आएगा जो ऐसे सीईजेड की ओर आकर्षित होंगी। मसलन बड़ी कंपनियां जो बड़े पैमाने पर कामगारों को रोजगार दे सकती हैं और जो बड़े तकनीकी स्थानांतरण में सक्षम हैं। ये सीईजेड बुनियादी और नियामकीय सुधार के वाहक बन सकते हैं।

सागरमाला परियोजना 

सागर माला परियोजना (Sagar Mala project) भारत के बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए भारत सरकार की एक रणनीतिक और ग्राहक-उन्मुख पहल है जिससे पोर्ट के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ाया जा सके और भारत के विकास में योगदान करने के लिए तट रेखाएं विकसित की जा सकें। यह मौजूदा बंदरगाहों को आधुनिक विश्वस्तरीय बंदरगाहों में रूपांतरित करने और सड़क, रेल, अंतर्देशीय और तटीय जलमार्गों के माध्यम से बंदरगाहों, औद्योगिक समूहों और दूरदराज के इलाकों और कुशल निकास प्रणालियों के विकास को एकीकृत करने की दिशा में दिख रहा है जिसके परिणामस्वरूप तटीय क्षेत्रों में बंदरगाह आर्थिक गतिविधियों के ड्राइवर बन सकेंगे।

स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड ,विकिपीडिया 

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