हॉन्गकॉन्ग संकट और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून
चीन के विधान मंडल ने हॉन्ग कॉन्ग के लिये विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा विधेयक के मसौदे को बृहस्पतिवार को मंजूरी दे दी। इस विधेयक को अर्ध-स्वायत्त हॉन्ग कॉन्ग के कानूनी और राजनीतिक संस्थानों को कमजोर करने वाला बताकर इसकी कड़ी आलोचना की गई थी। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले चार प्रकार के अपराधों से संबंधित इस विधेयक की समीक्षा के बाद इसे मंजूरी दे दी।
इस कानून में मुकदमे का सामना करने के लिए आरोपियों को सीमा पार कर चीनी मुख्य भूभाग नहीं भेजा जाएगा। इस नए कानून से चीन की सुरक्षा एजेंसियों को पहली बार हॉन्ग कॉन्ग में अपने प्रतिष्ठान खोलने की अनुमति मिल जाएगी।
हांगकांग के मिनी-संविधान ‘बेसिक लॉ' के अनुच्छेद 23 में लिखा है कि देशद्रोह जैसे गंभीर मामलों में शहर को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहिए. इससे पहले आज तक इस अनुच्छेद का इस्तेमाल नहीं किया गया है. हांगकांग में प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी के मूल्यों की काफी मान्यता रही है, जबकि मुख्य भूमि चीन में स्थिति इसके बिल्कुल उलट मानी जाती है. सन 1997 में जब अपने उपनिवेश हांगकांग को ब्रिटेन ने वापस चीन को सौंपा था तभी इन मूल्यों को सुरक्षित रखने को लेकर समझौता हुआ था.
हांगकांग की प्रतिक्रिया
हाल के महीनों में कोरोना के चलते लगी पाबंदियों के कारण इस कदम का सबसे ज्यादा विरोध सड़कों के बजाए इंटरनेट पर दिखाई दे रहा है. सोशल मीडिया साइटों, चैटिंग ऐप्स में हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता फिर से विरोध प्रदर्शन को शुरू करने का आह्वान कर रहे हैं. हांगकांग की सिविक पार्टी के सांसद डेनिस क्वॉक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "इससे हांगकांग का अंत हो जाएगा, कोई ग़लतफहमी मत रखिएगा इससे ‘एक देश, दो व्यवस्था' का अंत होना तय है.”
मशहूर लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट जोशुआ वॉन्ग का कहना है कि आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रदर्शनकारियों के लिए यह चीन का साफ संदेश है. वॉन्ग ने ट्विटर पर लिखा, "बीजिंग हांगकांग वासियों की आलोचना को अपनी ताकत और डर से चुप कराना चाहता है.”
कैसे ब्रिटेन के कब्ज़े में आया था हॉन्ग कॉन्ग
1842 में हुए प्रथम अफीम युद्ध में चीन को हराकर ब्रिटिश सेना ने पहली बार हॉन्ग कॉन्ग पर कब्जा जमा लिया था। बाद में हुए दूसरे अफीम युद्ध में चीन को ब्रिटेन के हाथों और हार का सामना करना पड़ा। इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 1898 में ब्रिटेन ने चीन से कुछ अतिरिक्त इलाकों को 99 साल की लीज पर लिया था। ब्रिटिश शासन में हॉन्ग कॉन्ग ने तेजी से प्रगति की।
चीन को सौंपने की कहानी
1982 में ब्रिटेन ने हॉन्ग कॉन्ग को चीन को सौंपने की कार्रवाई शुरू कर दी जो 1997 में जाकर पूरी हुई। चीन ने एक देश दो व्यवस्था के तहत हॉन्ग कॉन्ग को स्वायत्तता देने का वादा किया था। चीन ने कहा था कि हॉन्ग कॉन्ग को अगले 50 सालों तक विदेश और रक्षा मामलों को छोड़कर सभी तरह की आजादी हासिल होगी। बाद में चीन ने एक समझौते के तहत इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना दिया।
स्रोत- जागरण जोश ,नवभारत टाइम्स ,dw
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