मनरेगा(महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना)
पृष्ठ्भूमि
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA)
गांवो में निवासरत अकुशल श्रमिकों को 100 दिनों की रोजगार देने की गारंटी प्रदान करने वाले विश्व के सबसे बड़े कल्याणकारी योजना की शरूआत 2 अक्टूबर 2006 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के बंदना पल्ली गांव से हुई थी।
पहले चरण में इसके अन्तर्गत 200 गांवो को शामिल किया गया था।वर्ष 2007-2008 में इसके अन्तर्गत भारत के शेष गांवो को शामिल कर लिया गया।
इसी तरह 2 अक्टूबर 2008 से इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कर दिया गया है।
लॉकडाउन में मनरेगा
लॉकडाउन के शुरुआती 2 महीनों में देश के ग्रामीण इलाकों में 2.63 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिलता रहा। हर परिवार को लॉकडाउन के 60 दिनों में से 17 दिन काम मिला, जो इनके खाने-पीने और जरूरी खर्चों के लिए पर्याप्त था.
2020-21 के मार्च और अप्रैल महीने में मनरेगा के तहत मिले रोजगार की तुलना पिछले साल से की जाए तो ज्यादा अंतर नजर नहीं आता। वित्त वर्ष 2019-20 में 5.48 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत सालभर में औसत 48 दिन का काम मिला था। इस हिसाब से इस वित्त वर्ष के 2 महीनों का आंकड़ा ठीक-ठाक ही कहा जाएगा।
इस साल बजट में मनरेगा पर 61,500 करोड़ का प्रावधान किया गया था। लेकिन 17 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा को 40 हजार करोड़ अतिरिक्त देने की बात कही। यानी मनरेगा के बजट को सीधे-सीधे 65% बढ़ा दिया गया। यह इसलिए क्योंकि लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाकों में यही एक योजना थी, जो लोगों को रोजगार दे रही थी। और फिर शहर से गांव वापस लौटे वे मजदूर, जिनके पास अब कोई काम नहीं बचा, उनके लिए भी सरकार को रोजगार का कोई न कोई बंदोबस्त तो करना ही था। ऐसे में मनरेगा पर बजट बढ़ाना ही सरकार के पास सबसे बेहतर विकल्प था।
पिछले 4 सालों को ही देख लें तो लगातार इस योजना पर केन्द्र सरकार ने बजट बढ़ाया ही है। 2017-18 में यह 48 हजार करोड़ था, जो 2018-19 में 55 हजार करोड़ हुआ। 2019-20 में मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया, वहीं 2020-21 के लिए यह राशि 61 हजार 500 कर दी गई। बहरहाल, 17 मई के बाद 2020-21 के लिए मनरेगा का बजट 1 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है।
स्रोत - दैनिक भास्कर
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