तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड)
इस पर फिर से विचार करने की निम्न कारणों से आवश्यक है -
पहला कारण है कोविड के बाद अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए व्यापक बुनियादी तेजी और लोक निर्माण कार्यक्रम की आवश्यकता है। यदि पूर्वी तट और पश्चिमी तट पर तीन-तीन सीईजेड को संबंधित आंतरिक और बाह्य बुनियादी ढांचे के साथ विकसित किया जाए तो इस दिशा में काफी मदद मिल सकती है।
दूसरी बात, तटीय सीईजेड कार्यक्रम पर नए सिरे से विचार करने का दूसरा कारण यह है कि कोविड के बाद के दौर में वैश्विक विनिर्माण कंपनियां अपनी आपूर्ति शृंखला में से जोखिम कम करना चाहती हैं और इसलिए वे उन्हें चीन से बाहर ले जाना चाहती हैं। सीईजेड ऐसे कुछ विनिर्माण को भारत लाने में भरोसेमंद साबित होगा। इसके लिए ऐसे सीईजेड क्षेत्र से अफसरशाही और नियामकीय बाधाओं को भी दूर किया जाना चाहिए।
तीसरी बात, पानगडिय़ा का बुनियादी विचार यह था कि सीईजेड को ऐसे मंच के रूप में इस्तेमाल किया जाए जिसके माध्यम से श्रम आधारित निर्यात को नई दिशा दी जा सके। बेरोजगारी के बढ़ते स्तर को देखते हुए यह बात अब और अधिक महत्त्वपूर्ण हो चुकी है।
बल्कि वास्तव में यही असली चीनी मॉडल भी है। चीन ने अपने तटीय इलाकों में और ताइवान तथा हॉन्गकॉन्ग के पास चार बड़े सीईजेड स्थापित किए। इनकी स्थापना की जगह सबसे महत्त्वपूर्ण थी। इससे उनकी कारोबारी क्षमता में इजाफा हुआ। इतना ही नहीं तटीय इलाके में स्थित होने के कारण इन्हें वैश्विक बाजारों के साथ अबाध कारोबार का अवसर भी मिला। वे विदेशों से कच्चे माल का आयात तथा उन्हें तैयार माल का निर्यात आसानी से कर सकते थे। पानगडिय़ा बताते हैं कि इससे चीन के कामगारों के पास रोजगार के अवसर कई गुना बढ़ गए।
इसका सबसे बड़ा लाभ उन फर्म के रूप में सामने आएगा जो ऐसे सीईजेड की ओर आकर्षित होंगी। मसलन बड़ी कंपनियां जो बड़े पैमाने पर कामगारों को रोजगार दे सकती हैं और जो बड़े तकनीकी स्थानांतरण में सक्षम हैं। ये सीईजेड बुनियादी और नियामकीय सुधार के वाहक बन सकते हैं।
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