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चीन का भारत में निवेश

चीन का भारत में निवेश 

चीनी सामानो के बहिष्कार के बीच यह जानना आवश्यक है की चीन भारत के बहुत सारे स्टार्ट अप्स में निवेश कर चूका है।सिर्फ स्टार्ट अप्स ही नहीं वह अन्य क्षेत्रो में भी अपना निवेश लगातार बढ़ाता जा रहा है। 
चीन का भारत में निवेश
मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक 'गेटवे हाउस' ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है।रिपोर्ट के अनुसार भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी वैल्यूएशन एक अरब डॉलर या उससे अधिक होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तकनीकी क्षेत्र में ज्यादा निवेश के कारण चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है। 
चीन ने 
2014 से 2019 तक भारतीय स्टार्टअप्स में 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। 
चीन की कई बड़ी कंपनियों ने पिछले 5-6 साल में भारत में निवेश बढ़ाया है। रिपोर्ट्स के अनुसार भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर या उससे अधिक वैल्यूएशन वाली) में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है।
 एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में चायनीज कंपनियों ने भारत में 51 मिलियन डॉलर का निवेश किया था जो 2019 में बढ़कर 1230 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया।चीन की जिन कपंनियों ने भारत में निवेश किया उनमें अलीबाबा, टेंशेट और टीआर कैपिटल सहित कई दिग्गज कंपनियां शामिल हैं। टेंशेट ने भारत की 19 कंपनियों में, शुनवाई कैपिटल ने 16 कंपनियों में, स्वास्तिका 10 कंपनियों में और शाओमी ने 8 भारतीय कंपनियों में निवेश किया है। 
चीन की स्मार्टफोन बनाने वाली कपनियों ने भारती स्मार्टफोन बाजार पर अपना प्रभाव बना लिया है। भारत में स्मार्टफोन का बाजार करीब 2 लाख करोड़ रुपए का है। चाइनीज ब्रैंड जैसे ओप्पो, शाओमी और रेडमी ने 70 फीसदी से ज्यादा मोबाइल मार्केट पर कब्जा कर लिया है। इसी तरह 25 हजार करोड़ के टेलीविजन मार्केट में चाइनीज ब्रैंड का 45 फीसदी तक कब्जा है।

भारत के फार्मा सेक्टर में चीन का निवेश 

संसद में भारत सरकार के एक बयान के मुताबिक़, भारत की दवा बनाने वाली कंपनियां क़रीब 70 फ़ीसदी एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स चीन से आयात करती हैं.साल 2018-19 के वित्तीय वर्ष में देश की फर्मों ने चीन से 2.4 अरब डॉलर मूल्य की दवाइयां और एपीआई आयात किए.
दवाइयों के निर्यात के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है. देश का दवा निर्यात 2018-19 में 11 प्रतिशत बढ़कर 19.2 अरब डॉलर हो गया है. इसमें जेनेरिक दवाएं भारतीय फ़ार्मास्युटिकल क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा हैं और कमाई के मामले में इनका मार्केट शेयर 75 फीसदी है. काफ़ी हद तक चीनी एपीआई पर निर्भरता भी इसकी वजह है. भारत चीनी कच्चे माल को प्राथमिकता देता है क्योंकि यह बहुत सस्ता है और सामग्री वहां आसानी से उपलब्ध है.
यहाँ तक कोरोना के इस दौर में जिस  हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की पूछ परख बढ़ गयी हैउसका कच्चा माल जिसे एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) कहते हैं, चीन से आयात किया जाता है.दूसरी निर्यात की जाने दवा क्रोसीन, जिसका एपीआई पैरासीटामॉल भी चीन से आता है. 
सिचुआन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रो. हुआंग यूनसॉन्ग ने बीबीसी को बताया, ''चीन में कच्चा माल उपलब्ध कराने वाली कंपनियां भारत के फ़ार्मास्युटिकल निर्माताओं के बिना चल नहीं पाएंगी.''

ऑटोमोबाइल सेक्टर में चीनी कंपनियां भारत की टाटा, महिंद्रा, अशोक लीलैंड और जापानी कंपनियों मारुति-सुजुकी, होंडा व टोयोटा के समकक्ष आने की होड़ में हैं। इस सेक्टर के मौजूदा बुरे दौर के बावजूद चीनी कंपनियों को इलेक्ट्रिक वाहनों, बसों ट्रकों और यात्री वाहनों के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं नजर आती हैं।

चीन की एसएआईसी मोटर कॉर्प और बीवाईडी ऑटो कंपनी लिमिटेड भारत आ चुकी है और विस्तार की योजना बना रही है।एसएआइसी के एसयूवी हेक्टर को जबर्दस्त प्रतिक्रिया मिली है। जुलाई, 2019 में लांचिंग के बाद से कंपनी ने इसकी 16,000 गाड़ियां बेच ली हैं। कंपनी ने अपनी इलेक्टिक कार जेडएस ईवी भी उतार दी है। 20.88 लाख रुपये की शुरुआती कीमत वाली इस कार को 27 दिन में 2,800 बुकिंग मिली है।  वानफेंग ऑटोव्हील तो 2013 में ही हरियाणा के बावल में फैक्ट्री पर 350 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी है। हाल ही में चीन की प्रमुख वाहन कंपनी ग्रेट वॉल मोटर (जीडब्ल्यूएम) महाराष्ट्र में अपने संयंत्र पर एक अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है। 

भारत चीन को मुख्य रूप से जो चीज़ें बेचता है, वो हैं:

  • कॉटन यानी कपास
  • कॉपर यानी तांबा
  • हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न

चीन, भारत को जो चीज़ें बेचता है, वो हैं:

  • मशीनरी
  • टेलिकॉम उपकरण
  • बिजली से जुड़े उपकरण
  • ऑर्गैनिक केमिकल्स यानी जैविक रसायन
  • खाद

चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 

साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया.इस तरह सामान के मामले में चीन अमरीका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया.2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया और दोनों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ.चीन में भारत के राजदूत ने जून में दावा किया था कि इस साल यानी 2019 में भारत-चीन का कारोबार 100 बिलियन डॉलर पार कर जाएगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी.चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उसे पांच गुना ज़्यादा सामान बेचा।
वर्ष-2019 में चीन से भारत को निर्यात 74.72 अरब डॉलर रहा। 2018 में चीन ने भारत को 76.87 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इसी दौरान भारत का चीन को निर्यात घट कर 17.95 अरब डॉलर के बराबर रहा। यह इससे पिछले वर्ष 18.83 अरब डॉलर था। वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 56.77 अरब डॉलर रहा। यह 2018 में 58.04 अरब डॉलर था।
आगे की राह 

क्या चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का भारतीय अभियान दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करेगा? इस सवाल पर प्रो. स्वर्ण सिंह का कहना है कि इसके राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं.वो कहते हैं, "भारत के चीन के बहिष्कार का चीन पर आर्थिक प्रभाव से कहीं अधिक राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा जो कोविड-19 महामारी के लिए वैश्विक ग़ुस्से का सामना कर रहा है."

डॉ. महजबीन बानू का मानना ​​है कि सोशल मीडिया कैंपेन एक भावनात्मक गुस्सा था. वह कहती हैं, "सोशल मीडिया में कही जाने वाली बातें हमेशा थोड़े वक़्त के लिए होती हैं और मुझे नहीं लगता कि ये कैंपेन दोनों देशों के बीच व्यापार और राजनीतिक संबंध ख़राब करने वाला है."

लेकिन भारत में चीन के बहिष्कार को लेकर जो कैंपेन चल रहे हैं उन पर चीन कैसे प्रतिक्रिया दे रहा है?

प्रो. हुआंग युनसॉन्ग कहते हैं कि इस पर चीन की कोई प्रतिक्रिया नहीं है. "भारतीय सोशल मीडिया पर चीन विरोधी आंदोलन के लिए, चीनी सॉफ्टवेयर को हटाने से लेकर चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने तक, चीनी लोग इस पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दे रहे हैं. हम जानते हैं कि भारत में क्या हो रहा है. इस सब को लेकर चीन की ओर से जवाबी प्रतिक्रिया देने की संभावनाएं न के बराबर हैं."

यदि चीन ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला है तो भारत ने चीनी समाज पर भी कुछ प्रभाव डाला है. इसके लिए इसकी नरमी की सराहना की जानी चाहिए. जैसा कि प्रो. फेसर हुआंग युनसॉन्ग कहते हैं, "एलएसी पर हो रही कुछ घटनाओं के कारण हम बॉलीवुड फ़िल्मों, दार्जिलिंग चाय, योग और भारतीय रेस्तरां से परहेज़ नहीं कर सकते."


प्रो. हुआंग यूनसॉन्ग का मानना है कि यह दोनों देशों के बीच का मुद्दा है.वो कहते हैं, "इसे आसान तरीक़े से कहें तो, यह एक संरचनात्मक मुद्दा है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्थाएं विकास के अलग-अलग स्तर पर हैं. इस मुद्दे को हल करने के लिए दोनों तरफ दीर्घकालिक योजना और धैर्य की ज़रूरत है. इसे अगर दूसरी तरह से देखें तो, इस व्यापारिक असंतुलन से भारत को फ़ायदा हो रहा है. तुलनात्मक रूप से सस्ते चीनी उत्पादों का आयात करके भारत ने क़ीमती फॉरेन करंसी रिज़र्व को बचाया है और अपनी पूंजी दक्षता में सुधार किया है."

दिल्ली में थिंक टैंक सोसाइटी फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड एंपावरमेंट के डॉ. महजबीन बानू का तर्क है कि चीन बड़े भारतीय बाज़ार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है.वो कहती हैं, "हम चीन से आयात पर निर्भर हैं, इस बारे में कोई संदेह नहीं है. इसके अलावा, चीन भारतीय बाज़ार की विशाल क्षमता को देखते हुए इसे ख़ुद से दूर भी नहीं कर सकता."

जेएनयू के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रो. स्वर्ण सिंह का कहना है कि कई देश चीन के साथ व्यापार असंतुलन से पीड़ित हैं. "भारत के साथ चीन का व्यापार पिछले 15 वर्षों में लगभग एकतरफ़ा हो गया है और यह अधिकतर दूसरे देशों के साथ चीन के व्यापार का सच है.वह कहते हैं, "कोई भी द्विपक्षीय व्यापार, यहां तक ​​कि एकतरफ़ा व्यापार, पारस्परिक निर्भरता बनाता है. यह कई तत्वों पर निर्भर करता है - नीतियों की प्रकृति, राजनीतिक नेतृत्व और आर्थिक ताक़त - जो किसी भी देश को व्यापार से संबंधित तनावों से निपटने का अधिकार देता है, चाहे वह बहिष्कार हो या टैरिफ़ बढ़ाना हो."

प्रो. हुआंग युनसॉन्ग का मानना है कि दोनों देशों को एक-दूसरे की ज़रूरत है.वो कहते हैं, "चीन भारत को नजरअंदाज़ नहीं कर सकता. एक वैश्विक अर्थव्यवस्था में, देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं. मैं चीन-भारत संबंधों से निपटने के लिए एक सकारात्मक मानसिकता को बढ़ावा देने का पक्षधर हूं. ख़ासकर जब कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया इतनी कमज़ोर हो गई है. यदि निर्णय लेने वाले लोग आर्थिक तर्क के मुक़ाबले भूराजनीति को अपनाने का विकल्प चुनते हैं, तो वैश्विक आपूर्ति की चेन निश्चित तौर पर बाधित हो जाएगी. केवल उस असामान्य परिस्थिति में, भारत चीन को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम उठा सकता है, जिसकी क़ीमत काफ़ी ज़्यादा होगी.''

स्रोत 

https://www.bbc.com/hindi/india-52923781

https://www.bbc.com/hindi/india-50003776

https://www.bhaskar.com/business/news/monthly-per-capita-data-consumption-in-india-likely-to-reach-25-gb-by-2025-report-127415840.html?art=next

https://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/trade-between-india-and-china-decreased-by-3-billion-in-2019/articleshow/73252882.cms






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  1. You have just mastered it.. great research and presentation👍👍

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